The Burning of Allahabad – 1857 in Hindi Fiction Stories by Mohd Ibrar books and stories PDF | 1857 का इलाहाबाद

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1857 का इलाहाबाद

यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। इसमें वर्णित पात्र, घटनाएं और स्थान केवल लेखक की कल्पना का परिणाम हैं। इसका किसी भी वास्तविक व्यक्ति, समुदाय या इतिहास से कोई संबंध नहीं है।



Title: "1857 का इलाहाबाद: बलिदान की गाथा"
(एक फिल्मी अंदाज़ कहानी पर आधारित)


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1. इलाहाबाद की वो सुबह 

1857 से पहले का इलाहाबाद एक रंग-बिरंगा सांस्कृतिक नगर था। गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी में बसे इस शहर में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसालें देखने को मिलती थीं। गलियों में बच्चों की किलकारी, मंदिरों की आरती और मस्जिदों की अज़ान साथ-साथ गूंजती थी।

इलाहाबाद का बाज़ार गुलजार रहता, हर नुक्कड़ पर चाय की दुकानें, मिठाइयों की खुशबू और पहलवानों की कुश्ती होती। शहर के कोतवाल शरीफ खान और पंडित वसंत तिवारी – दो जिगरी दोस्त – शहर की हिफाज़त में लगे रहते। रियासत के लोगों में रज़ा बेग, हरनाम सिंह, बिस्मिल खान, जोधा नायक जैसे जांबाज़ भी शामिल थे।

नगर के राजमहल में राजा मान सिंह का राज चलता था – एक धर्मनिरपेक्ष, विद्वान और न्यायप्रिय राजा। उनका दरबार हर धर्म के लोगों के लिए खुला रहता। संगीत, नाटक, युद्ध-विद्या और शांति नीति – हर कला में निपुण।

पर कोई नहीं जानता था कि यह शांति अधिक दिन टिकने वाली नहीं।


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2. राजा कौन था – राजा मान सिंह 

राजा मान सिंह, मगध वंश से थे। वह बचपन से ही वीरता और कूटनीति में माहिर थे। उन्हें किताबें पढ़ने, घुड़सवारी और तलवारबाज़ी का शौक था।

मान सिंह की एक खासियत थी – जनता का राजा बनना, महल में नहीं बल्कि मैदान में रहना। उनकी सेना में हर धर्म, जाति और वर्ग का सिपाही शामिल था।

उनके सेनापति थे –

राजा हरनाम सिंह (घुड़सवार सेनापति)

रज़ा बेग (तोपख़ाना प्रमुख)

शिवा राठौड़ (गुप्तचर विभाग)

बिस्मिल खान (जनता का प्रतिनिधि योद्धा)

जोहरी लाल (रणनीति सलाहकार)


राजा की छोटी सी रियासत में भी चिंगारी थी – अंग्रेज़ों से टकराने की चिंगारी।


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3. पहला हमला – अंग्रेज़ों की चाल 

1857 की क्रांति जैसे ही मेरठ से शुरू हुई, इलाहाबाद भी जाग गया। अंग्रेज़ अफसर कैप्टन रॉबर्ट हैरिसन ने पहली बार 6 जून 1857 को इलाहाबाद के छावनी क्षेत्र में गोली चलाने का आदेश दिया।

राजा मान सिंह को खबर मिली, तो उन्होंने अपने सेनापतियों को बुलाया। उन्होंने फैसला किया – युद्ध गुप्त रूप से तैयार होगा।

अंग्रेज़ों ने पहले नगर के पुलों और चौकियों पर कब्जा किया। फिर मुस्लिम बहुल मोहल्लों पर हमला बोल दिया। कई बेगुनाह नागरिक मारे गए।


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4. दूसरा हमला – रियासत की दीवारें टूटीं 

20 जून 1857 – अंग्रेज़ों ने राजा के महल की ओर बढ़त बनाई। तोपों से महल की दीवारें उड़ाई गईं।

रज़ा बेग, शिवा राठौड़, बिस्मिल खान, हरनाम सिंह – सबने वीरता से लड़ाई की।

राजा की सेना ने अंदर से गुप्त मार्ग बनाकर गांवों में फौज पहुंचाई थी, पर जब तक मदद आती – महल टूट चुका था।

शहीद योद्धा:

1. रज़ा बेग – तोप से लड़ते हुए वीरगति


2. हरनाम सिंह – तलवार से 12 अंग्रेज़ मारकर शहीद


3. बिस्मिल खान – बच्चों को बचाते हुए मरे


4. जोधा नायक – जहर पी लिया, पकड़ने से पहले


5. शिवा राठौड़ – आखिरी सांस तक जासूसी करते रहे




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5. नरसंहार – 6000 निर्दोष नागरिकों की 

