नवाब को काजी की यह बात बहुत पंसद आई
नवाब ने श्री गुरु नानक देव जी के लिए संदेश भेजा कि आज की आज वो हमारे साथ मिलकर नमाज़ पढ़ें। और श्री गुरु नानक देव जी ने उन की बात मान ली और श्री गुरु नानक देव जी मस्जिद पहुंच गए। काजी और नवाब वहां पहले से ही पहुंच चुके थे जब नमाज़ अरंभ हुई तो काजी और नवाब साहब नमाज़ के उसूलों के अनुसार नमाज पढते रहे।
पंरतु श्री गुरु नानक देव जी चुपचाप खड़े रहे।
जब नमाज़ समाप्त हुई तो नवाब और काजी दोनों क्षुब्ध होकर कहने लगे आपने यहां पहुंच कर भी हमारे साथ नमाज़ नहीं पढ़ी है।
उनकी बात सुन कर श्री गुरु नानक देव जी मुस्कराए और कहने लगे मै नमाज़ किसके साथ पढ़ता हे काजी सहिब। आप तो उस वक्त यहां नहीं थे ।
काजी हैरान हो कर कहने लगा मैं यहां क्यों नही था मैंने तो आपने सामने नमाज पढ़ी है।
और नवाब साहब भी इसके गवाह हैं। श्री गुरु नानक देव जी कहने लगे यह बात मैं मानता हूं कि शारीरिक रूप से तो आप यही पर थे और आप झुकते और उठते भी रहे लेकिन आपका मन यहां नहीं था, मन तो आपका आपके घर में घूम रहा था।
आपकी घोड़ी ने घोडी के बच्चे को जन्म दिया है ,आपका मन तो उस घोड़ी के बच्चे में था कि वह उछलता उछलता हुआ कहीं कुएं में ना गिर जाए।
इसलिए जब आप यहां पर थे ही नहीं तो मैं कैसे आपके साथ नमाज़ पढ़ता ?
श्री गुरु नानक देव जी के इस कड़वे सच को सुन कर काजी बहुत शर्मिन्दा हो गया । और उस काजी ने कहा अच्छा चलों मै नहीं था लेकिन नवाब साहब तो यही पर नमाज पढ़ रहे थे तो आप नवाब साहब के साथ नमाज़ पढ़ लेते।
श्री गुरु नानक देव जी फिर से मुस्कुराए और नवाब साहब की ओर देखकर बोले नवाब साहब भी उस वक्त यहां पर कब थे नवाब साहब का मन तो सुल्तानपुर लोधी मे इनके घर में ही घूम रहा था लेकिन नवाब साहब तो हिंदोस्तान से बाहर काबुल में घोड़े खरीद रहे थे, फिर बताओं वह काबुल पहुंचे हुए थें मै नमाज़ किसके साथ पढ़ता ?
कुछ दिन सुल्तानपुर लोधी मे कीर्तन का प्रवाह चला कर और नगर वासियों को सत्य धर्म का उपदेश देकर श्री गुरु नानक देव जी संसार का कल्याण करने हेतु चल दिए।
उन्होंने अपने इस उद्देश्य बारे बेबे नानकी और पत्नी सुलखनी जी को जब बताया तो वे दोनों बहुत उदास हो गई।बेबे नानकी का प्रिय भाई उसकी आंखों के समक्ष ही एक पूजनीय हस्ती बन गया था।राय बुलार और बेबे नानकी पहले ये दो व्यक्ति थे जिन्हें यह पता लग गया था कि श्री गुरु नानक देव जी एक निरंकारी रूप है।
और वह इस जलती दुनिया को शांत करने हेतु आए हैं।
इसलिए उन्हें गर्व था कि उसका भाई आकरथ ही परिवार को छोड़ कर नहीं जा रहा था अपितु वह दुनिया को प्रेम की शिक्षा देने जा रहे हैं।
सुल्तानपुर लोधी को अलविदा कह कर श्री गुरु नानक देव जी एक लंबी यात्रा के लिए चल पड़े
भाई मरदाना भी उनके साथ था।