छिन्न मस्ता देवी महाविद्या में से छठी देवी मां है इन देवी मां के हाथ में कटा हुआ सिर है।
छिन्न मस्ता देवी माता का स्वरूप जितना दिलचस्प है उतनी ही दिलचस्प छिन्न मस्ता देवी मां की उत्पत्ति की कथा है।
तो चलिए आज छिन्न मस्ता देवी मां के बारे में जानते हैं।
छिन्न मस्ता देवी का काली का बहुत विकराल रूप है। हालांकि छिन्न मस्ता देवी को जीवनदानयिनी
भी माना जाता है।
देवी छिन्न माता ने अपने मस्तक को अपने हाथ में रखा है।
छिन्न मस्ता देवी की उत्पत्ति।
देवी छिन्न मस्ता को भी देवी पार्वती का ही रूप माना जाता है।
और ये देवी बहुत उग्र रहती है।
मन से जो भी कोई कुछ मांगता है तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
वैसे तो छिन्न मस्ता देवी कि कई किंवदंती है।
हालांकि उनमें अधिकांश का सुझाव है ।
इन छिन्न मस्ता देवी ने महान् कार्य को पूरा करने के लिए अपना सिर काट लिया।
छिन्न मस्ता देवी की प्रतिमा
छिन्न मस्ता देवी की प्रतिमा भयवह है स्वयंभू
देवी के एक हाथ में अपना काट हुआ सिर है।
दुसरे हाथ में छिन्न मस्ता देवी के हाथ में कैंची पकड़ रखी है।
और देवी छिन्न मस्ता की गर्दन से खून की तीन धाराएं निकली और छिन्न मस्ता देवी के सिर को परिचिकाओं ।
डाकिनी और वर्निनी ने उसे पी लिया।
छिन्न मस्ता देवी को मैथुरत जोड़े के ऊपर खड़ा हुआ दर्शाया गया है।
छिन्न मस्ता देवी मां का रंग गुलहड़ के फूल के समान है वह करोड़ो सूर्य का तेज रखती है।
उनका वर्णन सोलह साल की लडकी के रूप में किया गया है। जिसके हृदय के पास एक नीला रंग का कमल है।
छिन्न मस्ता देवी मां एक पवित्र धागे के रूप में एक नाग और अन्य आभुषणों के साथ मे अपने गले में खोपड़ीयां यां कटे हुए सिर की माला पहनती हैं।
छिन्न मस्ता देवी मां की साधना
छिन्न मस्ता देवी माता अपने क्रूर स्वभाव और दृष्टिकोण और पूजा के बहुत कड़क होने के कारण।
तांत्रिक योगीयों और तपस्वीयों तक ही सीमित है। और छिन्न मस्ता देवी की साधना।
शत्रुओं का नाश करने के लिए की जाती है। और अदालती मसलों से छुटकारा पाने और सरकारी कृपा पाने और व्यापार मे मजबूती और अच्छी स्वास्थ पाने के लिए छिन्न मस्ता देवी की साधना की जाती है।
इसलिए छिन्न मस्ता देवी की साधना किसी अच्छे तांत्रिक यां साधुओं की देख रेख में ही करवानी चाहिए।
छिन्न मस्ता देवी का
मूल मंत्र
(श्री ह्री क्लीं ऐ वैरोचनीयै हुं हुं फट स्वाहा)
श्री धूमावती देवी। (7)
धूमावती देवी माता दस महाविद्या में से सातवी देवी मां है
धूमावती देवी मात बुढ़ी और विधवा है।
और अशुभ और अनाकर्षक माने जाने वाली चीजें से जुड़ी है।
वह हमेशा भुखी और प्यासी रहती है।
विशेषताओं और सभाव में उनकी तुलना देवी अलक्ष्मी देवी ज्येष्ठा देवी निऋति से की जाती है।
नाकारात्मक गुणों का अवतार है।
लेकिन साथ ही इनकी पूजा वर्ष के विशेष समय
पर ही की जाती है।
और धूमावती देवी को अलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है।
धूमावती देवी माता की साधना से जीवन में सभी कष्टों का अंत होता है ।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवी पार्वती को बहुत भूख लगी थी।
और कुछ खाने के लिए ना मिलने पर माता पार्वती ने भगवान शिव को ही निगल लिया था।
ऐसा कहा जाता है कि इस घटना के बाद भगवान शिव जी ने माता पार्वती को अस्वीकार कर दिया।
क्रमशः ✍️