IMTEHAN-E-ISHQ OR UPSC - 8 in Hindi Love Stories by Luqman Gangohi books and stories PDF | इम्तेहान-ए-इश्क़ या यूपीएससी - भाग 8

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इम्तेहान-ए-इश्क़ या यूपीएससी - भाग 8

✨PCS की परीक्षा, और मोहब्बत का नामकरण✨

("कभी-कभी कोई एक यात्रा, दो रूहों के बीच के सारे 'क्या?' और 'कब?' मिटा देती है....
और सिर्फ एक जवाब देती है 'हम'।")

परीक्षा का न्योता

एक राज्य की पीसीएस परीक्षा होनी थी, दोनों ने बिना एक दूसरे को बताए फॉर्म फिल किया हुआ था, और इतेफाक से उनका एग्जाम सेंटर भी सैम आया। फिर एक दिन लाइब्रेरी में बैठकर दानिश ने कहा:

"मैं अगले हफ़्ते PCS एग्ज़ाम देने जा रहा हूं.. तुम?"

आरजू मुस्कुरा दी और बोलीः "मैं भी... शायद तुमसे पहले पहुंच जाऊंगी।"

"तो फिर हम साथ चलें?" दानिश ने पूछा।

तो आरज़ू बोली किः "हाँ, एक बार तो सफ़र साथ होना ही चाहिए... एग्जाम से पहले।"

तो फिर दानिश ने ट्रेन के दो टिकट बुक किए। फिर वो दिन आ ही गया जब उनको एग्जाम के लिए निकलना था। उनको साथ की दो सीटें मिली, खिड़की की तरफ आरजू को बिठाया और उसकी बगल में दानिश खुद बैठ गया। सफर गुजरता गया, शहर पीछे छूटते गए, और उनके बीच अब तक की सारी अनकही बातें, मुस्कानों के बीच से निकलने लगीं।

आरजू - "तुमने कभी सोचा है... हम जो हैं, वो क्या हैं?"

दानिश - "सोचने लगा... पर कोई जवाब नहीं दिया।"

आरजू - "अगर तुम्हें कोई पूछे कि आरज़ू कौन है, तो क्या कहोगे?"

दानिश - "वो जो मेरे हर अधूरे दिन को पूरा करती है।"

आरजू ने दानिश के कांधे पे सिर टिकाकर कहाः

आरजू - "और अगर मैं पूहूं... कि क्या हम अब भी सिर्फ दोस्त हैं?"

दानिश - " शायद नहीं..."

आरजू - "...तो फिर?"

दानिश - "हम अब वो हैं... जो एक-दूसरे की हार में रोते हैं, और जीत में दुआ मांगते हैं। और दोस्ती से आगे, लेकिन मोहब्बत से कम कुछ नहीं।"

पहली बार, बिना डर के। आरजू ने उसकी हथेली थाम ली

परीक्षा सेंटर और शाम की बातें

दोनों होटल के अलग-अलग कमरे में रुके, लेकिन दिल एक ही जगह टिके हुए थे। एग्जाम से पहले की शाम दोनों सफर के हारे थके थोड़ा आराम करके डिनर के लिए ढाबा पहुंचे तो वहां ऑनर की एक छोटी सी मासूम बच्ची हम दोनों को ऐसे निहारे जा रही थी जैसे हम किसी दूसरे ग्रह के प्राणी हो, और शायद वह हम दोनों को नहीं केवल आरजू को ही निहार रही थी क्योंकि न जाने क्यों लेकिन आरजू की खूबसूरती में उस शाम और भी चार चांद लगे थे और शायद इसलिए भी निहार रही हो वो दोनों अपनी आदत के मुताबिक एक थाली में ही डिनर कर रहे थे। और फिर आरजू ने उस बच्ची के थोडे लाड लडाए फिर वापस होटल आ गए। दोनों ने एक छत के नीचे बने ऐसे दो कमरों में जो उन दोनों के बीच एक दीवार बनकर खड़े थे, उन्होंने बेचैनी में करवटें बदलते हुए जैसे-तैसे रात ये फील करते हुए गुजारी कि साथ है मगर पास नहीं। सुबह हुई दोनों एग्जाम के लिए तैयार हुए नाश्ता किया और एग्जाम सेंटर के लिए निकल पड़े। एग्ज़ाम के बाद शाम होने को थी दोनों एक छोटी-सी चाय दुकान पर बैठे:

दानिश - "एग्जाम कैसा गया?"

आरजू - "तुम्हारी आवाज़ सुन ली थी सुबह, तो ठीक ही जाना था।"

दानिश - "अब क्या होगा?"

आरजू - "अब... जो होना है साथ होना है।"

दानिश - "और अगर तुम पास हो गई और मैं नहीं?"

आरजू - "तो मैं हर बार तुम्हारे लिए दुआ करूँगी... लेकिन साथ छोड़ेंगी नहीं।"

एक ठंडी शाम - पहली बार अपने लिए, रात को दोनों शहर की सड़कों पर पैदल घूम रहे थे। हाथ में कुछ नहीं था, बस एक-दूसरे की मौजूदगी थी।

दानिश ने कहा: "अब नाम दे दें इस रिश्ते को?"

आरजू - "नाम से डर नहीं लगता, जिम्मेदारी से लगता है।"

दानिश - "तो वादा करते हैं- नाम चाहे कुछ भी हो,

हम इस रिश्ते की ज़िम्मेदारी उठाएंगे... एक-दूसरे की।"

आरज़ू "इंशा अल्लाह (ठीक है वादा)..."

आरजू ने हाथ आगे बढ़ाया और कहा "अब से हम... प्रेमी हैं। दोस्त से बढ़कर, इश्क़ से डरकर नहीं।"

दानिश ने उसका हाथ पकड़कर कहा कि "मैं हमेशा तुम्हारा रहूँगा चाहे PCS आये, UPSC आये, या कुछ भी न आये।"

फिर वो दोनों रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए क्योंकि रात को उनकी वापसी की ट्रेन थी। और ट्रेन का वो खूबसूरत सफर हसीखुशी गुजर रहा था, क्योंकि उन दोनों का रिश्ता अब नाम ले चुका था। दोनों एक दूसरे को मुस्कान भरी निगाहों से देखते, एक दूसरे की केयर करते हुए, प्यार जताते हुए सफर कब बीत गया उन्हें पता ही नहीं चला।

उसी रात दानिश ने ट्रेन के शोर-ओ-गुल के बीच अपनी डायरी में लिखा कि -

"आज पहली बार हम खुद को नाम दे सके।

वो नाम नहीं जो समाज दे....

वो जो दो रूहें अपने होने के लिए रखती हैं - प्रेमी।"

(अब रिश्ता अधूरा नहीं रहा... अब दो दिल, दो लक्ष्य, और एक नाम प्रेम के साथ चल पड़े हैं। अब आगे हम यह जानेंगे जब PCS का रिजल्ट आता है आरजू SDM बनती है, और दानिश अभी इंतज़ार में है... लेकिन अब परिवार, समाज और 'कास्ट' जैसे मुद्दे उनके प्यार पर सवाल उठाने लगते हैं। वहीं से शुरू होती है उनकी असली लड़ाई अपने हक के लिए।)

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