टाम ज़िंदा है -------
ये कहानी उस झरने की तरा है जो चटानो से गिरता हुआ चटानो मे ही नदी बन कर समा जाता है... ये वो सवेदना एक भावक प्रकिति है जो हम कूछ भूल कर भी आगे चलते जाते है।
उस को पकड़ कर भवानी ने कहा था ----" तुम लोगों को जितना भी उच्चा उड़ा लो, तुम गिरते वही हो, यहाँ तुम बने हो। " फिर वो एक रूम मे ले गया, " बस तुम ये बोल दो, कि गिरजा ने ही हथोड़े इस्तेमाल किये है,त्रिपाठी के वो अभोल बच्चे को। " वो ये सोच कर वो हस पड़ा। फिर वो बोला, " मै तो बोल दुगा, पर अमरीश मंत्री से मुझे कौन बचायेगा,और वो राये जो जगली जानवरो का उच्चे लेवल पर समग्लिग करता है, उसका चमड़ा वेच ता है, उनको पकड़ पाओगे, साहब ----- फिर रुक कर बोला " ये बाते है हम तक बस यही रह जाएगी। "
"बंदे तुम मुझे काम के लगे। " भवानी ने कहा। " सुनो, हम ये सीक्रेट रखे गे, नाम तुमाहरा अजय है, याद रखो, जिंदगी मे हमें कभी धोखा मत देना, हम तुम्हे जान खेल के भी बचाएंगे। " भवानी का वादा है।" घर परिवार को कूच भी नहीं होने देंगे। "
" हम थक चुके है "
सच्ची मे सर, भाग भाग कर। " वो फिर चुप हो गया। मोबाईल चलता रखना, ट्रेज कर लिया गया। " यार इसे कभी बंद मत करना। "
" यार का लफ़्ज़ सुनते ही अजय जैसे खुश और मुस्काने लगा। " फिर वो चुपी तोड़ते हुए बोला " सर एक बात पुछू, चलो मेरा तो पाराशचत है, बाकी इनकी कया ग्रंटी है...
भवानी ने हसते हुए कहा.... " तुम मुखबिर हो पुलिस पार्टी के, ये त्रिपाठी और मेरे बीच जो बाते हुई, वो हम एक परिवार की बाते है.... पूजा का इलाज हो रहा है, रंजीत भी तुम्हारे साथ बैठा है। " हम आप के साथ है, तुम कया ------- " वो एक आवाज़ मे बोले। चलो फिर जाओ मैंने कूछ दर्ज़ किये बिना ही छोड़ दिया।
वो जा चुके थे।
तीन दिन बाद अख़बार मे खबर थी।
राये को बड़ी हिरासत मे पकड़ लिया गया था। ये एक बड़ी जीत थी। ये सारा सेहरा भवानी सिंह पर गया था।
कैसे हुआ सब। दिमाग़ से। तेज -- करारी मे....... रात का वक़्त था, एक टूटी सी हवेली मे मिले थे, सब को सेहला दिया था, ये सारा सेहरा उसने अजय और रंजीत को दिया था... पूजा तो हॉस्पिटल मे थी जिसकी घुटने की हड्डी टूट चुकी थी।
वो जाने लगे। तो भवानी ने दोनों की पीठ पीछे गोलिया मार दी... धाएं.... धाएं....
वो आपनी गाड़ी काफ़ी पीछे ला कर आया था... बैठा और सीधा त्रिपाठी के घर।
त्रिपाठी बैठा पी रहा था.... दो पेग पी चूका था। उसका रिवाल्वर मेज पर ही पड़ा था... वो सदारण भेष मे था।
सोचे हुए चिटकनी खोली, भावनी को सामने देख, बोला " आ मेरे यार कैसे हो। "
" फसक्लास हूँ... "
"भाभी जी ---और ----- "
"सौ चुके है सब "
दोनों थोड़ी देर बैठे विस्की पीते रहे। भवानी ने कहा " त्रिपाठी कभी आ जायेया करो पुलिस स्टेशन "
"हाँ यार ---- उन दोनों का रिमांड लिया... ओ सच नहीं कहना भूल गया, कमबख्त धोखा दें गए। "रुक कर बोला ------------------------------------------------------"पता नहीं,
अब फोन ही बंद आते है " त्रिपाठी झूलते हुए वही एक और हो गया। भवाoनी घर आया आपने, बाहर की चटकनी लगायी।
(चलदा )----------------------(नीरज शर्मा )