कमरे के बाहर दीवार पर खून से लिखा वह वाक्य — “जो यहाँ आता है, वो लौटता नहीं” — सबकी साँसें रोक चुका था। आर्यन ने हाथ से तारा को पीछे किया और धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़ा। कबीर का चेहरा पूरी तरह ज़र्द पड़ गया था, लेकिन फिर भी वो डर के मारे आर्यन के पीछे-पीछे चलता गया।
रिया रोती हुई सीढ़ियों पर बैठ गई थी। उसका दिल तेज़-तेज़ धड़क रहा था, लेकिन डर से ज़्यादा उसे इस बात की चिंता थी कि देव कहाँ गया था? क्या वो ठीक था?
“दरवाज़ा तो खोलो आर्यन,” कबीर ने धीमे से कहा।
“तू खोलेगा?” आर्यन ने पलटकर पूछा।
कबीर दो कदम पीछे हट गया, “मैं मोरल सपोर्ट के लिए हूँ।”
तारा ने धीरे से आर्यन के हाथ को छुआ, “मैं साथ हूँ।”
आर्यन ने गहरी साँस ली और दरवाज़े का हैंडल घुमाया।
दरवाज़ा… खुद-ब-खुद खुल गया।
कमरा अँधेरे से भरा हुआ था, लेकिन बाहर से आती लालटेन की हल्की सी रौशनी ने दिखा दिया — कमरे के अंदर कोई नहीं था।
"देव!" आर्यन ने ज़ोर से पुकारा।
कोई जवाब नहीं।
तभी… कमरे के एक कोने से हल्की सी खरोंचने की आवाज़ आई।
कबीर ने डर से तारा का दुपट्टा पकड़ लिया, “बोल दे कोई चूहा है… चूहा ही होगा ना?”
“अगर चूहा इंसानों की तरह सांस ले सकता है, तो हाँ,” तारा ने जवाब दिया।
अचानक दीवार पर एक परछाई उभरी — लंबी, टेढ़ी-मेढ़ी, जैसे किसी ने जान-बूझकर उसका आकार बिगाड़ा हो। लेकिन परछाई का कोई स्रोत नहीं था। वो न तो किसी इंसान से आ रही थी, न किसी वस्तु से।
"ये क्या है..." तारा की आवाज़ काँप गई।
आर्यन ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए, और जैसे ही उसने टॉर्च उस कोने में डाली, वहाँ कुछ नहीं था — सिवाय एक पुराने खून से सनी गुड़िया के, जो ज़मीन पर पड़ी थी।
"ये गुड़िया कहाँ से आई?" कबीर पीछे हट गया।
आर्यन ने उसे छूने की कोशिश की, तभी...
गुड़िया की आँखें पलट गईं और वो बोल पड़ी — "तुम सब मरोगे..."
कबीर ज़ोर से चिल्लाया, "मम्मी!" और तारा को पीछे धकेलते हुए दौड़ पड़ा।
आर्यन भी उछल पड़ा और टॉर्च नीचे गिर गई। आवाज़, गुड़िया, सब एक पल में गायब हो गया। कमरा फिर से शांत था — लेकिन वो शांति अब पहले से ज़्यादा डरावनी थी।
"यहाँ कुछ बहुत ग़लत हो रहा है," तारा ने कहा। "देव सच कह रहा था। इस हवेली में कुछ है, कुछ... जो हमें नहीं चाहता।"
“हमें नीचे चलकर बाकी लोगों को बताना चाहिए,” आर्यन बोला।
वे दोनों जल्दी-जल्दी सीढ़ियों से नीचे भागे, जहां निशी अब भी मोमबत्ती लिए खड़ी थी और रिया नीचे बैठकर लगातार ‘देव’ का नाम बुदबुदा रही थी।
"देव मिला?" रिया ने तुरंत पूछा।
आर्यन ने सिर हिलाया, “नहीं। लेकिन हमें कुछ बहुत डरावना मिला…”
कबीर बीच में बोल पड़ा, "एक बोलती हुई गुड़िया! और वो मुझसे कह रही थी कि मैं मरने वाला हूँ। ऐसा कौन करता है भाई? ऐसा कौन सा खिलौना होता है? कौन डिजाइन करता है ऐसी चीज़ें?"
