Bachpan ka Pyaar - 3-4 in Hindi Love Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | बचपन का प्यार - 3-4

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बचपन का प्यार - 3-4

एपिसोड 3: नई लड़की, नई हलचल
गाँव के स्कूल में उस दिन कुछ अलग था। क्लास शुरू होने से पहले ही सब बच्चे कानाफूसी कर रहे थे।
“नई लड़की आई है… शहर से!” – किसी ने कहा।
सीमा और निर्मल दोनों हैरान थे। तभी हेडमास्टर कक्षा में एक लड़की को लेकर आए।
“बच्चों, ये है ‘नेहा’। अभी-अभी शहर से हमारे गाँव आई है और अब यहीं पढ़ेगी।”
नेहा दिखने में बहुत साफ-सुथरी और स्मार्ट थी। बाल खुले, स्कूल ड्रेस चमचमाती हुई, और पैरों में सफेद जूते। शहर की चमक उसमें साफ झलक रही थी।
टीचर ने उसे सीमा और निर्मल के बेंच पर बैठा दिया।
 निर्मल की नज़रें बदलती हैं
पढ़ाई शुरू हो गई, लेकिन निर्मल की नज़रें बार-बार नेहा की तरफ जा रही थीं।
नेहा मुस्कराकर उससे बोली, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“मैं… निर्मल,” वो बोला, थोड़ा झेंपते हुए।
सीमा चुप थी। उसने सब देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा।
लंच ब्रेक में नेहा ने नया डब्बा निकाला—मैगी, बिस्किट और जैम ब्रेड।
निर्मल ने चौंककर देखा, “ये सब तुम्हारे पास कहाँ से आया?”
नेहा बोली, “शहर से लाई हूँ। वहाँ रोज़ यही खाते हैं।”
निर्मल हँसा, “बहुत बढ़िया!”
सीमा ने अपने पराठे निकाले… लेकिन निर्मल ने उस दिन उसके टिफिन की तरफ देखा भी नहीं।
वो छाता अब अकेला था
अगले दिन बारिश हुई। सीमा वही पुराना छाता लेकर आई। पेड़ के नीचे खड़ी इंतज़ार करती रही।
पर निर्मल नहीं आया।
वो सीधा नेहा के साथ क्लास में पहुँचा—भीगते हुए, हँसते हुए।
सीमा ने छाता बंद किया। उस पर गिरी पानी की बूँदें अब उसकी आँखों से मिलती-जुलती थीं।
💔 सीमा का मौन

छुट्टी के समय सीमा चुपचाप घर जा रही थी। निर्मल ने उसे पीछे से आवाज़ दी, “सीमा, रुको ना!”
सीमा रुकी नहीं।
उसके दिल में कुछ टूट रहा था। उसे पहली बार एहसास हुआ कि दोस्ती सिर्फ साथ बैठने, टिफिन बाँटने और बारिश में छाता साझा करने से नहीं होती। उसमें ज़रा-सी भी नज़रअंदाज़ी बहुत चुभती है।
एपिसोड का अंत:
सीमा अकेली चल रही थी, लेकिन उसके मन में एक नई सोच उभर रही थी।
क्या निर्मल अब बदल गया था?
या फिर ये बस एक परीक्षा थी, उस मासूम प्यार की?

एपिसोड 4: टूटा छाता, टूटा दिल

अगले दिन फिर से बारिश हो रही थी। गाँव की गलियाँ कीचड़ से भर चुकी थीं। स्कूल के रास्ते में सीमा अकेली छाता लेकर चल रही थी, लेकिन आज उसका मन वैसा नहीं था।
उसके हाथ में वही लाल छाता था जिससे उसने कभी निर्मल को बारिश से बचाया था।
स्कूल पहुँची तो देखा नेहा और निर्मल दोनों एक ही छाते में आ रहे थे।
सीमा का दिल धक से रह गया।
वो वही छाता था, उसका पुराना लाल छाता, जो अब नेहा के हाथ में था।
निर्मल हँसते हुए नेहा से कुछ कह रहा था और नेहा खिलखिला रही थी।
सीमा ने नज़रे फेर लीं।
क्लास में खामोशी
क्लास में आज सीमा सबसे अलग बैठी थी। वो चाहती थी कि कोई उससे बात न करे।
निर्मल ने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन सीमा ने उसकी ओर देखा तक नहीं।
टिफिन टाइम पर जब सीमा अकेले खा रही थी, तो निर्मल पास आया।
“सीमा, आज क्यों चुप हो?”
सीमा ने कुछ नहीं कहा। बस धीरे से टिफिन बंद किया और उठकर बाहर चली गई।
सच्चाई का सामना
स्कूल के बाद सीमा अकेले पेड़ के नीचे खड़ी थी। वहीं जहाँ वो रोज़ निर्मल का इंतज़ार करती थी।
निर्मल आया और बोला, “तुम मुझसे नाराज़ हो क्या?”
सीमा ने शांत स्वर में पूछा, “वो छाता कहाँ से आया निर्मल?”
निर्मल चौंक गया। बोला, “तुमने ही तो एक दिन घर छोड़ दिया था, तो मैं नेहा को दे आया…”
सीमा की आँखों में आँसू थे।
“उस छाते से सिर्फ बारिश नहीं रुकती थी, वो हमारी दोस्ती का वादा था।”
निर्मल कुछ बोल नहीं पाया।
मन का तूफ़ान
सीमा ने कहा, “मुझे नहीं चाहिए ऐसा दोस्त जो आसानी से वादे तोड़ दे।”

और वो चली गई छाता छोड़कर, दोस्ती छोड़कर, बचपन के उस मासूम भरोसे को पीछे छोड़ते हुए।

निर्मल वहीं खड़ा रह गया भीगता हुआ, बिना छाते के पहली बार असली अकेलापन महसूस करते हुए।