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सेहगल हाउस – काव्या की बालकनी
जय की माँ ने उसे कुछ समय के लिए घर न आने को कहा था, इसलिए सब लोग सेहगल हाउस में इकट्ठा हुए थे। वे सब काव्या के कमरे से लगी बड़ी बालकनी में बैठे थे। सामने शहर का विशाल नज़ारा फैला हुआ था। हवा में सिर्फ नमी नहीं थी — कुछ अनकहे सवाल भी थे, जिन्हे कोई पूछना नहीं चाहता था।
काव्या पीछे की ओर टिक गई, अनानास के ज्युस से भरा गिलास थामे हुए, पर मन उलझा हुआ था। उसके भीतर एक खामोश बेचैनी थी — थोड़ा शक, थोड़ा गुस्सा। उसकी नज़रें सबके चेहरों पर घूमती रहीं, लेकिन सबसे ज़्यादा रुकीं — आदित्य पर। वो मायरा के बहुत करीब बैठा था — हद से ज़्यादा करीब, और उसका ध्यान पूरा मायरा पर था। वो कभी उसका कुशन ठीक कर रहा था, कभी पानी दे रहा था, तो कभी उसके कंधे से कुछ झाड़ रहा था। मायरा को ये आदत नहीं थी, शायद उसे खुद समझ नहीं आ रहा था — पर वो उसे रोक भी नहीं रही थी।
काव्या की भौंह उठी। ये आदित्य नहीं था जिसे वो जानती थी। "ये उसके साथ नहीं हो सकता..." उसने सोचा।
उधर आकाश ने काव्या की पैनी नज़रों को भांप लिया। ये चुपके से देखने जैसा नहीं था — काव्या खुलकर देख रही थी। जब दोनों की नज़रें मिलीं, तो काव्या ने हल्के से कंधे उचका कर सवाल पूछा- चल क्या रहा है? आकाश ने भी वैसे ही जवाब दिया — "मुझे भी नहीं पता।"
आदित्य ने वो इशारा पकड़ लिया। "क्या हुआ? ये साईन लेंन्ग्वेज क्यों चल रही है?" उसने पूछा।
काव्या ने बिना झिझक जवाब दिया, "तुम्हें पता होता... अगर तुम्हारी नज़रें कहीं और अटकी न होतीं तो।"
उसका लहजा तीखा था। मायरा, जो आदित्य के पास बैठी थी, उसने बात समझ ली — लेकिन उसने हमेशा की तरह अपने चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिया।
तनाव को दूसरी दिशा देने की कोशिश में आकाश ने जय की ओर रुख किया।
उसकी आवाज़ सख्त थी। "जय, अब तो बता दो... हुआ क्या था?"
जय ने सिर हिलाया, संयमित लेकिन सतर्क होकर। "उस रात, जब हम लोग पार्टी से निकले थे... उसी रात उसका फ़ोन आया था।"
"दो दिन पहले?" काव्या ने पूछा।
"हाँ," जय ने पुष्टि की। "मैंने कहा कि मैं बीझी हूँ, तो अगले दिन होस्पि़टल में मिलने को कहा।"
"तुम उससे मिलने क्यों जा रहे थे?" आदित्य की आवाज़ थोड़ी तेज़ थी।
"उसने कहा था कि एक केस को लेकर बात करनी है। कुछ क्लिनिकल ईस्यु है।"
"हाँ, हाँ," श्रेया ने धीरे से कहा, "मेरा तो मानना है कि वो तुम्हें पटाने की कोशिश कर रही थी।"
"अब बताओ, कौन रात में इतनी देर से पेशन्ट के केस की बात करता है?" काव्या ने आँखें घुमाते हुए कहा।
जय थोड़े आहत लग रहे थे। "मिस सेहगल—"
"मिस सेहगल क्या?" काव्या झल्ला पड़ी। "हमारी एक डील थी।"
"डॉ. राजशेखर, केन वी स्टे फोक्स्ड्?" मायरा ने हस्तक्षेप किया, माहौल को शांत करने की कोशिश करते हुए।
पर काव्या रुकने के मूड में नहीं थी। "देखो, नो वन हिअर ईझ डाईंग टू योर प्रिसिअस शिड्युल। अगर इतनी जल्दी है तो जा सकती हो। हमें परेशान मत करो।"
"काव्झ टोन।..." आदित्य ने धीरे से चेताया।
काव्या ने एक कदम पीछे नहीं लिया। "माफ करना, लेकिन सब ऐसे बर्ताव कर रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। और मुझे नहीं पता कि मुझे कितनी प्रोबलम्स सोल्व करनी पड़ेंगी। आदित्य तो बॉडीगार्ड बन गया है, डॉल के लिए जैसे कि अब दोनों एक-दूसरे के साये में हैं। आकाश और श्रेया कुछ ज़्यादा ही शांत हैं। और रॉनित? गायब है। कॉल्स नहीं उठा रहा, कोई सुराग नहीं। शादी हो गई, सब खत्म। बट, ही ईझ स्टील नोव्हेर टू बी फाउन्ड। राखी भी अब जवाब नही दे रही है। और अब जय की मिस्ट्री वुमन! श्रेया, तुम्हारी सारी फ्रेंड्स इतनी ड्रामेबाज़ होती हैं?"
