Andheri Kothari ka Rahashy - 8 in Hindi Horror Stories by Pawan books and stories PDF | अंधेरी कोठरी का रहस्य - भाग 8

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अंधेरी कोठरी का रहस्य - भाग 8


📖 एपिसोड 6: छाया का वंश

🌑 वर्तमान
हवेली का गर्भगृह, आधी रात
आधी रात के सन्नाटे में, हवेली के गर्भगृह में रागिनी फर्श पर बैठी थी। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, धड़कनें मानो पूरे ब्रह्मांड में गूँज रही हों। आँखें खुली थीं, उनमें अब डर का कोई निशान नहीं था। इसके बजाय, एक अजीब सी दृढ़ता झलक रही थी, जैसे किसी गहरे घाव से जूझने के बाद नई शक्ति का उदय हुआ हो। वह बुदबुदाई, उसके शब्द काँपते हुए भी अटल थे, “अगर तू मेरे भीतर है, भैरव नाथ... तो मैं तेरे भीतर की कमजोरी ढूँढूँगी।”
जैसे उसकी बात सुनकर प्रकृति ने प्रतिक्रिया दी हो, किताब के पन्ने अचानक तेज़ी से पलटने लगे। हवा का एक झोंका कहीं से आया और पन्ने सरसराहट के साथ रुके। एक नया अध्याय खुला— "छाया के रक्त का रहस्य"। यह शीर्षक ही अपने आप में एक अनकही कहानी समेटे हुए था, एक ऐसा रहस्य जो रागिनी के पूर्वजों से जुड़ा था।

📜 अध्याय 3 – छाया का वंश
रागिनी ने अध्याय की पहली पंक्ति पढ़ी और उसके भीतर एक सिहरन दौड़ गई: “हर आत्मा की जड़ें किसी जीवित रक्त से जुड़ी होती हैं। अगर वह रक्त पहचान ली जाए, तो आत्मा को नियंत्रित किया जा सकता है… लेकिन अगर उस रक्त ने कभी अंधकार को छुआ हो, तो वह स्वयं शुद्ध नहीं रहता।”

यह वाक्य उसके दिल में तीर की तरह लगा। शुद्धता? अंधकार? क्या इसका मतलब यह था कि उसके अपने वंश में कोई ऐसा था जिसने अंधकार को छुआ था? एक अज्ञात भय उसके मन में घर कर गया, लेकिन साथ ही एक नई उम्मीद भी जगी – अगर रक्त को पहचाना जा सके, तो भैरव नाथ को नियंत्रित किया जा सकता है!

वह तुरंत उठी और हवेली की पुरानी आलमारी की ओर भागी। यह वही आलमारी थी जहाँ उसकी दादी, दिव्या, के पुराने दस्तावेज़ और स्मृतियाँ सहेज कर रखी गई थीं। हाथों ने तेज़ी से उन धूल भरी फाइलों को टटोला, जब तक कि उसे एक पीला, फटा हुआ वंशवृक्ष नहीं मिल गया। कागज़ इतना पुराना था कि उसे छूने पर भी टूटने का डर था, लेकिन रागिनी ने उसे सावधानी से खोला।

उसकी निगाहें नामों पर दौड़ीं: "दिव्या" — पुत्री — "आरती" — पुत्री — "रागिनी"। यह उसका अपना वंश था, जिसकी कहानियाँ उसने बचपन से सुनी थीं। लेकिन फिर उसकी नज़र एक ऐसे नाम पर पड़ी, जिसे काले स्याही से मिटाने की कोशिश की गई थी। नाम था — "रंजना"।

“यह कौन थी?” रागिनी फुसफुसाई, उसकी आवाज़ में आश्चर्य और बेचैनी थी। जैसे ही उसने यह नाम लिया, एक ठंडी हवा का झोंका उसके पास से गुजरा और छाया की आवाज़ गूँज उठी। यह आवाज़ उसके भीतर से आ रही थी, लेकिन इतनी स्पष्ट थी कि मानो कोई उसके ठीक सामने खड़ा हो। “वह तेरी दादी की जुड़वाँ बहन थी… जिसे तंत्र में झोंक दिया गया था। भैरव नाथ ने उसी के शरीर को साधना के लिए चुना था…”
रागिनी को लगा जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई हो। जुड़वाँ बहन? तंत्र? भैरव नाथ ने उसके ही पूर्वज के शरीर को साधना के लिए चुना था? यह जानकारी एक झटके की तरह थी, जिसने उसके पूरे अस्तित्व को हिला दिया। अब उसे समझ में आया कि क्यों भैरव नाथ उसके रक्त में इतना गहरा समाया हुआ था।



