राहुल ने अपनी कलाई पर बंधी स्मार्टवॉच देखी। रात के ग्यारह बज चुके थे। सूरत के क्लाइंट मीटिंग से अभी-अभी वह फ़्री हुआ था। पूरा दिन दिमाग खपाने वाला रहा था, और अब उसे बस मुंबई अपने आरामदायक फ्लैट में पहुँचना था। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में, उसकी दुनिया कोड, लॉजिक और डेटा के इर्द-गिर्द घूमती थी, जहाँ हर समस्या का एक तार्किक समाधान होता था। लेकिन आज की रात, उसे नहीं पता था कि उसकी तार्किकता की सीमाएँ कहाँ खत्म होने वाली थीं।
उसने अपनी चमचमाती सेडान का दरवाज़ा खोला और ड्राइवर सीट पर खुद को ढीला छोड़ दिया। एसी ऑन किया और गाड़ी को बैक किया। "रॉकमैन रॉक" की प्लेलिस्ट लगाई; हल्की, सुकून देने वाली गिटार की धुनें कार के स्पीकर्स में गूँजने लगीं। राहुल ने लंबी साँस ली और स्टीयरिंग पर हाथ रखे, धीरे-धीरे शहर की जगमगाती सड़कों से निकलकर हाईवे की ओर बढ़ने लगा। रात का सफर उसे हमेशा पसंद आता था। सड़कें लगभग खाली होती थीं, ट्रैफिक का शोर नहीं होता था, और उसे अपनी धुन में खोया रह सकता था। कभी वह अपने अगले प्रोजेक्ट की जटिल एल्गोरिदम के बारे में सोचता, तो कभी बस संगीत में लीन हो जाता।
जैसे ही गाड़ी शहर की आखिरी रोशनी को पार कर सुनसान हाईवे पर पहुँची, अँधेरे ने उसे चारों ओर से घेर लिया। सिर्फ़ उसकी कार की शक्तिशाली हेडलाइट्स ही सड़क को रोशन कर रही थीं, दूर तक फैले काले डामर पर। आस-पास मीलों तक कोई ढाबा, कोई गाँव की बत्ती नहीं दिख रही थी। बस सन्नाटा था, जो संगीत की धुन में भी अपनी मौजूदगी का अहसास करा रहा था। राहुल ने वॉल्यूम थोड़ा बढ़ाया और खुद को संगीत के हवाले कर दिया। उसे इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि इस रात के अँधेरे में, एक अनचाहा साथी उसकी यात्रा का इंतज़ार कर रहा था।
लगभग एक घंटे और पंद्रह मिनट की ड्राइव के बाद, जब राहुल एक सुनसान मोड़ से गुज़र रहा था, उसे अचानक एक हल्का-सा झटका महसूस हुआ। गाड़ी थोड़ी बाएँ-दाएँ हुई। "क्या हुआ?" उसने सोचा, और स्टीयरिंग पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली। लेकिन अगले ही पल, गाड़ी ने एक अजीब सी लचक महसूस कराई, और स्टीयरिंग थोड़ा भारी हो गया। राहुल का दिल तेज़ी से धड़का। उसने फौरन अपनी स्पीड कम की और धीरे-धीरे गाड़ी को सड़क के किनारे ले आया।
"अरे यार, इसे अभी पंचर होना था!" वह खीझते हुए बुदबुदाया। बाहर आकर उसने देखा, गाड़ी का अगला दाहिना टायर पूरी तरह पिचक चुका था। राहुल ने आसमान की ओर देखा। चाँदनी रात थी, लेकिन आसपास दूर-दूर तक कोई रोशनी या ढाबा नज़र नहीं आ रहा था। सिर्फ़ हाईवे के किनारे सूखे पेड़ और दूर तक फैला सन्नाटा था। उसने अपनी जैकेट की ज़िप बंद की, बूट खोला, और उसमें से स्पेयर टायर (स्टेपनी), जैक, और पाना निकाला। ठंडी हवा उसकी त्वचा से टकरा रही थी। रात की खामोशी में टायरों का घिसना और औजारों की खड़खड़ाहट ही सुनाई दे रही थी। उसने जैक सही जगह पर लगाया, नट ढीले किए, और पिचक चुके टायर को सावधानी से उतारने लगा। पसीने की कुछ बूँदें उसके माथे से टपक कर नीचे गिरीं, जो शायद मेहनत या फिर हल्की घबराहट का नतीजा थीं। इस दौरान, वहाँ कुछ भी असाधारण नहीं हुआ। कोई साया नहीं आया, कोई अजीब आवाज़ नहीं आई। सिर्फ़ राहुल, उसकी कार, और रात का सन्नाटा था।
लगभग बीस मिनट की मशक्कत के बाद, उसने नया टायर लगा दिया। जैक हटाया, नट कसे, और औजार वापस बूट में रखे। एक गहरी साँस लेकर, उसने अपने हाथों को झाड़ा और गाड़ी में वापस आ गया। उसे राहत महसूस हुई कि उसने मुसीबत को टाल दिया था। एक आखिरी नज़र पीछे के शीशे में डाली, जहाँ सिर्फ़ अँधेरा और सुनसान सड़क दिख रही थी, और फिर मुंबई की ओर अपनी यात्रा फिर से शुरू कर दी।
जैसे ही उसकी कार ने दोबारा गति पकड़ी, एक अदृश्य, सूक्ष्म साया, जो अब तक सड़क के किनारे या पेड़ों के बीच छिपा था, चुपचाप राहुल की कार के अंदर प्रवेश कर गया। वह न दिखाई दिया, न महसूस हुआ। राहुल को अपनी गाड़ी में किसी भी बदलाव का रत्ती भर भी अहसास नहीं था। उसे नहीं पता था कि वह अब अकेला नहीं था, और यह पंचर टायर केवल एक बहाना था उस अनचाहे मेहमान के लिए, जो अब उसके साथ मुंबई की तरफ़ बढ़ रहा था।