श्रेया थोड़ी झिझक के साथ बोली, "कुछ... शायद।"
जय और आकाश ने एक नज़र एक-दूसरे की ओर डाली — ऐसा जैसे कि यही उम्मीद थी।
काव्या ने लंबी साँस ली और हाथ से इशारा किया, "बोलो, जय। मुझे नज़रअंदाज़ करो। मैं फिर भटक गई।"
जय ने थोड़ी बेचैनी से अपनी कुर्सी पर करवट बदली। "अगले दिन वो मेरे ऑफिस आई। हमने थोड़ी देर केस पर बात की, फिर वो चली गई।"
"बस... इतना ही?" काव्या चौंकी।
"अनऍक्सपेक्टेड, है ना?" श्रेया ने काव्या को हल्के से टटोला।
काव्या ने सिर हिलाया। तभी जय ने असली बात कही।
"उसी शाम... वो मेरे घर भी आ गई। माँ ने उसे अंदर आने दिया — मैं तो बाद में पहुँचा। हमने साथ में डिनर किया।"
"ओह, वो उस टाइप की है," काव्या बुदबुदाई। "पहले माँ का दिल जीतने वाली लड़कियाँ... सबसे खतरनाक होती हैं।"
आकाश ने आखिर चुप्पी तोड़ी, शांत लेकिन सख्त लहजे में। "प्रिंसेस, अब बस। बहुत हो गया सारकाझम, एक ही शाम के लिए।"
जय और श्रेया थोड़ा असमंजस में दिखे, पर आकाश की टोन ने काव्या को उसके कुछ तीखे तानों की याद दिला दी — ख़ासतौर पर मायरा के लिए।
आदित्य ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की, "वैसे श्रेया भी आकाश की माँ की बहुत अच्छी दोस्त बन गई है।"
"आदि, मत शुरू कर," आकाश ने सपाट लहजे में कहा।
आदित्य ने धीरे से बुदबुदाया, "लगता है बेटे से भी दोस्ती कर ली।"
काव्या हल्के से मुस्कराई।
श्रेया ने मुस्कराते हुए कहा, "सरस्वती आंटी और मैं भी तो बस अच्छे दोस्त हैं। मुझे विलन मत बनाओ यार।"
आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये तो मैंने सोचा भी नहीं था। मेरा मतलब, मेरी होने वाली... अरे नहीं, मेरा मतलब है दोस्त। हाँ, हम अब दोस्त हैं। मैं भूल गया।" मायरा को भी ये पसंद नही आया था। ईस बार उसके चेहरे पर साफ दिख रहा था।
काव्या बीच में कूद पड़ी, "फिर क्या हुआ, जय?"
