चंद्रमंदिर के दरवाज़े के बाहर किसी के चलकर आने की आहट विनय के कानों में हवा की तरह टकराई। अच्छे-बुरे विचारों में उलझा विनय, रोम को यहाँ-वहाँ नज़र फेरकर ढूँढने लगा। पढ़ने में मग्न विनय यह भी भूल गया कि पंडित होश में आ चुका है। उसने पंडित की ओर देखा और हल्की तीखी नज़र मंदिर के कोट की तरफ फेर दी। कई साल पहले इस मंदिर में क्या हुआ होगा, इसकी परछाइयाँ उसकी नज़रें पढ़ने की कोशिश कर रही थीं। साथ ही उसके कान एक साथ उठती और गिरती आहटों की रफ्तार को परख रहे थे। थोड़ा पास आते ही उस आवाज़ का थोड़ा बदलाव उसने महसूस किया। उसके कानों ने पैरों में पहनी पायल या घुंघरू की आवाज़ को पहचान लिया।
विनय ने पंडित से पूछा, “क्या तूने अपने घर में बताया था कि तू यहाँ आने वाला है?”
“नहीं,” पंडित बोला।
मंदिर की मोटी दीवार से किसी ने हाथ बाहर निकाला। विनय का ध्यान एकदम से वहाँ खिंच गया। वह अपनी जगह से उठकर वहाँ दौड़ने लगा। वह हाथ फिर दीवार में समा गया, उसी समय विनय वहाँ पहुँचा।
“विनु, मुझे बाहर निकाल,” दीवार में अटका रोम बोला।
ऐसी गंभीर स्थिति में भी विनय को हँसा देने वाली तरह से रोम दीवार में चार पैरों पर होकर अपना मुँह ऊपर कर बोल रहा था।
“तू इसमें गया कैसे?” विनय हँसते हुए बोला।
“जैसे अभी हूँ, वैसे ही,” थोड़ी कड़कती आवाज़ में रोम बोला।
दरवाज़े के पास आ पहुँचे कदम रुक गए। विनय ने रोम को बाहर निकालने के लिए हाथ बढ़ाया और उसका हाथ पकड़कर बाहर खींच निकाला। रोम बाहर निकला ही था कि उसकी नज़र मंदिर के दरवाज़े के बाहर खड़ी एयरहोस्टेस (आरोही) पर पड़ी। उसके मुँह में पानी आ गया। थोड़ी देर सफेद चमकते दाँतों वाला रोम दूध जैसी सफेद एयरहोस्टेस (आरोही) को पागल की तरह देखता रहा। उसके पीछे माही और सायन भी आए, लेकिन रोम की नज़र में तो बस एयरहोस्टेस (आरोही) ही थी। उनके साथ एक अनजान पुरुष भी आया। वह एयरहोस्टेस (आरोही) से कुछ बात करने लगा। एकदम से रोम चौंका और बोला, “विनय, यह इडियट कौन है?”
पर रोम को कोई जवाब नहीं मिला। तो उसने पीछे मुड़कर देखा लेकिन विनय वहाँ नहीं था। रोम ने देखा कि विनय मंदिर के खंभे से बंधे पंडित के पास जाकर खड़ा है।
“माही! तुम अभी यहाँ क्यों आई हो?” विनय ने पंडित को पानी पिलाया।
“जीद की खबर मिली है।” दाहिने हाथ से बायाँ हाथ उल्टा दबाती माही बोली।
“किसने दी?”
जवाब में माही ने एयरहोस्टेस (आरोही) के बगल में खड़े पुरुष की ओर देखा।
“तू कौन है?” ढोंगी पंडित को पकड़ने के बाद विनय हर किसी को शक की नज़र से ही देखने लगा था।
“जी अ... नयन,” वह थोड़ा घबराकर बोला।
विनय ने पहले सायन की ओर देखा फिर बोला, “तू क्या जानता है?”
“जिन्हें आप ढूँढ रहे हैं उन्हें वह नराधम राहुल उठाकर ले गया है।”
नयन उत्तेजना भरी आवाज़ में बोला।
“तू इतनी पक्की बात कैसे कह सकता है?” विनय बोला।
पीछे से विनय का साथ देते हुए एयरहोस्टेस (आरोही) के पास खड़े नयन को देखकर भड़का हुआ रोम बोला, “हाँ, तू इतनी पक्की बात कैसे कह सकता है? उनके साथ मिला हुआ तो नहीं है न?”
“वह सब मैं आपको समझा दूँगा लेकिन अभी आप चलिए नहीं तो देर हो जाएगी,” नयन बोला।
उसकी बात सुनकर सब निकल पड़े। विनय ने पंडित को भी साथ लिया और जीप में बैठ गए।
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“राहुल मुझे छोड़ दो। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा?” जीद बोली।
कोलकाता में बन रही नई बिल्डिंग के अज्ञात हिस्से में पहुँचा हुआ राहुल बहुत गुस्से में था। उसने जीद को वहाँ बिल्डर्स के ऑफिस में बंद किया और जाते-जाते बस इतना कहा, “ते नहीं, तेरे बाप ने।”
बाप की बात सुनते ही जीद को वो सब याद आने लगा जो उसने चंद्रवंशियों के अंत में पढ़ा था।
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