Episode 3: “तेरे नाम की कैद, मेरे जिस्म की सज़ा”
“मुझे उससे डर नहीं लगता था… मुझे डर था खुद से — कि कहीं मैं उसे चाहने न लग जाऊँ।”
वो रिश्ता नहीं चाहता था, लेकिन मुझे उसकी हर चीज़ से बाँध रहा था।
नाम से नहीं, आदत से। इज़ाज़त से नहीं, पकड़ से।
वर्धान सिंह राजपूत।
वो मुझे रोज़ तोड़ता था — लफ़्ज़ों से, निगाहों से, और कभी-कभी सिर्फ़ अपनी चुप्पियों से।
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16वीं मंज़िल की वो रात
मैं खिड़की के पास खड़ी थी।
बाहर बारिश हो रही थी।
भीतर… कुछ और ही भीग रहा था।
वर्धान उस दिन जल्दी घर आया।
कोई पार्टी थी, बिज़नेस की। और उसे “मुझे” साथ ले जाना था।
“तैयार हो जाओ, ब्लैक पहनना।”
मैंने पलटकर कहा, “मैं तुम्हारी ट्रॉफी नहीं हूँ जिसे शोकेस में रखा जाए।”
वो मुस्कराया — उसकी वही शिकारी मुस्कान।
“तुम मेरी हो — और मैं जो चाहता हूँ, वो करता हूँ।”
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तैयारी नहीं, सजावट थी
मैंने ब्लैक स्लिट गाउन पहना, बाल खुले रखे।
और मेरी आँखों में वही आग — जो उसके हर हक़ को चुनौती दे।
वो आया। मुझे ऊपर से नीचे तक देखा।
“परफेक्ट। अब सबको पता चलेगा कि तुम किसकी हो।”
“मैं किसी की नहीं,” मैंने धीरे कहा।
“अब झूठ मत बोलो, दुआ। तुम्हारे जिस्म ने कब का इकरार कर लिया है।”
🥀
पार्टी — जहां उसने मेरा नाम नहीं लिया
हज़ारों लोग, चमकदार लाइट्स, महंगे कपड़े…
लेकिन उस भीड़ में वर्धान ने मुझे एक नाम तक नहीं दिया।
“This is… someone close,” बस इतना कहा।
मैंने ठंडी नज़रों से उसे देखा।
“मैं सिर्फ़ तुम्हारे कमरे की चीज़ हूँ, वर्धान?”
वो पास आया, मेरे कान में फुसफुसाया,
“नहीं… तुम मेरी Addiction हो — जिसे मैं छुपाकर पीता हूँ।”
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पार्टी के बाद — उसका असली चेहरा
घर लौटे तो उसका मिज़ाज बदला हुआ था।
वो गुस्से में था।
“तुमने उस आदमी से बात क्यों की?”
“वो सिर्फ़ मेहमान था, उसने मुझसे हाल पूछा — और मैं चुप रही।”
वो दीवार की तरफ मुड़ा, गहरी साँस ली और फिर…
“तुम्हें मुझ पर शक नहीं करना चाहिए, दुआ।”
“पर मुझे तुम्हारी हर साँस पर हक़ है।”
मैंने उसका हाथ झटकते हुए कहा,
“तुम मुझे एक नाम तक नहीं देते — फिर हक़ कहाँ से लाते हो?”
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उसका गुस्सा — और मेरा थप्पड़
उसने मेरी कलाई पकड़ी — इतनी ज़ोर से कि निशान पड़ जाए।
“तुम्हें समझ नहीं आता, ये कैसा रिश्ता है, दुआ।”
मैंने उसकी आँखों में देखा — गुस्सा, जुनून, और कुछ और… जो मैंने कभी किसी में नहीं देखा।
और फिर…
मैंने उसे थप्पड़ मारा।
😶
सन्नाटा… और फिर उसकी धीमी आवाज़
वो कुछ नहीं बोला।
बस मेरी आँखों में गहराई से देखा।
“अब खेल शुरू हुआ है।”
“क्या तुम चाहती हो मैं टूट जाऊँ? या तुम खुद टूटना चाहती हो, दुआ?”
मैंने गुस्से से कहा,
“मैं कोई खिलौना नहीं हूँ, जिसे तन्हाई में रखते हो और दुनिया से छुपाते हो।”
🖤
उस रात — उसकी सज़ा या मेरा इम्तिहान?
वो मेरे कमरे में आया, रात के 2 बजे।
मेरी चादर खींची और बोला,
“उठो। अब तुम मेरी कहानी की शुरुआत बनोगी।”
“कौन सी कहानी?”
मैंने थरथराती आवाज़ में पूछा।
“एक ऐसी, जहाँ मोहब्बत सिर्फ़ लफ़्ज़ नहीं — ज़हर होगा।”
उसने मेरे माथे पर होंठ रखे — पहली बार।
लेकिन वो चुम्बन प्यार जैसा नहीं था।
वो ज़हर जैसा था। धीरे-धीरे अंदर उतरता हुआ।
💔
दुआ की डायरी — दूसरा पन्ना
“वो मुझे छूता है, पर कभी गले नहीं लगाता।
वो मुझे देखता है, लेकिन पहचानता नहीं।
उसके स्पर्श में मोहब्बत नहीं… बस हक़ है।
लेकिन फिर भी…
जब वो दूर होता है, मैं अधूरी लगती हूँ।
ये मोहब्बत नहीं, पागलपन है।
लेकिन क्या मैं… वाकई उससे नफरत कर पाऊँगी?”
🥀
रिश्ता एक तरफ़ा नहीं था… लेकिन इज़हार सिर्फ़ उसका था।
उसने मुझसे कहा,
“तुम मेरी ज़िंदगी में आई हो… लेकिन मेरे नाम से नहीं, मेरी आग से जुड़ी हो।”
“एक दिन, जब मैं टूटूंगा — सिर्फ़ तुम जानोगी कि मैं क्या था।”
मैं चुप रही।
क्योंकि मेरे पास शब्द नहीं थे… सिर्फ़ एक डर था।
कहीं मैं उससे मोहब्बत न कर बैठूं।
🔚
To Be Continued…
क्या वर्धान के अंधेरे में दुआ अपना उजाला खो देगी?
या ये मोहब्बत वाकई ज़हर बनकर उसे निगल जाएगी?
क्या वर्धान बदल सकता है… या फिर वो दुआ को भी वैसा ही बना देगा जैसा वो है?