पहली मुलाकात – जब निगाहें थम गईं
☀️ सुबह की शुरुआत
कॉलेज का पहला दिन था। मौसम साफ़ था, आसमान नीला और हवा में एक नयी सी ताजगी थी। लड़के-लड़कियाँ नए-नए कपड़े पहनकर, हाथों में फाइल्स लिए क्लास की ओर बढ़ रहे थे। कुछ के चेहरे पर उत्साह था, तो कुछ के मन में डर कि नए माहौल में कैसा लगेगा।
राज… एक शांत, सीधा-सादा लड़का था। उसने नीला कुर्ता पहन रखा था, बाल हल्के गीले थे और आँखों में कुछ ख्वाब। गाँव से शहर आए इस लड़के ने पहली बार किसी बड़े कॉलेज की दीवारें देखी थीं। वो थोड़ा सहमा हुआ था, लेकिन उत्साहित भी।
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🌸 राधा की एंट्री
और तभी… वो आई। सफेद सलवार-कुर्ता पहने, खुले बाल, और होठों पर हल्की मुस्कान लिए — राधा।
राज की नज़र जैसे थम गई।
वो हवा में उड़ते बाल, कानों में झूलती छोटी-सी बालियाँ, और बात-बात पर हँसते चेहरे पर कुछ ऐसा था जो राज के दिल को छू गया।
राधा अपनी सहेली के साथ आ रही थी, और जब उसकी नज़र अनजाने में राज से मिली — एक पल को सब थम गया।
📚 पहली क्लास, पहली बात
राज और राधा एक ही क्लास में थे।
पहली क्लास में जब प्रोफेसर ने "Introduction" मांगा, तो राज ने धीरे से अपना नाम बताया।
"Hi, I'm Raj… from Biswanath… I like reading poetry…"
और जब राधा की बारी आई, वो मुस्कराई — "Hi, I’m Radha… I love sketching and singing old songs."
राज को उसका जवाब कुछ खास लगा। उसने दिल में सोचा — “ये लड़की कुछ अलग है…”
ब्रेक में राधा ने राज से पहली बार बात की —
"तुमने जो कहा कि तुम्हें कविता पसंद है, कोई सुनाओ न…"
राज थोड़ा शर्माया, लेकिन फिर उसने गुलज़ार की एक लाइन पढ़ी —
"कुछ अधूरे ख्वाब, कुछ अधूरी बातें… मोहब्बत अक्सर पूरी कहाँ होती है…"
राधा सुनकर मुस्कराई —
"तुम बहुत अच्छे लिखते हो…"
राज ने महसूस किया — कोई उसकी खामोशियों को समझ रहा है।
🌅 शामें बदलने लगीं
अब हर दिन राधा और राज एक-दूसरे से बातें करने लगे। कैंटीन में साथ कॉफ़ी पीना, लाइब्रेरी में किताबें खोजना, और पार्क में देर शाम तक बैठना — ये सब उनकी रोज़मर्रा की आदत बन गई।
राज ने कभी राधा से अपने दिल की बात नहीं कही, लेकिन उसकी हर चीज़ में अब राधा बसने लगी थी।
राधा के लिए राज एक अच्छा दोस्त था — भरोसेमंद, समझदार, और हमेशा साथ निभाने वाला।
पर राज के लिए… राधा उसकी साँसों में बस चुकी थी।
💌 एकतरफा प्यार की शुरुआत
राज ने कई बार चाहा कि राधा को बता दे कि वो उससे मोहब्बत करता है। लेकिन हर बार डर गया।
"अगर मैंने कहा… और उसने दोस्ती तोड़ दी तो?"
वो राधा को खोने से डरता था।
राधा हर दिन उसके और करीब आती गई, लेकिन हर दिन राज की बेचैनी भी बढ़ती गई।
एक दिन राधा ने पूछा —
"राज, तुम इतने चुप क्यों हो आजकल?"
राज मुस्कराया —
"बस, सोचता हूँ… कहीं तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत गलती तो नहीं हो…"
राधा हँस पड़ी —
"तुम तो बहुत फ़िल्मी हो राज…"
राज भी हँसा, लेकिन अंदर से… उसकी आँखें नम थीं।
📖 अध्याय का अंत
उस शाम राज अकेला पार्क में बैठा था। उसकी डायरी में लिखा था:
> "मैं उससे मोहब्बत करता हूँ, पर कह नहीं सकता।
शायद ये मोहब्बत अधूरी ही सही,
लेकिन ये अधूरी चीज़ें ही तो सबसे ज़्यादा याद आती हैं…"
वो जानता था — ये शुरुआत है, लेकिन इसका अंत शायद वैसा न हो जैसा वो चाहता है।