Tera Zaher, Meri Mohabbat - 4 in Hindi Drama by Yasmeen Khan books and stories PDF | तेरा ज़हर, मेरी मोहब्बत - 4

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तेरा ज़हर, मेरी मोहब्बत - 4

एपिसोड 4: “वो छुअन जो रूह तक उतर गई”

कमरे में एक गहराई थी।

जैसे हवाएं भी ठहर गई थीं,

और दीवारें साँस रोककर बस उन्हें देख रही थीं।

दुआ बिस्तर पर बैठी थी, उसके चेहरे पर अभी भी झटका था—पलकों पर चुप्पी, और दिल में गूंजती हुई वो आवाज़ जो वर्दान सिंह राजपूत की थी…

“अब तुम्हारी हदें… मैं तय करूँगा।”

उसकी आँखें जल रही थीं, मगर आँसू नहीं निकले।

क्योंकि अब वो लड़ाई आँसुओं से नहीं… रूह से थी।

रात के 3 बज चुके थे।

वर्दान की गाड़ी बाहर थी।

वो वापस नहीं आया, मगर उसकी मौजूदगी… कमरे में हर तरफ़ थी।

दुआ के गले पर जो लाल निशान था,

वो सिर्फ़ उंगलियों का नहीं था—

वो उसकी हुकूमत का था।

💔 “मैं तुम्हें तोड़ूँगा… मगर ख़ुद टूटूँगा भी।”

सुबह होते ही नौकरानी ने दरवाज़ा खटखटाया।

“मैम… सर ने कहा था आपको नीचे बुलाने को। गेस्ट आए हैं।”

“अब?” दुआ ने चौंक कर पूछा।

“हाँ, सर की सख़्त हिदायत थी… ब्लू साड़ी पहनिए।”

वो चुपचाप उठी, अलमारी खोली, और जो साड़ी वहाँ टंगी थी… वो उसी ने भेजी थी।

ब्लू सिल्क की साड़ी… इतनी महीन कि हर छुअन को महसूस किया जा सके।

नीचे वर्दान खड़ा था—काले कुर्ते में, उस आंखों की गहराई में वही ज़हर…

और सामने एक बिज़नेस डील चल रही थी।

दुआ को देख उसने धीमी मुस्कान दी—मगर वो मुस्कान नहीं थी, चेतावनी थी।

“ये है… मिस शर्मा। मेरी पर्सनल असिस्टेंट… और बहुत जल्द… मेरी बिज़नेस पार्टनर।”

दुआ की रूह कांप गई।

ये क्या खेल था?

🖤 “तुम अब मेरी हो… इस शहर के सामने भी, और बिस्तर पर भी।”

डील साइन हो गई।

गेस्ट चले गए।

वर्दान धीरे-धीरे उसके पास आया, और इतनी नज़दीक कि दुआ की साड़ी का पल्लू भी कांप उठा।

“तुम्हें अच्छा नहीं लगा ना… जब मैंने तुम्हें अपना पार्टनर कहा?”

“तुम्हारी नज़रों में तो मैं दरिंदा हूँ।”

दुआ ने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने बस नज़रें झुका लीं…

पर वर्दान ने उसके चेहरे को अपनी ऊँगली से ऊपर उठाया।

“मत झुकाया करो नज़रे… तुम्हारी आँखे बहुत बोलती हैं।”

🥀 फिर वही रात…

वो उसे फिर कमरे में ले गया।

इस बार उसकी आँखों में ग़ुस्सा नहीं था…

बल्कि एक अजीब सी शांति थी। वो शांति जो तूफ़ान के ठीक पहले होती है।

“आज… मैं तुम्हें छूने नहीं आया।”

“आज मैं तुम्हें महसूस करवाने आया हूँ कि… तुम्हारे जिस्म से पहले, मैंने तुम्हारी रूह को छुआ है।”

दुआ का दिल जो अब तक बगावत कर रहा था…

अब थमने लगा।

उसकी साड़ी की पिन खुद-ब-खुद खुल गई,

वर्दान ने उसे छुआ भी नहीं…

फिर भी उसकी त्वचा जलने लगी थी।

🔥 “मेरे हर स्पर्श का मतलब होता है… मेरी हर नज़दीकी एक वादा है।”

वो उसके कान के पास आया… बस फुसफुसाते हुए बोला:

“अब तुम सिर्फ़ मेरी हो। और तुम्हें खुद को खोने में दर्द नहीं… सुकून मिलेगा।”

दुआ ने अपनी आंखें बंद कीं।

उसकी सांसें तेज़ थीं। शरीर काँप रहा था।

लेकिन इस बार डर नहीं था…

एक अनकहा इकरार था।

🖤 “तू मेरी हो चुकी है… और अब तू बचेगी नहीं।”

वो पूरी रात बिस्तर पर नहीं… उसके सीने पर सोई।

सुबह उठी तो उसने पाया—वर्दान जा चुका था,

मगर एक चिट्ठी थी:

“तुमने पहली बार मुझे नफ़रत नहीं दी… तुम्हारा खामोश सा इकरार, मेरे ज़हर का जवाब था।”

– V.

“आज रात उसकी डायरी खुली… और मेरी रूह कांप उठी”“जिसे मैं हैवान समझती थी… वो तो सबसे ज़्यादा टूटा हुआ था”“उसका ज़हर… अब मेरी आदत बन रही थी