रागिनी की आँखों के सामने एक धुंधली तस्वीर उभरी, जैसे समय ने अपने परदे हटा दिए हों। वह खुद को वर्ष 1962 में, एक गुप्त साधना स्थल पर पा रही थी। रंजना, एक युवा लड़की, भैरव नाथ के ठीक सामने बैठी थी। उसकी आँखें डरी हुई थीं, शरीर काँप रहा था, लेकिन उन आँखों में एक अजीब सी चमक थी—एक ऐसी चमक, जो किसी गहरे रहस्य या अनजाने खतरे का संकेत दे रही थी।
भैरव नाथ की आवाज़ वहाँ गूँज रही थी, गहरी और प्रभावशाली। “तेरा रक्त दिव्या जैसा ही है, पर तेरी आत्मा ज़्यादा खुलने को तैयार है। तुझमें मेरी ऊर्जा बस सकती है…” उसके शब्द एक विषैले साँप की तरह रंजना के मन में उतर रहे थे। रंजना का चेहरा पीला पड़ रहा था, लेकिन वह उठ नहीं पा रही थी।
और फिर… एक भयानक मंत्र का जाप शुरू हुआ। मंत्र की हर ध्वनि के साथ रंजना की आँखों में भय और दर्द की लहरें उठने लगीं। एक चीख… जो इतनी दर्दनाक थी कि रागिनी के कानों में भी गूँज उठी। यह चीख रंजना की थी, उसकी आत्मा की थी, जो भैरव नाथ के जाल में फंस रही थी। और उसके बाद… रंजना की आत्मा हवेली में क़ैद हो गई। यह दृश्य रागिनी के मन में गहरे तक बैठ गया, एक ठंडी, दर्दनाक याद बन कर।

वर्तमान
– छाया का पुनः प्रकट होना
भूतकाल के भयावह दृश्यों से बाहर आकर रागिनी ने देखा कि उसके सामने एक स्त्री आकृति धीरे-धीरे उभर रही थी। लंबे बाल थे, और चेहरा जले हुए घावों से भरा था, जिससे गहरा दर्द झलक रहा था। आकृति में एक अजीब सी उदासी थी, मानो उसने सदियों का दुःख समेट रखा हो।
“मैं रंजना हूँ… तेरे भीतर मेरी परछाई भी है। तू सिर्फ दिव्या की नहीं, मेरी भी उत्तराधिकारी है।” रंजना की आत्मा के शब्द हवा में घुल गए, सीधे रागिनी के दिल में उतरे। यह सुनकर रागिनी घबरा गई। उसकी दादी की जुड़वाँ बहन, जिसे भैरव नाथ ने बलि चढ़ा दी थी, वह उसके भीतर थी?
रागिनी ने हिम्मत जुटाई और आवाज़ काँपते हुए भी पूछा, “अगर तुम मेरी पूर्वज हो… तो मेरी मदद क्यों नहीं कर रहीं?”

रंजना की आत्मा ने गहरी साँस ली, “क्योंकि मेरी आत्मा अब दो भागों में बँटी हुई है — एक भैरव के पास, और एक तुझमें। जब तक तू खुद को नहीं पहचानती, तब तक तू उससे नहीं लड़ सकती।”
यह सुनकर रागिनी के मन में एक उलझन पैदा हो गई। उसकी अपनी पहचान क्या है? क्या वह सिर्फ दिव्या की पोती है, या रंजना की भी परछाई है? यह सवाल उसके अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहा था।

रंजना की बात पूरी होते ही, रागिनी को अचानक एक अजीब सा एहसास हुआ। उसके भीतर कोई और भी साँस ले रहा था, कोई और चेतना जो उसकी अपनी चेतना से अलग थी। यह ऐसा था जैसे दो अलग-अलग धाराएँ एक ही नदी में मिल गई हों, और अब उन्हें अलग करना असंभव सा लग रहा था।

उसके हाथ खुद-ब-खुद उस किताब के अंतिम मंत्र पर जा पहुँचे, जो उसके पास रखी थी। उसने पढ़ा— “रक्तांतर साधना”। यह शीर्षक उसके भीतर एक तूफान सा ले आया। किताब में स्पष्ट लिखा था कि यह वो प्रक्रिया थी जिसमें आत्मा और शरीर का संतुलन बिगड़ सकता था। अगर यह सफल हुआ, तो रागिनी भैरव नाथ को अपने भीतर से बाहर निकाल सकती थी, उसे मुक्त कर सकती थी। लेकिन अगर यह असफल हुई, तो उसकी अपनी आत्मा जल सकती थी, वह हमेशा के लिए छाया में गुम हो सकती थी। यह एक जुआ था, एक ऐसा दाँव जिस पर उसका पूरा जीवन टिका था।