जब राजा की सेना कमजोर पड़ी, अंग्रेज़ों ने इलाहाबाद पर पूरा कब्जा कर लिया। अब उनका असली चेहरा सामने आया।

22 जून से 10 जुलाई 1857 तक शहर के हर मोहल्ले में तलाशी ली गई। जिन्हें शक होता, गोली मार दी जाती।

मुस्लिम मोहल्ले – खासकर करेली, सुलेम सराय, खुल्दाबाद – में अंग्रेजों ने नरसंहार किया।

6000 से अधिक नागरिक मारे गए, इनमें औरतें, बच्चे, बुज़ुर्ग सभी शामिल थे।

गवाहों के अनुसार, मस्जिदों में आग लगाई गई, घरों को लूटा गया, और पुरुषों को लाइन में खड़ा कर गोली मारी गई।

राजा मान सिंह को जिंदा पकड़ने की कोशिश हुई, पर वे गुप्त मार्ग से निकलकर जनता के साथ पहाड़ियों में छिप गए।

अंत में बचने वालों में थे:

राजा मान सिंह

दो सेवक – जयकरण और मीर हसन

तीन महिलाएं जो महल की नर्तकी थीं – जो अंग्रेज़ों की निगाह से बच निकलीं।


राजा ने अपने सिपाहियों की समाधि बनवाई और वचन दिया – “एक दिन आएगा जब हमारा खून आज़ादी का पेड़ बनेगा।”





भाग 2: "पलटवार की ज्वाला"





दृश्य 1: पहाड़ियों से लौटता हुआ राजा मान सिंह
(स्थान: इलाहाबाद के उत्तर की ओर कड़ाके की ठंडी पहाड़ी)

एक वीर, घायल मगर ज़िंदा... राजा मान सिंह, अपनी आंखों में शहीदों की आग और दिल में अपने शहर की पुकार लिए, कंधे पर तलवार और साथ में बचा हुआ दल लेकर लौटते हैं।

मान सिंह (दमदार संवाद):
"जिन्होंने हमारी हँसी छीनी, अब उनकी रूहें भी चीखेंगी... ये धरती अब खून मांगेगी… उनका नहीं, हमारा!"


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दृश्य 2: गुप्त ठिकाना – विद्रोह की योजना
राजा अपने भरोसेमंद साथी सिकंदर खां, धीरज ठाकुर, बख्तावर यादव, हमीदुल्ला पठान, और राजपूतिन लक्ष्मी देवी के साथ एक पुराने शिव मंदिर में बैठते हैं।
वहाँ बनती है क्रांतिकारी योजना:

1. महल के अंदरूनी रास्तों से गुप्त हथियार पहुंचाना


2. महल की दासियों और रसोई के ज़रिये अंग्रेजों की हर हरकत पर नज़र


3. शहर के नौजवानों को तैयार करना – "एक तलवार हर हाथ में!"




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दृश्य 3: अंग्रेजों की पार्टी और धोखे का वार
अंग्रेज अधिकारी कैप्टन जॉनसन महल में पार्टी करता है, और वही समय होता है जब अंदर से क्रांतिकारी योजना सक्रिय हो जाती है।
एक दासी चुपचाप दरवाज़े के पीछे से संकेत देती है।
दरवाजे खुलते हैं…
राजा मान सिंह और उनके साथियों की गरजती तलवारें अंग्रेज़ों पर बरस पड़ती हैं।

 एक्शन सीन: तलवारें, आग, दौड़, घोड़े, और महल में युद्ध!


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दृश्य 4: शहर में बगावत
शहर की गलियों में अल्लाह-हू-अकबर और हर-हर महादेव की गूंज उठती है।
हज़ारों नागरिक फिर से अंग्रेजों से भिड़ जाते हैं।
कई जगह आग लगती है, पर ये आग गुलामी को जलाने के लिए है।

डायलॉग:
"हमारे लहू से जो ज़मीं लाल होगी, उसी से नया भारत उगेगा!"


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दृश्य 5: अंतिम टक्कर और बलिदान
राजा मान सिंह कैप्टन जॉनसन से आमने-सामने भिड़ते हैं।
दोनों घायल होते हैं, पर राजा अपनी आखिरी सांस तक लड़ते हैं।
साथ में सिकंदर खां, लक्ष्मी देवी, और हमीदुल्ला पठान शहीद हो जाते हैं।

बस एक बचता है – बख्तावर यादव, जो ज़िंदा रहकर सबको ये कहानी सुनाने का वचन देता है।


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अंतिम सीन:
शहर की दीवारों पर लिखा जाता है:
"6000 जानें गईं पर झुका नहीं इलाहाबाद। ये सिर्फ़ शहर नहीं, बलिदान की राजधानी है।"