"चुप हो जाओ, कबीर!" निशी चिल्लाई। "तुम्हारी ये मजाकिया बातें अब हँसी नहीं दिलातीं। ये सब अब सीरियस है।"
"मैं तो डर से हँसता हूँ," कबीर ने धीरे से कहा।
अचानक, एक ज़ोरदार धमाका हुआ — हवेली के मुख्य दरवाज़े ने खुद-ब-खुद भयानक आवाज़ के साथ बंद होकर ताले में बदल लिया। जैसे किसी ने बाहर से नहीं, बल्कि भीतर से उसे बंद कर दिया हो।
रिया फौरन उठी और दरवाज़े की ओर दौड़ी। उसने हैंडल घुमाया — लॉक हो चुका था।
"हम… फँस गए हैं।" उसने फुसफुसाया।
"अब क्या करें?" निशी रोने लगी।
आर्यन ने सबको शांत करने की कोशिश की। “हमें इकट्ठे रहना होगा। ये हवेली हमारे डर को महसूस कर रही है… और उसका इस्तेमाल कर रही है।”
कबीर फिर बोला, “सही कहा तूने। हवेली ही असली विलेन है। हम तो इसके शिकार हैं। मैं तो कहता हूँ कि हमें इससे बात करनी चाहिए। हे हवेली महारानी, तेरा कोई पुराना बिल तो नहीं बाकी?”
“कबीर!” सबने एक साथ चिल्लाया।
लेकिन तभी...
सीढ़ियों के पास से एक आवाज़ आई।
धीमा… डूबता हुआ… और पूरी तरह अलग।
“रिया... रिया... बचाओ...”
"देव!" रिया चौंक कर खड़ी हो गई।
"वो मेरी आवाज़ है!" उसने कहा। "वो मुझे पुकार रहा है!"
"रिया, रुक जाओ!" आर्यन ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन रिया खुद को छुड़ाकर ऊपर की ओर दौड़ पड़ी।
सब उसके पीछे दौड़े, लेकिन रिया उस कोने की ओर चली गई जहाँ अब तक कोई नहीं गया था — हवेली का तीसरा हिस्सा, जहाँ छत ढह चुकी थी, और दीवारें सीलन से भरी थीं।
एक पुराना कमरा, जिसमें शायद वर्षों से कोई नहीं गया था।
रिया ने दरवाज़ा खोला।
भीतर अंधेरा था, लेकिन कमरे की छत से कुछ चमकती चीज़ें झूल रही थीं — पुराने पेंडुलम घड़ियाँ, जो अब भी बिना रुके चल रही थीं।
“ये सब... चालू कैसे हैं?” कबीर ने हैरानी से पूछा।
रिया ने चारों ओर देखा, और फिर फर्श पर बैठी एक आकृति पर उसकी नज़र गई — देव।
उसकी पीठ दीवार से लगी थी, और उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था।
"देव!" रिया दौड़ी और उसके पास बैठ गई। "तुम ठीक हो? बोलो कुछ!"
देव ने धीरे-धीरे उसकी ओर देखा… उसकी आँखें अब लाल थीं।
"तुम… तुम सबको… यहाँ नहीं आना चाहिए था…"
"क्यों? क्या हुआ यहाँ?" आर्यन ने पूछा।
देव ने काँपते होंठों से कहा, "ये हवेली… ज़िंदा है। ये हमारी भावनाओं से खेल रही है। ये हमें एक-एक करके तोड़ रही है। और फिर… ले जाएगी।”
“ले जाएगी?” तारा ने पूछा।
"मेरे भाई… मेरे कज़िन्स... सब यहीं गायब हुए थे। मैंने तब भी यही आवाज़ें सुनी थीं… और अब फिर सुन रहा हूँ। मैं बच नहीं पाया था तब... और शायद अब भी न बच पाऊँ।"
रिया ने उसका हाथ थामा, “तुम इस बार अकेले नहीं हो। हम सब साथ हैं।”
देव की आँखों में पहली बार हल्की सी राहत चमकी।
तभी आर्यन की नज़र दीवार पर गई — एक पुराना चित्र।
चित्र में छह लोग थे — तीन जोड़े।
"ये… ये तो हम जैसे दिखते हैं!" आर्यन ने चौकते हुए कहा।
"क्या?" तारा, कबीर, और निशी सब पास आ गए।
“ये... ठीक हमारी तरह के चेहरे हैं,” तारा ने कहा। “क्या ये… पहले के शिकार हैं?”
देव धीरे से बुदबुदाया, "नहीं... ये वही हैं... जो वापस नहीं आए..."
कमरे की घड़ियाँ एक साथ टन-टन-टन बज उठीं।
और दरवाज़ा बंद हो गया।