"उसे बोलने दो," मायरा ने सख्ती से कहा और आदित्य पिछे हट गया।
काव्या ने उसकी बात को अनसुना कर सीधे जय की तरफ देखा। उसकी आँखें साफ़ कह रही थीं — मुझे सब कुछ बता दो।
जय ने गहरी साँस ली, "उसने... मुझसे शादी का प्रस्ताव रखा।"
सन्नाटा।
काव्या सीधी बैठ गई। "क्या?"
"हाँ," जय बोला। "एकदम.. अचानक से।"
"तुमने क्या कहा?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।
"मैंने मना कर दिया।"
श्रेया ने बात जोड़ी, "वो पूरी बात नहीं बता रहा।"
काव्या ने भौंहें चढ़ाईं।
श्रेया ने आगे कहा, "जय ने उसे कहा था — 'आई एम सोरी, मेने तुम्हे कभी उस नज़र से नहीं देखा। धेर ईझ समवन एल्स ईन माय हार्ट।'"
काव्या के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। “युनिक चोईस ओफ वर्ड्झ”... लेकिन शायद वो जानती थी, किसके लिए कहा गया था।
इससे पहले कि कोई कुछ कहता, मायरा ने थककर लंबी साँस ली। "तुम लोगों को अंदाज़ा भी है कि ये मामला कितना गंभीर है?"
काव्या ने उसकी ओर देखा, धीमे और साफ़ लहजे में कहा, "मिस खन्ना, जो भी आप झेल रही हैं, एक बात याद रखिए — जय दोषी नहीं है। आपकी कंपनी को कुछ नुक़सान हो सकता है, हाँ। ईमेज थोड़ी खराब होगी, लेकिन समय सब ठीक करता है। तो बस... जस्ट ब्रीध। यु वील रिकवर। टेक अ चिल-पिल।"
"अब मैं लंच लगवाता हूँ," आदित्य ने कहा, "सरवन्टस ऊपर ले आएँगे।"
मायरा खड़ी हो गई। अब उसके सब्र का बांध टूट चुका था। "सच में?" उसकी आवाज़ काँप रही थी — हैरानी और झल्लाहट से भरी। उसकी नज़रें सबके चेहरों पर घूमीं — और कहीं भी उसे समझदारी नहीं दिखी। "तुम सब वैसे ही हो जैसे पहले थे। कोई नहीं बदला।"
वो चली गई। किसी ने उसे नहीं रोका। बालकनी में खामोशी छा गई — अजीब, बोझिल, पर जानी-पहचानी।
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प्लेटें खनकीं, चम्मचों की आवाज़ आई, और बटर नान और पुदीना चावल की खुशबू फैलने लगी। खाना खूबसूरती से परोसा गया था, पर किसी का ध्यान उस पर नहीं था। सब महसूस कर रहे थे — कुछ बहुत ही भारी।
आदित्य ने चुप्पी तोड़ी, "आई स्वेअर, दाल दाल टेस्ट्स बेटर जब माहौल में बवाल हो।"
श्रेया ने मुस्कराकर कहा, "क्योंकि तुम्हारा दिमाग स्ट्रेस को ही मसाला समझ लेता है।"
जय ने हल्की मुस्कान दी, पर आँखों तक नहीं पहुँची। वो बार-बार फोन देख रहा था — बेचैन।
काव्या ने गौर किया, "जय?"
