1945 की शुरुआत...
भारत छोड़ो आंदोलन को तीन साल हो चुके थे। देश के कई हिस्सों में स्वतंत्रता की लौ जल रही थी, लेकिन अंग्रेजों का शिकंजा अभी ढीला नहीं हुआ था। इसी बीच, अंजलि की टोली की गतिविधियाँ तेज़ हो गई थीं। अंग्रेज अफसरों को शक होने लगा था कि कहीं कोई नेत्रहीन बच्चों की टुकड़ी ही तो गुप्त संदेशवाहक नहीं बन गई?
जिस दिन अंजलि के गुप्त केंद्र पर छापा पड़ा और वह गिरफ़्तार हुई, वह बारिशों का दिन था। हवा में अजीब बेचैनी थी। सिपाहियों ने उसे बाँधकर जीप में डाला और पटना के ब्रिटिश खुफिया दफ्तर ले गए। उसकी आँखों पर पट्टी नहीं बाँधी गई — शायद अंग्रेज यह भूल गए कि जिसे देखना नहीं आता, उसे ढंकना फिजूल है।
पूछताछ की रातें:
पूछताछ की शुरुआत एक अंग्रेज अफसर – कैप्टन विलियम्स ने की। वह एक सख्त और निर्दयी अफसर था।
उसने अंजलि से कहा, "तू अंधी है। तेरी आज़ादी से क्या लेना? तेरे जैसे लोग तो किसी के भरोसे ही जीते हैं।"
अंजलि मुस्कुराई। उसकी मुस्कान में न डर था, न ही दया की याचना। उसने कहा,
"मैंने आज़ादी को कभी देखा नहीं है, लेकिन उसकी ख़ुशबू बचपन से महसूस की है। तुम देख सकते हो, फिर भी गुलाम हो।"
कमरे में सन्नाटा छा गया। कैप्टन विलियम्स तिलमिला गया। उसने मेज पर हाथ मारा और चिल्लाया, "तुम लोग बच्चे हैं! क्रांतिकारी नहीं! यह सब किसने सिखाया तुम्हें?"
अंजलि शांत रही। उसकी चुप्पी जवाब बन चुकी थी।
यातना और अपमान:
अगले तीन दिन अंजलि को अंग्रेजों ने अलग-अलग तरीकों से डराने की कोशिश की।
उसे भूखा रखा गया,
टॉर्च की रोशनी बार-बार आँखों पर डाली गई,
गंदे पानी में घंटों बैठाया गया,
उसकी उंगलियों को मोड़-मोड़कर पूछा गया – “क्या इन्हीं से संदेश लिखती थी?”
लेकिन अंजलि की उंगलियाँ कांपी नहीं।
एक दिन एक सिपाही ने उसके सामने ब्रेल कोड की कुछ चिट्ठियाँ रखीं जो झोपड़ी से मिली थीं। उसने पूछा, "ये क्या हैं?"
अंजलि ने सिर झुकाया, हाथों से ब्रेल महसूस किया, फिर बोली – "ये प्रेम-पत्र हैं। मेरी टोली अपने देश को लिखती थी। तुम समझोगे नहीं।"
ब्रिटिश प्रेस और अंजलि:
इसी बीच, ब्रिटिश अखबारों में अंजलि की गिरफ़्तारी की खबर आने लगी। “A Blind Spy Girl from Bihar” शीर्षक से रिपोर्ट छपी। विदेशी पत्रकारों को इस पर यकीन नहीं हो रहा था कि एक अंधी भारतीय लड़की ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला रही है।
लंदन से आए पत्रकारों ने पटना जेल में अंजलि से मिलने की मांग की। अफसरों ने मजबूरी में इजाज़त दी। जब एक ब्रिटिश महिला पत्रकार ने अंजलि से पूछा –
“तुम्हारे लिए आज़ादी क्या है?”
