Friendship like shade - Story of Deepti and Chandan in Hindi Short Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | छाँव जैसी दोस्ती - दीप्ति और चंदन की कहानी

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छाँव जैसी दोस्ती - दीप्ति और चंदन की कहानी

भाग 1: बचपन की वो गलियाँ

बनारस की तंग गलियों में एक पुराना मोहल्ला था – जहाँ हर घर एक-दूसरे के दुख-सुख में शामिल रहता था। यहीं रहती थी दीप्ति, एक नटखट, तेज़-तर्रार लड़की, और सामने वाले मकान में था चंदन, थोड़ा चुपचाप, पर दिल का बहुत साफ़ लड़का।

दोनों की उम्र करीब 8-9 साल थी। स्कूल साथ का था, किताबें एक-दूसरे से बदल लेते थे, और छुट्टियों में पतंगें उड़ाया करते थे।
अरे चंदन! आज फिर तूने मेरी पतंग काट दी ना?"
"मैंने नहीं, हवा ने काटी!" – चंदन हँसते हुए भाग जाता।

धीरे-धीरे ये शरारतें गहरी दोस्ती में बदल गईं। मोहल्ले में सब कहते, "इन दोनों की जोड़ी तो लक्ष्मी-गणेश जैसी है।"
भाग 2: जवानी की दहलीज़ पर
समय बीतता गया। अब दीप्ति कॉलेज में टॉपर बन चुकी थी, और चंदन अपने पिता की दुकान संभालने लगा था। वो पढ़ाई में उतना तेज़ नहीं था, लेकिन मेहनती बहुत था।

दीप्ति चाहती थी कि चंदन भी पढ़े, आगे बढ़े।
"तू मेरी तरह क्यों नहीं बनता, कुछ बड़ा करता?"
"मैं अपनी दुकान ही चला लूं, वही काफी है। तू तो बड़ा नाम करेगी!"

पर वक्त के साथ उनके रास्ते थोड़े अलग होने लगे। दीप्ति अब शहर से बाहर MBA करने चली गई, और चंदन अपने छोटे से काम में जुटा रहा।

भाग 3: दूरियाँ और गलतफहमियाँ

दीप्ति शहर में नई दुनिया में व्यस्त हो गई थी। धीरे-धीरे कॉल्स कम होने लगीं, मैसेज का जवाब देर से आता।
चंदन को लगा, शायद दीप्ति अब बदल गई है। वो अंदर ही अंदर टूटने लगा।
"वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी... अब तो शायद मुझे याद भी नहीं करती।"
और उधर दीप्ति को लगता रहा कि चंदन अब बात नहीं करना चाहता।

दोनों एक-दूसरे से दूर हो गए, बिना कुछ कहे।
भाग 4: मुलाकात – सालों बाद

करीब 7 साल बाद, दीप्ति एक बड़ी कंपनी में मैनेजर बन चुकी थी। उसे बनारस लौटना पड़ा – माँ की तबीयत खराब थी।

मोहल्ले में सब वैसा ही था, बस अब चंदन की दुकान एक ब्रांड बन चुकी थी – "चंदन स्वीट्स"। उसने अकेले मेहनत से सब बदल दिया था।
जब दीप्ति दुकान पर पहुँची – चंदन उसे देखकर ठिठक गया।
 "तू? इतने साल बाद?"
"हां... बहुत देर कर दी आने में।"
दोनों की आँखें नम थीं।

भाग 5: दोस्ती का नया रूप
अब वो 8-9 साल के बच्चे नहीं थे। उन्होंने अपने रास्ते खुद बनाए थे – अलग-अलग। पर जो चीज़ नहीं बदली थी, वो थी  उनकी दोस्ती की नींव।
अब न कोई शिकवा था, न शिकायत।
"तूने कहा था ना, मैं बड़ा नाम करूंगी। तूने भी तो कम नहीं किया, चंदन।"

और यूँ एक भूली-बिसरी दोस्ती, फिर से लौट आई — और पहले से भी ज्यादा मजबूत बन गई।




समाप्त।


🌟 संदेश:

सच्ची दोस्ती वक़्त, दूरी, या हालात से नहीं टूटती। अगर दिल साफ़ हो, तो सालों बाद भी एक मुलाक़ात सब कुछ ठीक कर सकती है।

अन्य महत्वपूर्ण बातें:

दोस्ती में अपेक्षाएं नहीं, समझ होती है।

कभी-कभी दूरियां ज़रूरी होती हैं ताकि हम रिश्तों की अहमियत समझ सकें।

अगर मन साफ हो, तो एक मुलाक़ात पुराने सारे शिकवे मिटा सकती है।






लेखक: Bikesh Parajuli 
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