वो ऊपर देख कर बोला, "उसने अपने सारे अकोउन्ट्स बंद कर दिए हैं। मीडिया यही कह रहा है।"
"ये तो बहुत सस्पिशियस है," आकाश ने कहा, अपनी प्लेट आगे सरकाते हुए।
"वो भागी है क्योंकि उसे पता था उसने क्या किया है।" काव्या ने सपाट कहा।
जय ने सिर हिलाया। "एक नर्स का कॉल आया था। वो कह रही थी कि उसने उस दिन सब कुछ सुना, जब वो लड़की मेरे ऑफिस में आई थी। उसने किसी से कॉल पर कहा था — 'वो मुझे फँसाएगी’ उसी दिन जिस दिन कम्पलेन करी थी।"
माहोल और भारी हो गया।
"उसने ये सच में कहा?" श्रेया हैरान थी।
जय ने फोन का स्पीकर ऑन किया। दूसरी तरफ से धीमी आवाज़ आई — वही नर्स बोल रही थी।
"सर, मैं छुट्टी पर थी। आज वापस आई तो ये सब पता चला। उस दिन वो फोन पर मज़ाक में कह रही थी — ‘जय ने फिर रिजेक्ट कर दिया, अब उसे इसका मज़ा चखाऊँगी।’ तब मुझे मज़ाक लगा, पर अब लगता है वो सीरियस थी।"
सन्नाटा फिर से छा गया।
काव्या ने जड़बा कस लिया। मायरा ने जय की ओर देखा, लेकिन उसकी आँखें कुछ बया नहीं कर रही थीं।
"क्या ये रिकॉर्डिंग है तुम्हारे पास?" आदित्य ने पूछा — उसकी जाँच-पड़ताल की आदत जाग चुकी थी।
"हाँ। मैंने हमारी बातचीत रिकॉर्ड की थी। आई केन सेन्ट ईट टु यु।"
"प्लीझ डु।" मायरा ने शांत स्वर में कहा।
"लगता है तुम्हे चिंता नही थी," आदित्य ने काव्या से कहा, जैसे उसे पता था ये सब जुठ था।
काव्या ने सिर हिलाया, पर उसकी नज़र मायरा की तरफ गई। "कुछ लोगों को अब तो साफ़ समझ आ गया होगा।"
मायरा चुप रही।
तभी आकाश का फोन बजा। उसने देखा — और जम गया।
एक सेकंड।
दो।
तीन।
काव्या ने तुरंत देखा, "आकाश?"
उसकी आवाज़ भारी हो चुकी थी, "रॉनित का मैसेज है।"
सबका ध्यान उसकी ओर गया।
"क्या लिखा है?" आदित्य ने आगे झुकते हुए पूछा।
आकाश ने गला साफ़ किया और पढ़ा:
"भाई, मैंने शादी कर ली है। नीड हेल्प। चंडीगढ़ आ। बात नहीं कर सकता अभी।"
"ये क्या—" श्रेया की साँस अटक गई।
"उसने क्या किया?" काव्या लगभग खड़ी हो गई।
"दो दिनों से गायब... और अब ये?" आदित्य ने भौंहें सिकोड़ लीं।
"कोई मतलब नहीं बनता," जय बुदबुदाया। "बिना तुम्हे बताए शादी?"
"या फिर शायद बता नहीं पाया," काव्या ने धीरे से कहा। "वो शादी अटेंड करने गया था, शादी करने नहीं। पूरा पागल है वो।"
आकाश पहले से ही फोन मिलाने लगा — कोई जवाब नहीं।
वो खड़ा हो गया। "मैं चंडीगढ़ जा रहा हूँ।"
"कब?" श्रेया ने पूछा।
"अगली फ्लाइट से।"
"रुको, मैं भी चलती हूँ—" काव्या ने कहा, पर उसने रोक दिया।
"नहीं। तुम कहीं नहीं जा रही हो। यहाँ रहो। और जो कुछ यहाँ हो रहा है, उसे संभालो। ठीक है?"
मायरा ने पहली बार बोला — उसकी आवाज़ शांत थी, पर ठंडी सी। "मैं तुम्हारा कल का ऑफिस शेड्यूल संभाल लूँगी।"
"थैंक्स," आकाश ने कहा — उसकी ओर देखे बिना।
आदित्य ने कंधे पर हाथ रखा, "मैं टिकट का इंतज़ाम करता हूँ।"
आकाश घर के अंदर चला गया — पैकिंग के लिए।
काव्या का ध्यान अब भी फोन की स्क्रीन पर था — वही मैसेज चमक रहा था:
"मैंने शादी कर ली है। नीड हेल्प। चंडीगढ़ आ। बात नहीं कर सकता अभी।"
उसका दिल एक अनजाने डर से बैठ गया।
ये सब बहुत अचानक था। क्योंकि... वो जानती थी... वो जानती थी कि ये वो नहीं था जो रॉनित चाहता था। वो इसके लिए तैयार नहीं था।
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