इस यात्रा का पहला पड़ाव उन्होंने सैदपुर, जिसे अब ऐमनाबाद कहा जाता था।
वहां जाकर पड़ाव किया। श्री गुरु नानक देव जी ने एक नवीन प्रकार का लिबास पहना था। और भाई मरदाने ने भी ऐसे ही विलक्षण लिबास के साथ एक विलक्षण साज़ उठाया हुआ था। जब वे चलते जा रहे थे तो श्री गुरु नानक देव जी ने देखा कि एक कारीगर अपने काम में मग्न कृषि - पालन से संबंधित औजार बनाने में मस्त है । श्री गुरु नानक देव जी वहां पर खड़े हो गए और भाई मरदाने से कहने लगे
हमें आज हमारा पहला सिक्ख मिल गया है।
इस मनुष्य की ओर देखो यह अपने काम में इतना लीन है कि इसे शेष दुनिया का कोई एहसास नहीं। जैसे श्रमिक ने अपने श्रम में मन लगाया है और अपने बाहरी माहौल को भूल गया है।
यदि ऐसे मनुष्य अपनी वृत्ति प्रभु के शब्द से जोड़े तो अपने वह प्रभु को पा सकता है।
आज हमारा पहला पड़ाव यहीं पर होगा।
सैदपुर में मलिक भागो, वहां नवाब का प्रभारी था, वह सरकारी शह पर अत्यंत जुल्म करके धन कमाता था।
और स्वयं को खुद ही भगवान समझता था।
अपने अपको श्रेष्ठ बनाते हेतु उसने एक दिन ब्रह्मभोज किया और अपने अहलकारों से कहा कि हर साधु संत महात्मा इस ब्रह्मभोज खाने के लिए आने चाहिए। श्री गुरु नानक देव जी और भाई मरदाने को भी यह संदेश पहुंचा लेकिन श्री गुरु नानक देव जी ने जाने से स्पष्ट इंकार कर दिया।
मलिक भागो ने बडे प्रयास किये की श्री गुरु नानक देव जी को अपने ब्रह्माभोज पर ले आए लेकिन श्री गुरु नानक देव जी ने किसी भी तरह ना माने। इस तरह जब श्री गुरु नानक देव जी ने मलिक भागो के छतीस पदार्थों को खाने से इंकार कर दिया और विशेष तौर पर खुद बालाने आए। मलिक भागो के दुतों यह कह कर भिजवाया की मलिक जी के रक्त से लथपथ पदार्थों से मुझे भाई लालो की सूखी रोटी बहुत पसंद हैं तो मलिक भागो को बहुत क्रोध में आ गया। उसने अपने नौकरों को आदेश दिया कि वह किसी ढंग से श्री गुरु नानक देव जी को मेरे यहां ब्रह्म भोज के लिए लेकर आए और उन्होंने बतायें की उसके पकवान में कैसे रक्त भरा था।जब श्री गुरु नानक देव जी को यह संदेश मिला तो वह भाई लालो एवं अपने अन्य श्रद्धालुओं को लेकर मालिक भागो के ब्रम्हभोज पर पहुंच गए।
फिर मलिक भागो क्रोध में आ गया और उसने श्री गुरु नानक देव जी से कहा आपने मेरे पकवानों को रक्त से भीगा कहा है, जबकि इसकी तैयारी में मैंने कई मण घी लगा दिया और श्री गुरु नानक देव जी को थोड़ा गुस्सा आ गया और वे उठकर कहने लगे, इसमें कोई शक है कि गरीब की मेहनत की कमाई अमृत का रूप होती है और उच्च जाति के ज़ुल्म व अत्याचार से छीनी रोटी जो इतने लोगों के रक्त को चुस कर बनी है। वह रोटी रक्त के घुटों से कैसे कम है। इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आपके घी से बने पदार्थो में रक्त है और कोदरे की रोटी में दूध जैसा अमृत है।
क्रमशः ✍️