Chandrvanshi - 8 - 8.2 in Hindi Mythological Stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 8 - अंक 8.2

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चंद्रवंशी - अध्याय 8 - अंक 8.2

एक तलवार और साफ़ा सामने रखे वाणी ने घरचोलु ओढ़ा हुआ था। रूप और गुण में कोई भी खामी न निकले, यह तो पूरे गाँव को मालूम था। आज वाणी की सुंदरता से स्वर्ग की अप्सराएँ भी ईर्ष्या करती हों, ऐसा मनमोहक वातावरण बनने लगा था।  
एक समय वाणी के विवाह का प्रस्ताव लेकर झंगीमल स्वयं उसके पिता के पास आया था। लेकिन उन्होंने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया। उस समय मदनपाल और सुर्यांश वाणी के पिता आचार्य अधी के सेवक बनकर छुपे रूप में रहते थे। झंगीमल के राज्य के सभी बलवान लोगों के सामने उन्होंने मल युद्ध खेले, तलवारबाज़ी की, लेकिन उन दोनों को एक साथ हराना किसी के लिए भी संभव नहीं था। सुरवीर योद्धाओं को एक-एक कर अपनी ओर जोड़ते गए। उसी समय आचार्य अधी की पुत्री वाणी को मदनपाल मन में भा गया। उसकी पसंद आचार्य को भी रुचिकर लगी। उन्होंने मदनपाल के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। इतने में आचार्य अधी भी उन दोनों का सत्य जान गए थे।  
मदनपाल भी वाणी को चाहता था। लेकिन युद्ध के समय विवाह हो और यदि वह हार जाए, तो अधी और उसकी बेटी को झंगीमल जीवित न छोड़े – इस बात से डरते मदन को सुर्यांश ने कंधे पर हाथ रखकर आश्वासन देते हुए कहा, “प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज़ है।” इस बात से हिम्मत पाकर मदन ने वाणी से विवाह कर लिया। लेकिन उस समय मदनपाल अपने परिवार को यह संदेश पहुँचा नहीं सका।  
उस समय विवाह में हमेशा पुरुष ही वेल लेकर जाते, लेकिन संध्या की जाने की इच्छा को कोई टाल नहीं सका। वैसे भी उसके साथ उसका होने वाला पति सुर्यांश था। इसलिए किसी को लुटेरों या किसी अन्य का डर नहीं था।  
“राजकुमारीजी आप कैसी विधि करेंगी?” पाऱो बोली।  
“क्यों! जैसी होती हो वैसे ही।”  
“आपके पति के सगे तो महाराज ही हैं। और रही बात वेल की, तो खांडु तो दूर जाना हो तो ले जाया जाए। घर के घर रहने वाली विधि तो पंडित ही जाने अब।” कहकर पाऱो हँसने लगी।  
“लुच्ची! ऐसा मत बोल। वह सुन लेगा तो भाई को कहकर सूली पर चढ़वा देगा तुझे।” संध्या बोली।  
इस तरह सारी विधियाँ पूरी हुईं। अचानक एक कमरे से एक छोटी बच्ची के रोने की आवाज़ आई और वाणी तुरंत दौड़कर उसे गोद में लेकर दूध पिलाने लगी।  
थोड़ी देर में संध्या और पाऱो भी वहाँ पहुँचीं। उन दोनों को देखकर बच्ची थोड़ी हँसी फिर अचानक ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। संध्या ने उसे वाणी की गोद से लेकर अपनी गोद में लिया। लेते ही बच्ची का हाथ संध्या के पहने हीरे जड़े हार पर पड़ गया। बहुत कोशिश की, लेकिन वह हार नहीं छोड़ा। तो राजकुमारी ने पाऱो से कहकर पीछे से हार छुड़वाकर अपनी जिद्दी भतीजी को दे दिया और बोली, “आज से तेरा नाम जिद।”  
सब बहुत खुश थे। आज की रात यहीं गुज़ारनी थी। तभी अचानक एक घोड़े पर सवार एक गुप्तचर आया। वह सीधे वहाँ बैठे सुर्यांश के पास जाकर उसे किसी कोने में आने को कहा। दोनों सब से दूर जाकर एक घर में पहुँचे।  
“राजकुमारी और बाकी सब पर खतरा है।” कहते हुए वह चारों ओर देखने लगा।  
“क्यों? ऐसा क्या संदेश है?”  
“अंग्रेज गवर्नर सर जॉन फ्रेडरिक के आदेश से अचानक अंग्रेज सैनिक चंद्रहट्टी की सरहद पार कर चुके हैं।” गुप्तचर बोला।  
“महाराज और मदनपाल को यह बात मालूम है?”  
“हाँ।”  
“कोई और सूचना?”  
“राजकुमारी ने कहलवाया है कि इस षड्यंत्र में मुख्य झंगीमल और प्रधान – दोनों को मार गिराया गया है। उनके विरोध में आदम और प्रधान का बेटा, दोनों सेना लेकर इस दिशा में निकले हैं।” गुप्तचर बोला।  