तो अंजलि ने कहा –
"आज़ादी वो हवा है जो मेरी माँ की गोद से उठकर गीतों में बस गई थी। वो हर उस धड़कन में है जो मुझे जिंदा रखे हुए है। मेरी आँखें बंद हैं, लेकिन आत्मा में तिरंगा लहराता है।"
पत्रकार की आँखें नम हो गईं। उसने अपनी रिपोर्ट में लिखा –
“India doesn’t just want freedom. India feels freedom. Even in darkness.”
जेल में ब्रेल स्कूल:
अंजलि को पटना के सेंट जॉर्ज जेल में रखा गया। वहां उसने कुछ नेत्रहीन कैदियों को इकट्ठा किया और ब्रेल सिखाना शुरू किया। जेलर ने रोका, तो अंजलि ने कहा –
"अंधेरा बांटना नहीं चाहिए, रोशनी फैलानी चाहिए। मैं बंद हूँ, लेकिन मेरा ज्ञान नहीं।"
धीरे-धीरे कैदी उसके आस-पास बैठने लगे। कोई उसके गीतों में खो जाता, कोई ब्रेल सीखता। जेल की दीवारों पर ब्रेल के उभार बनते जा रहे थे – जैसे हर ईंट बोल रही हो – "वन्दे मातरम्"।
स्वतंत्रता सेनानियों से संपर्क:
इसी जेल में अंजलि की मुलाकात हुई – प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी किशोरीलाल के साथ। किशोरीलाल ने पहली बार उसकी हथेली थामकर कहा –
"तू तो हमारे बीच की झांसी की रानी निकली, बेटी!"
अंजलि मुस्कुरा दी। दोनों ने मिलकर जेल के भीतर एक नया आंदोलन शुरू किया – 'सुनो आज़ादी की आवाज़'। इस अभियान में ब्रेल में संदेश लिखे जाते, कैदियों को गीतों के ज़रिए जागरूक किया जाता, और बाहर भेजे जाते।
राजनैतिक दबाव और जनता की माँग:
बिहार में अब अंजलि की गिरफ्तारी को लेकर आंदोलन शुरू हो चुका था। कई महिलाएं पटना की सड़कों पर उतरीं। “अंजलि को रिहा करो!” के नारे लगे। नेहरू जी तक ये खबर पहुँची। कांग्रेस कार्यकारिणी ने ब्रिटिश सरकार से कहा – एक अंधी लड़की को बंद रखना मानवाधिकारों का हनन है।
राजनैतिक दबाव बढ़ा। पत्रकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ उठाई। अंजलि अब एक प्रतीक बन चुकी थी – साहस, संवेदना और संकल्प का।
रिहाई का दिन:
साल 1946 की गर्मी... मई का महीना।
अंततः अंजलि को रिहा करने की घोषणा हुई। सेंट जॉर्ज जेल के गेट पर जब उसे लाया गया, तो बाहर हजारों लोग जमा थे।
“वन्दे मातरम्!” के नारों से आकाश गूंज उठा। महिलाओं ने उसके हाथों में फूलों की माला डाली। कोई रो रहा था, कोई नाच रहा था। एक बूढ़ी महिला बोली – "हमारी अंधी बेटी ने हमें रास्ता दिखाया।"
माँ से पुनर्मिलन:
जब अंजलि अपनी माँ दुर्गा के गले लगी, तो माँ ने बस इतना कहा –
"तू मेरी आँख नहीं है, तू मेरी रोशनी है।"
अंजलि ने माँ की हथेली पकड़कर कहा –
"माँ, तिरंगा आज भी मेरी उंगलियों के नीचे लहराता है। अब मैं बाकी बच्चों को भी सिखाऊंगी – अंधे होने का मतलब अंधा रहना नहीं होता।"
नया संकल्प:
रिहाई के बाद अंजलि ने निर्णय लिया कि वह अब अपने जैसे नेत्रहीन बच्चों के लिए एक संस्था बनाएगी – जहाँ उन्हें न केवल ब्रेल और शिक्षा मिलेगी, बल्कि देशभक्ति, संविधान और स्वाभिमान भी सिखाया जाएगा।
उसका सपना था – "श्रवणशक्ति आश्रम।"
पर उससे पहले... आज़ादी का दिन आना बाकी था।