Episode 2: “इस रिश्ते में तेरा नाम नहीं, बस मेरा हक़ है”
सुबह की धूप 16वीं मंज़िल की बालकनी में गिर रही थी, लेकिन मेरे जिस्म पर सिर्फ़ ठंडक थी — उसके लहजे की।
वो मुझे देखता था जैसे मैं कोई चीज़ हूँ जिसे उसने जीत लिया हो, लेकिन उसके अंदर कोई ऐसी बेचैनी थी जिसे मैं पढ़ नहीं पा रही थी।
मैं — दुआ शर्मा — अब उसकी दुनिया में थी, लेकिन अपने नाम से नहीं।
उसने मुझे कभी “दुआ” कहकर नहीं बुलाया। उसके लिए मैं “तुम” थी, बस।
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उसकी दुनिया में मेरा पहला दिन
“तुम्हारे लिए एक रूल बुक है,” उसने टेबल पर एक फाइल फेंकी।
“1. बाहर बिना मेरी इजाज़त के नहीं जाओगी।
2. किसी से बात करने से पहले मुझे बताओगी।
3. कोई सवाल नहीं। कोई बहस नहीं।”
मैंने मुस्कराकर कहा, “रूल बुक? बीवी बनाया है या गुलाम?”
वो पास आया, इतना करीब कि उसकी साँसें मेरी जाँघ तक महसूस हुईं।
“बीवी नहीं। तसल्ली समझो। वो जो रात में ज़रूरत बन जाए और दिन में सुकून का हिस्सा रहे।”
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उसकी पहली छुअन… इत्तेफ़ाक थी या इरादा?
मैं ड्रेसिंग रूम में थी, बाल सुखा रही थी जब वो बिना खटखटाए अंदर आया।
मैंने झटके से पीछे मुड़कर कहा, “दरवाज़ा खटखटाते नहीं क्या?”
वो मुस्कराया, “जिस चीज़ पर हक़ हो, वहाँ इजाज़त नहीं ली जाती।”
वो मेरे करीब आया, और मेरी पीठ से गीले बालों को एक तरफ किया।
“तुम्हारा बदन भी तुम्हारे नाम से ज़्यादा वफादार है… ये तो खुद-ब-खुद मेरी तरफ झुकता है।”
मेरे रोंगटे खड़े हो गए — डर से नहीं, उससे लड़ने की बेचैनी से।
🖤
वो मुझे तोड़ना नहीं चाहता था… वो चाहता था कि मैं खुद टूट जाऊं।
हर बात में, हर खामोशी में वो मेरी हदों को परखता।
डिनर टेबल पर जब मैंने उसके सामने बैठने की कोशिश की, उसने एक गिलास वाइन मेरी तरफ बढ़ाई।
“पीती हो?”
मैंने मना किया।
“अब पीओगी।”
उसने धीरे से मेरी ऊँगली पकड़कर गिलास मेरी होंठों तक लाया।
मैंने कहा, “तुम मेरे choices भी चुराना चाहते हो?”
“तुम्हारे choices मेरी जेब में हैं, दुआ।”
🌑
रात में सवाल थे… नींद नहीं थी।
मैं बिस्तर पर लेटी थी। वो सामने की कुर्सी पर बैठा, whiskey के ग्लास में अपनी आँखें डुबोए।
“तुम्हें मुझसे नफरत है?” उसने पूछा।
मैंने कुछ पल उसकी तरफ देखा — वो आदमी जो दिखता था पत्थर जैसा, अंदर कहीं नरम था या सिर्फ़ चालाक?
“नहीं,” मैंने कहा, “मैं खुद से नफरत करती हूँ कि मैं यहाँ हूँ।”
उसने गहरी साँस ली और कहा,
“तुम नहीं समझोगी। ये रिश्ता… ये सिर्फ़ मेरे लिए है। तुम्हारे लिए नहीं।”
💥
एक टकराव… एक दरार
अगली सुबह, मैंने कमरे से बाहर निकलने की कोशिश की।
गार्ड ने रोका।
“सर के बिना आप बाहर नहीं जा सकतीं।”
मैंने गुस्से से गार्ड की आँखों में देखा और बोली, “मैं कोई कैदी नहीं हूँ।”
तभी वर्धान आया। उसकी आँखें धधक रही थीं।
“तुम्हें मना किया था न, दुआ?”
“तुम मुझे पिंजरे में रखोगे और उम्मीद करोगे कि मैं गा भी दूँ?”
मैं चिल्लाई।
उसने मुझे बाँह से पकड़ा, खींचकर कमरे में ले गया।
“तुम्हें ये रिश्ता समझना पड़ेगा। ये बराबरी का नहीं है। ये मेरा फैसला है — तुम्हारी सज़ा!”
🌪️
रिश्ता या साज़िश?
उस रात, हम आमने-सामने खड़े थे — मैं आँखों में आँसू लिए, वो आँखों में आग लिए।
“तुम क्यों लाए मुझे अपनी दुनिया में?”
मैंने पूछा।
“क्योंकि मुझे देखने के लिए एक आईना चाहिए था… जो झूठ न बोले।”
उसने जवाब दिया।
“लेकिन मैं इंसान हूँ, आईना नहीं।”
मैंने कहा।
वो मुस्कराया — एक थकी हुई, टूटी हुई मुस्कान।
“अब नहीं। अब तुम मेरी परछाईं हो।”
💔
दुआ की डायरी (Secret Inner Thoughts):
“वो मुझे छूता नहीं… फिर भी मैं उसकी गिरफ्त में हूँ।
वो मुझे प्यार नहीं करता… फिर भी मैं उसकी आँखों में खुद को खोजती हूँ।
ये मोहब्बत नहीं… शायद, बस ज़हर है।
लेकिन शायद यही ज़हर मेरी आख़िरी ख्वाहिश भी बन रहा है…”
🔚 To Be Continued…
क्या दुआ उस रिश्ते की हकीकत समझ पाएगी?
या वर्धान का जहर उसकी मोहब्बत बन जाएगा?
कौन झुकेगा पहले — वो जिसकी मोहब्बत सज़ा है, या वो जिसकी आज़ादी बिक चुकी है?