विकट समय में सुर्यांश ने राजकुमारी और मदनपाल की पत्नी को बचाने के लिए उस जगह जाने को कहा जहाँ से युद्ध से पहले मदनपाल और सुर्यांश छुपे रास्ते से चंद्रहट्टी के सैनिकों को यहाँ तेज़ी से लाए थे। उनके साथ एक छोटी सैनिक टुकड़ी भेजी ताकि किसी आपत्ति में उन्हें कोई हानि न पहुँचे। वहाँ से बहुत दूर जाने के बाद सभी थक गए। वह जगह जंगल में थोड़ी और भीतर थी। उन्होंने आज की रात वहीं एक झाड़ी में ठहरने का निश्चय किया। अंधेरी रात में चारों ओर घने काले बादल छाए हुए थे। थोड़ी-थोड़ी देर में बिजली की चमक हो रही थी। वाणी की गोद में सोई जिद रोते हुए कराह रही थी। संध्या और पाऱो भी किसी ऐसी ही मुश्किल में एक-दूसरे की ओर देखकर रो रही थीं।  
एक भयानक रात बीतने के बाद सुबह-सुबह एक खून से लथपथ सिपाही कहीं से दौड़ता हुआ उस स्थान की ओर भागा जहाँ से चंद्रहट्टी की ओर का छुपा रास्ता था। पास आते ही पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसे रोक लिया। “रघला, क्यों भागकर आया? क्या हुआ वहाँ?”  
“अनर्थ हो गया, अनर्थ!” ऊँचे स्वर में बोला। उसके दिल की धड़कनें बाहर तक सुनाई दे रही थीं। उसके माथे पर लगी चोट से बहता खून उसकी आँखों पर चिपक गया था। राजकुमारी के साथ आए सैनिकों ने उसे पीने और मुँह धोने के लिए पानी दिया। मुँह धोकर जब वह थोड़ा सहज हुआ तो उसे राजकुमारी के पास लाया गया।  
“क्या हुआ भाई, आप कौन हैं?” राजकुमारी इतने संकट में भी धैर्य से बोलीं।  
थोड़ा गहरा साँस लेकर रघला बोला, “अनर्थ हो गया राजकुमारी, अनर्थ।”  
“क्या हुआ?”  
“आपके जाने के बाद, मध्यरात्रि में आदम और प्रधान का बेटा एक बड़ी सेना लेकर वहाँ पहुँच गए। इतनी बड़ी सेना को हराना आसान नहीं था। इसलिए हमने एक रणनीति बनाई थी। चारों ओर आग लगा दी गई। जिससे उनकी आधी सेना जलकर मर गई। सुर्यांश की व्यूह रचना से चौंक कर वे आधे तो झाड़ियों में ही मारे गए। बाकी बचे सैनिकों के साथ युद्ध छेड़ा जिसमें पचास के करीब तलवारबाज़ और सुर्यांश उनके सामने डटे रहे। बाकी तीरंदाज़ों को भी आधी रात में पेड़ों पर चढ़ा कर निशाना लगाने को कहा। जिससे सामने की सेना पूरी तरह निष्क्रिय हो गई। लेकिन तभी पीछे से आकर भोलो ने सुर्यांश को खंजर घोंप कर मार दिया। इसका लाभ उठाकर उन्होंने अपनी कमज़ोर सेना से भी हमारे सैनिकों को हरा दिया।” रघला चुप हो गया।  
“फिर, फिर क्या हुआ?” अधीरता में संध्या बोली।  
“सुर्यांश को बंदी बनाया गया। उन्होंने कहा कि कल रात इसी तरह महाराज और मदनपाल को भी मृत्यु के घाट उतार देंगे। मारने से पहले सुर्यांश की अंतिम इच्छा पूछी। बंदी हालत में भी उसने अपनी पीठ में घुसे खंजर को निकाल कर उन्हें भोलो के सीने में घोंप दिया। जिससे डरकर उन्होंने सुर्यांश को मारने का आदेश दे दिया। अभी मारने ही जा रहे थे कि उनमें से एक ने कहा – यहाँ मदनपाल की पत्नी और बहन भी आई हैं! यह सुनकर सुर्यांश भड़क उठा और अपने शरीर की सारी शक्ति लगाकर उसे वहीं मार गिराया। यह देख बाकी सभी उस पर टूट पड़े।”  
राजकुमारी की आँखों में आँसू आ गए। संध्या ने अब समय बर्बाद न करते हुए थोड़ी कृत्रिम मज़बूती दिखाई और खंजर लेकर वहाँ से निकलने का आदेश दिया। वाणी की तबीयत थोड़ी नाज़ुक थी। जिद को पाऱो को सौंपकर उसने उसे हमेशा सुरक्षित रखने का वचन लिया। तभी एक सिपाही बोला, “महारानी, भोलो तो इसका सगा भाई था।” उसके बोलते ही संध्या ने उस सिपाही को कठोर आदेश में कहा, “तू जिसकी बात कर रहा है वह केवल मेरी दासी नहीं, मेरी सखी है। और समय आने पर वह अपना जीवन दे दे, लेकिन वचन नहीं तोड़े।”  
गुप्त रास्ते पर पहुँचते ही कुछ घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनाई दी। थोड़े लोग लेकर प्रधान का बेटा आ रहा था। तभी वाणी का पैर एक पत्थर से टकराया और वह वहीं बैठ गई। रास्ते में अब कोई झाड़ी या पेड़ नहीं था जहाँ उसे लेकर छुपा जा सके। उसने एक सिपाही से खंजर माँगा। वाणी ने संध्या और पाऱो को अपने पास बुलाकर कहा, “मेरी बेटी को जीवित रखने की बात तुम दोनों में से एक भी किसी से न करे। किसी भी परिस्थिति में जिद को उसके पिता तक पहुँचाने का वचन लो।” कहकर वाणी ने उन्हें वहाँ से दूर जाने का आदेश दिया।

***