पार्ट 5 – हवेली के साए
अवनि कमरे के बीचोंबीच खड़ी थी। हवा अचानक ठंडी हो गई थी, जैसे किसी ने खिड़की से बर्फीली सांसें अंदर भेज दी हों। टॉर्च की रोशनी काँप रही थी, और सामने रखे चाँदी के संदूक से हल्की-सी लाल रोशनी फूट रही थी।
पीछे से आवाज़ आई –
"तुम्हें ये सब नहीं देखना चाहिए था।"
अवनि पलटी, उसकी माँ दरवाज़े पर खड़ी थीं। चेहरा पीला, आँखों में डर और हाथ काँपते हुए।
“माँ… ये क्या है? ये चुनरी… ये कटे हुए हाथ का क्या मतलब है?”
माँ ने कुछ नहीं कहा, बस धीमे-धीमे कमरे में आईं और संदूक का ढक्कन बंद कर दिया। फिर धीरे से बोलीं –
“कुछ सच ऐसे होते हैं जिन्हें जानना ज़िंदगी से भी बड़ा सज़ा होता है।”
अवनि के आँसू छलक पड़े। “लेकिन पापा… उनकी मौत का सच मुझे जानना ही होगा। आप क्यों छुपा रही हैं? कौन था वो आदमी जो अभी भागा?”
माँ ने आँखें बंद कर लीं। “वो… तुम्हारे पापा का सबसे बड़ा राज़ है।”
अचानक सीढ़ियों पर भारी कदमों की आहट गूंजी। दोनों ने एक-दूसरे को देखा – कोई ऊपर आ रहा था।
अवनि ने फुसफुसाकर कहा, “माँ, ये वही आदमी है… जो खंजर लेकर भागा था!”
कदमों की आवाज़ करीब आती गई। दरवाज़े के बाहर साए हिलने लगे। टॉर्च की रोशनी बंद हो गई। कमरे में अंधेरा और सन्नाटा छा गया।
तभी दरवाज़ा चरमराता हुआ खुला। सामने वही आदमी खड़ा था – भीगी हुई चादर, हाथ में खून सना खंजर, और चेहरा आधा अंधेरे में छिपा।
उसने धीमे से कहा –
"अवनि… तुम्हें बहुत कुछ जानना है। लेकिन उसके लिए… पहले तुम्हें मरना होगा।"
अवनि और उसकी माँ पीछे हट गईं। माँ ने अवनि को अपने पीछे कर लिया। “कौन हो तुम? हमारे पीछे क्यों पड़े हो?”
आदमी ने हल्की हँसी हँसी – “तुम्हें पता नहीं? मैं वही हूँ… जिसके माथे पर पहला खून का टीका लगा था।”
इतना कहकर वह आगे बढ़ा।
अवनि की माँ ने अचानक संदूक से वही पुरानी चुनरी निकाली और दरवाज़े की तरफ उछाल दी। जैसे ही चुनरी जमीन पर गिरी, हवेली की दीवारें हिलने लगीं, और दूर से एक औरत की चीख सुनाई दी –
"खू-ऊन… का… टीका…!"
आवाज़ सुनते ही वह आदमी रुक गया। उसकी आँखें लाल हो गईं। वह पागलों की तरह चीखते हुए भागा – और हवेली के अंधेरे गलियारों में गुम हो गया।
कमरा फिर से सन्नाटे में डूब गया।
अवनि ने काँपते हुए माँ से पूछा – “माँ… ये कौन था? ये खून का टीका आखिर है क्या?”
माँ के होंठ कांपे। वह बोलीं –
“अगर मैंने तुम्हें सच बता दिया… तो हमारी ज़िंदगी कभी पहले जैसी नहीं रहेगी।”
अवनि ने दृढ़ स्वर में कहा – “मुझे सच जानना ही होगा।”
माँ ने आँसू पोंछे और फुसफुसाई –
“सच ये है कि… तुम्हारे पापा की मौत एक हादसा नहीं थी। वो एक… बलि थी।”
अवनि की रगों में खून जम गया।
---
दरवाज़ा खुलते ही उस आदमी की आँखें लाल चमक उठीं। वह धीमे-धीमे कमरे में आया, उसके हाथ में खून से सना खंजर अब भी टपक रहा था। अवनि और उसकी माँ जमे हुए खड़े थे।
उसने अचानक कहा –
“अवनि… जिस खून का टीका तुम्हारे पापा के माथे पर लगा था… वही टीका तुम्हारे माथे पर भी लगने वाला है।”
अवनि काँपते हुए पीछे हटी, लेकिन तभी दीवार पर टंगी पापा की पुरानी तस्वीर अपने-आप नीचे गिर गई। तस्वीर के काँच में एक और चेहरा साफ दिखा – वही आदमी… जो अभी उनके सामने खड़ा था!
अवनि की साँस थम गई –
“ये… ये पापा के साथ की फोटो कैसे…?”
आदमी मुस्कुराया और फुसफुसाया –
“क्योंकि… तुम्हारे पापा की मौत का असली कारण मैं नहीं… तुम्हारी माँ है।”
---
(यहीं कट – अगला पार्ट शुरू होगा माँ की रिएक्शन और सच के नए मोड़ से)