 निर्णय की रात – पूर्णिमा से कुछ घंटे पहले
पूर्णिमा की रात करीब थी। रागिनी ने हिम्मत करके उस खतरनाक साधना को करने का फैसला किया। उसने हवेली के गर्भगृह में एक वृत्त बनाया। सात दीपक जलाए, जिनकी लौ मंद-मंद काँप रही थी, जैसे आने वाले तूफान की चेतावनी दे रही हो। फिर उसने अपनी उंगली चीरकर अपने चारों ओर रक्त की एक रेखा खींची। यह रक्त सिर्फ भौतिक नहीं था, बल्कि उसके पूर्वजों की विरासत और उसके अपने दृढ़ संकल्प का प्रतीक था।

वह मंत्र पढ़ने लगी— “आत्मन दृष्टि स्वाहा… रुधिर बंध स्वाहा…” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी शक्ति थी, डर और दृढ़ता का मिश्रण। जैसे ही उसने मंत्र पूरा किया, एक भयानक कंपन हुआ। पूरी हवेली थर्रा उठी, जैसे धरती काँप रही हो।

रंजना की आत्मा उस कंपन के बीच प्रकट हुई। उसका चेहरा अब अधिक स्पष्ट था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी पीड़ा थी। उसने कहा, “अब या तो तू मुझे मुक्त करेगी… या फिर तू भी मेरे जैसी बन जाएगी – आधी अधूरी, छाया में गुम…” यह चेतावनी रागिनी के मन में गूँज उठी। यह सिर्फ रंजना की मुक्ति नहीं थी, बल्कि रागिनी की अपनी मुक्ति भी थी।

पूरे हवेली की दीवारें थरथराने लगीं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें अंदर से तोड़ रही हो। एक गहरा, काला धुँआ ज़मीन से उठने लगा और धीरे-धीरे एक भयानक आकृति में बदलने लगा— भैरव नाथ की आकृति। वह पहले से कहीं ज़्यादा विकराल था, उसकी आँखें लाल अंगारों की तरह चमक रही थीं।

“तू किताब को समझती है? यह किताब मेरी बनाई हुई है! तेरे रक्त में मैं बस चुका हूँ!” वह गुर्राया, उसकी आवाज़ में अहंकार और क्रोध था। वह सोच रहा था कि रागिनी ने उसके ही खेल में उसे फँसाने की कोशिश की थी।

लेकिन इस बार रागिनी ने भयभीत होने के बजाय एक नई दृढ़ता दिखाई। उसने हाथ में पकड़ी किताब बंद कर दी। यह सिर्फ कागज़ और स्याही का संग्रह नहीं था, बल्कि ज्ञान और शक्ति का प्रतीक था। उसने अपनी हथेली चीरकर अपने रक्त को मिट्टी पर टपकाया। रक्त का हर बूँद उसके संकल्प का प्रतीक था।

“फिर तू मेरा हिस्सा है, भैरव…” उसने ठंडे और स्पष्ट स्वर में कहा, “और जो हिस्सा बनता है, उसे बाँधा भी जा सकता है।” यह कहते हुए उसने अपनी हथेली से रक्त की ऊर्जा को केंद्रित किया और एक शक्तिशाली मंत्र फेंका— “छाया पाशाय नमः स्वाहा…”

जैसे ही मंत्र पूरा हुआ, भैरव की विकराल आकृति एक तेज़ चीख में घुलने लगी। चीख इतनी दर्दनाक थी कि हवेली की दीवारों में दरारें पड़ने लगीं। उसके काले बाल राख बनकर उड़ने लगे, जैसे उसका अस्तित्व ही मिट रहा हो। वह धीरे-धीरे धुँए में बदल गया और फिर हवा में विलीन हो गया।

रागिनी ने भैरव नाथ की आत्मा को जकड़ तो लिया है… लेकिन उसकी जुड़वाँ परछाई – रंजना – अब पूरी तरह उसके भीतर जाग चुकी है। रंजना का अस्तित्व अब रागिनी के भीतर एक अभिन्न अंग बन गया था।
अब सवाल यह है — क्या रागिनी स्वयं की चेतना बचा पाएगी, या फिर छाया बन जाएगी उस शक्ति की, जिसे उसने अभी बाँधा है? यह लड़ाई बाहरी नहीं, बल्कि उसके अपने भीतर की है, एक ऐसी लड़ाई जो उसके अस्तित्व के हर पहलू को चुनौती देगी।

आगे क्या होगा? क्या रागिनी भैरव नाथ की शक्ति को अपने नियंत्रण में रख पाएगी या वह खुद उसी छाया का हिस्सा बन जाएगी जिससे उसने अभी-अभी मुक्ति पाई है?  जानने के लिए पढ़ते रहिए अगला भाग।