एपिसोड 5: अधूरा ख़त
स्कूल में वो सुबह कुछ अलग थी। सीमा हमेशा की तरह समय पर आई, लेकिन उसकी मुस्कान अब खो चुकी थी। न कोई बात, न कोई शरारत — अब वो बस क्लास में बैठती, पढ़ाई करती, और चुपचाप घर चली जाती।
निर्मल ने कई बार कोशिश की उससे बात करने की, लेकिन सीमा अब बिल्कुल अनजान बन चुकी थी।
निर्मल की उलझन
निर्मल को समझ नहीं आ रहा था कि उसने क्या इतना बड़ा गुनाह कर दिया?
“एक छाता ही तो था… पर शायद वो सिर्फ छाता नहीं था,” अब उसे एहसास हो रहा था।
वो अकेले बेंच पर बैठा, एक कागज़ पर कुछ लिख रहा था।
प्रिय सीमा,
पता नहीं तुम मुझसे बात क्यों नहीं करती,
लेकिन मुझे पता है कि मैंने तुम्हारे भरोसे को तोड़ा।
तुम्हारा छाता, तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी दोस्ती…
मुझे सब याद है।
माफ़ करना अगर मैंने तुम्हें तकलीफ़ दी।”
तुम्हारा दोस्त, निर्मल
लेकिन पत्र लिखते-लिखते उसकी आँखें भर आईं।
वो पूरा पत्र नहीं लिख सका।
अधूरा छोड़ दिया… और वहीँ बेंच पर रखकर चला गया।
नेहा की समझदारी
नेहा ने सब देखा। वो अब समझ चुकी थी कि सीमा और निर्मल की दोस्ती सिर्फ स्कूल की नहीं, दिल की थी।
वो चुपचाप उस बेंच तक गई, पत्र उठाय और उसे सीमा की किताब में रख दिया।
सीमा को मिला खत
घर आकर सीमा ने जब किताब खोली, तो उसमें वो अधूरा ख़त मिला।
सीमा उसे पढ़ती रही, बार-बार…
अधूरी पंक्तियाँ, लेकिन शब्दों में सच्चाई थी।
उसके दिल में कुछ पिघलने लगा।
एपिसोड का अंत
क्या सीमा फिर से निर्मल से बात करेगी?
क्या वो अधूरा ख़त उनके रिश्ते को जोड़ पाएगा?
एपिसोड 6: फिर से जिंदा हुआ खेल
अगली सुबह सीमा ने स्कूल जाते समय उस अधूरे खत को फिर से पढ़ा। शब्द कम थे, लेकिन भाव बहुत थे।
निर्मल की लिखावट में उसे वही पुराना दोस्त नज़र आ रहा था—जो बारिश में छाते के नीचे खड़ा होकर कहता था,
“मैं रोज़ तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”
स्कूल पहुँचते ही सीमा सीधा लाइब्रेरी गई। वहीं कोने की मेज़ पर बैठा था — निर्मल।
उसे देखकर सीमा के कदम रुक गए, पर दिल ने कहा — “आज बोल दे!”
वो धीरे-धीरे जाकर बगल में बैठी। निर्मल चौंका, फिर कुछ बोलने ही वाला था कि सीमा ने एक कागज़ आगे बढ़ा दिया।
“प्रिय निर्मल,
तुम्हारा ख़त अधूरा था, लेकिन उसका असर पूरा था।
मैं नाराज़ नहीं थी… बस टूटी हुई थी।
पर अब लग रहा है कि हमारी दोस्ती की किताब में
एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।”
तुम्हारी दोस्त, सीमा
निर्मल की आँखें चमक उठीं।
वो बोला, “तो क्या अब फिर से… हम दोस्त हैं?”
सीमा मुस्कुराई — “पहले जैसे नहीं, अब पहले से भी बेहतर।”
पुराना खेल – फिर से जिंदा
लंच ब्रेक में सभी बच्चे बाहर खेल रहे थे। निर्मल ने सीमा से पूछा, “रस्सी कूदेगी?”
सीमा ने कहा, “तू पकड़, मैं कूदती हूँ।”
और दोबारा वही पुराना खेल जिंदा हो गया —
सीमा रस्सी कूद रही थी, निर्मल तालियाँ बजा रहा था।
पास ही नेहा खड़ी मुस्कुरा रही थी
उसे इस बात की खुशी थी कि उसने एक दोस्ती फिर से जोड़ दी।
वापस वहीं पेड़ के नीचे
छुट्टी के बाद, सीमा और निर्मल पुराने आम के पेड़ के नीचे खड़े थे।
सीमा ने कहा, “अब जब भी बारिश होगी, हम साथ चलेंगे… पर छाते के साथ नहीं, भरोसे के साथ।”
निर्मल ने उसकी तरफ देखा और मुस्कराया, “ये वादा है।”
एपिसोड का अंत
अब दोस्ती लौट आई थी, पर क्या यह प्यार की पहली सीढ़ी थी?