Title: शापित हवेली – भाग 4
जैसे ही आदित्य ने सीढ़ियों से उतरने की कोशिश की, उसे फिर से वही ठंडी सांसें अपने कानों में महसूस हुईं। वह रुक गया, पीछे मुड़ा, लेकिन कोई नहीं था। हवेली के दरवाज़े अब खुद-ब-खुद बंद हो चुके थे। रोशनी गायब थी, और एक अजीब सी गंध पूरे माहौल में फैल गई थी — जैसे किसी चीज़ का सड़ना।
आदित्य ने खुद को संभाला और धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ने लगा। तभी उसे दीवारों पर कुछ अजीब आकृतियाँ दिखाई दीं — किसी बच्चे के हाथों के निशान, लाल रंग से बने हुए। वो धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया। तभी एक दरवाज़ा ज़ोर से अपने आप खुला, और एक बच्ची की चीख सुनाई दी।
"भइया... मुझे मत छोड़ो..."
ये आवाज़ उसकी बहन सिया की थी। लेकिन सिया तो गायब थी! वह तेज़ी से उस कमरे की ओर भागा। कमरा पूरी तरह अंधेरे में था। अचानक कमरे के बीचों-बीच एक लाल झूमर जलने लगा। नीचे एक पुरानी सी कुरसी पर कोई बैठा था — लंबा काला घूंघट, जले हुए कपड़े, और उससे उठती धुआं सी ऊर्जा।
"तू वापस क्यों आया?" उस औरत की आवाज़ में ऐसा कंपन था कि दीवारें भी कांपने लगीं।
"मैं अपनी बहन को लेने आया हूं," आदित्य ने कांपती आवाज़ में जवाब दिया।
औरत हंसी — एक भयानक, बेजान हंसी।
"तू नहीं समझेगा... ये हवेली अब तेरी नहीं... ये हमारी है।"
तभी पीछे से किसी ने आदित्य का कंधा पकड़ लिया। उसने पलट कर देखा — सिया थी, लेकिन उसकी आंखें लाल थीं, और चेहरा पूरी तरह सफेद।
"भइया, यहां से चलो... इससे पहले कि वो हमें ले जाए..."
"कौन?" आदित्य ने पूछा।
"जिसका शाप अब हमारे खून में उतर चुका है..."
अचानक सारी बत्तियाँ जल गईं। हवेली अब वैसी नहीं लग रही थी — दीवारों पर खून के धब्बे थे, छत पर उल्टी लटकी लाशें, और ज़मीन पर रेंगते साये।
सिया आदित्य का हाथ पकड़ कर भागने लगी, लेकिन दरवाज़े अब बंद थे। खिड़कियों से भी सिर्फ अंधकार दिखाई दे रहा था। वे दोनों अब हवेली के जाल में फंस चुके थे।
लेकिन तभी, कमरे के एक कोने से एक पुरानी किताब अपने आप ज़मीन पर गिरी — उसमें एक नक्शा और एक वाक्य लिखा था:
**"जिसने शाप को जगाया है, वही उसे मिटा सकता है — लेकिन कीमत चुकानी होगी..."**
आदित्य और सिया ने एक-दूसरे की ओर देखा। अगला कदम अब उन्हें तय करना था।
**अगले भाग में जानिए — क्या है इस शाप का रहस्य? और क्या दोनों भाई-बहन इससे बाहर निकल पाएंगे...?**रात के अंधेरे में हवेली की दीवारें जैसे और भी सजीव हो गई थीं। आरव, अब पूरी तरह डर और रहस्य के मकड़जाल में फँस चुका था। चौथे भाग की शुरुआत उसी पल से होती है जब आरव की आंखें, दीवार पर बनी उस पुरानी पेंटिंग से मिलती हैं — जिसमें वही लड़की दिखाई दे रही थी जिसे उसने पिछली रात सीढ़ियों पर देखा था।
वह लड़की, जो पहले सिर्फ एक परछाई थी, अब तस्वीर में भी जिंदा नजर आ रही थी। आरव के हाथ अनायास ही कांपने लगे। तस्वीर के नीचे एक पुराना कागज चिपका था, जिस पर लिखा था: **"जो देखेगा, वो बचेगा नहीं..."** आरव घबराकर पीछे हटा, तभी कमरे की खिड़की अपने आप खुल गई और अंदर से एक ठंडी हवा का झोंका आया। हवा के साथ वही जाना-पहचाना सुगंध — जैसे कोई पुरानी किताब या मिट्टी की खुशबू।
आरव को लगा जैसे कोई उसे पास बुला रहा हो। जैसे ही वह तस्वीर की ओर दोबारा मुड़ा, तस्वीर की आंखों से खून बहता दिखा। उस क्षण, कमरे में रखा पुराना झूमर हिलने लगा, जैसे कोई ऊपर चल रहा हो। डर अब आरव की हड्डियों तक उतर चुका था, लेकिन फिर भी वह रुकने को तैयार नहीं था।
हवेली के तहखाने की चाबी उसे अब तस्वीर के पीछे छिपी एक दरार में मिली। जब उसने वह चाबी उठाई, तो पूरे घर में अजीब सी कंपन होने लगी। आरव को अहसास हुआ कि इस चाबी के साथ कोई रहस्य खुलने वाला है — शायद वो जवाब, जिसे वह ढूंढ रहा था।
**भाग 5 का संकेत:**
जब आरव तहखाने की ओर बढ़ता है, तब उसे पता चलता है कि ये सिर्फ एक पुरानी जगह नहीं है — ये उस रहस्यमयी लड़की की असली कैदगाह है। वहां दीवारों पर खून से लिखे गए कुछ शब्द दिखाई देते हैं, जो हवेली के पिछले मालिकों की डरावनी सच्चाई को उजागर करते हैं। क्या आरव वहां जिंदा वापस आ पाएगा? या फिर वह भी उसी कहानी का हिस्सा बन जाएगा?
(यह कहानी जारी है…)