अनचाही मोहब्बत
भाग 2 — मोहब्बत जो जन्मी खामोशी से🔥
शहनाज़ को याद था, वो रात जब हसन पहली बार खुलकर बोला था। उसने कहा था — "मैं कोशिश करना चाहता हूँ।" और किसी जले हुए रिश्ते के लिए, यह शब्द किसी बारिश की बूँद की तरह होते हैं — छोटी सी, मगर राहत देने वाली।
उसके बाद सबकुछ एकदम नहीं बदला। पर कुछ-कुछ बदलने लगा था।
अब हसन उसे सुबह "गुड मॉर्निंग" कहता था।
अब वो चाय की प्याली थमा कर लौटती नहीं थी — बैठती थी, साथ में चुपचाप चाय पीती थी।
और कभी-कभी, उस चुप्पी में भी एक सुकून था।
हसन अब घर देर से आता था तो मैसेज छोड़ देता — "आज लेट हो जाऊँगा। खाना खा लेना।"
पहले ऐसा कभी नहीं होता था।
एक दिन हसन ने पूछा, "तुम्हें गुलाब पसंद है या चमेली?"
शहनाज़ ने चौंक कर देखा — उसे लगा शायद वो सपना देख रही है।
"क्यों?" उसने पूछा।
"बस यूं ही। मुझे तुम्हारे लिए कुछ लाना है, मगर नहीं जानता क्या पसंद है तुम्हें।"
वो मुस्कुराई, और बोली, "मुझे चमेली की खुशबू बहुत पसंद है।"
अगले दिन, हसन चमेली का एक छोटा सा गजरा लाया।
"क्लाइंट की दुकान पर दिखा, तुम्हारी बात याद आ गई," उसने कहा।
शहनाज़ ने कुछ नहीं कहा, बस अपने बालों में वो गजरा लगायाऔर आईने में खुद को देखा। पहली बार खुद में उसे सज़े होने का एहसास हुआ।
वो अब उसकी बीवी थी — सिर्फ़ नाम की नहीं, एहसास की भी।
एक शाम, जब बारिश हो रही थी, बिजली गुल हो गई। हसन बालकनी में बैठा कॉफी पी रहा था। शहनाज़ उसके पास गई।
"तुम बारिश से डरती हो?" हसन ने पूछा।
"नहीं। पर अंधेरे से लगाव नहीं है," उसने कहा।
"और मुझसे?" हसन की आवाज़ धीमी थी, मगर भारी।
शहनाज़ का दिल तेज़ धड़कने लगा। ये सवाल सिर्फ़ सवाल नहीं था — ये उस पाँच साल की दूरी की दीवार में एक दरार था।
"तुमसे… मैं अब डरती नहीं हूँ," उसने जवाब दिया।
हसन ने उसका हाथ पकड़ा।
"शहनाज़… क्या तुम मुझसे फिर से एक बार… रिश्ता शुरू कर सकती हो? इस बार, एकसाथ?"
वो कुछ पल चुप रही। फिर बोली —
"हाँ… मगर इस बार, शुरुआत तुम करोगे… दिल से।"
**
रात के अंधेरे में पहली बार दोनों एक-दूसरे के और करीब हुए।
पर इस बार वो सिर्फ़ जिस्म का मिलन नहीं था — इस बार उनकी रूहें पास आई थीं।
**
दिन गुज़रते गए।
अब हसन उसके लिए काम से जल्दी घर लौटता।
वो उसके लिए नए पकवान बनाती।
वो दोनों एक-दूसरे की किताबें पढ़ते, पुराने गानों पर बहस करते, और कभी-कभी बस यूं ही हाथ थामे बैठे रहते।
एक दिन हसन की डायरी फिर शहनाज़ के हाथ लगी। इस बार उसमें लिखा था —
"माया मेरी पहली मोहब्बत थी, लेकिन शहनाज़ मेरी अधूरी जिंदगी को पूरा करने वाली सुकून है।
मैंने उससे एक जबरन रिश्ता शुरू किया,
मगर अब मैं उसी में खुद को ढूँढता हूँ।
काश वो जान सके,
मैं अब उससे मोहब्बत करता हूँ… पूरी, सच्ची और अपनी मर्ज़ी से।"
शहनाज़ की आँखें भर आईं।
उसने डायरी बंद की, और हसन को देखने लगी — जो किचन में उसके लिए चाय बना रहा था।
"धीरे-धीरे तुम मेरे हुए"
ना वादे थे, ना कसमें थीं,
ना पहली नज़र की चाहतें थीं।
बस एक चुप्पी थी —
जो तुम्हारे और मेरे बीच दीवार बनी रही।
शुरुआत ज़बरन थी,
मगर हर दिन ने कुछ बदला।
तुमने मेरा नाम नहीं पुकारा,
पर मेरी चाय की मिठास से जुड़ना सीख लिया।
एक दिन… जब तुमने पूछा —
“गुलाब पसंद है या चमेली?”
वो सवाल नहीं था…
वो पहली दरार थी तुम्हारी दीवार में।
फिर एक शाम…
जब बारिश में तुमने मेरा हाथ थामा,
तो जाना —
ये रिश्ता अब सिर्फ़ नाम का नहीं रहा।
तुम्हारी डायरी में माया का नाम था,
पर अब मेरे लिए उसमें एक पन्ना था।
जिसमें लिखा था —
"शहनाज़… अब मेरी अधूरी रूह की पूरी कहानी है।"
अब जब तुम मुस्कुराते हो,
तो वो मुस्कान सिर्फ़ होठों की नहीं होती —
वो मोहब्बत की होती है…
जो वक़्त लेकर पकी, मगर सच्ची निकली।
धीरे-धीरे तुम मेरे हुए…
बिना कहे, बिना जताए।
जिस रिश्ते को निभाया मैंने,
उसे अब तुमने निभाना सीखा —
मोहब्बत से, अपनी मर्ज़ी से।
कभी-कभी मोहब्बत
दूसरों की ज़िद से नहीं,
दिल की रज़ा से पैदा होती है।
और तब… वो सबसे हसीन होती है।
(छोटी सी कविता 😙)
उसने पीछे से जाकर उसके गले में हाथ डाल दिए।
"अब तुमसे डर नहीं लगता… मोहब्बत होती है।"
हसन मुस्कुराया —
"तो चलो, अब इस मोहब्बत को चाहत की तरह जिएं, ना कि सिर्फ़ शादी की तरह।"
**
शहनाज़ जानती थी — ये रिश्ता आसान नहीं था।
इसमें आँसू थे, समझौते थे, खामोशियाँ थीं।
मगर अब इसमें एक चीज़ और जुड़ चुकी थी —
इच्छा से शुरू हुई मोहब्बत।
समाप्त।
©Diksha
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मेरे प्यारे पाठको Para 💕hearts ये एक छोटी सी कहानी है, क्यू की मैं "हुक्म और हसरत" की कहानी लिखने में व्यस्त हूं,भविष्य में इस जैसी एक लम्बी कहानी बनाने की सोची है,💕तक तक के लिए प्यार देते रहे🫂और रेटिंग्स भी!इस से मुझे प्रोत्साहन मिलता है और लिखने का ।
और हां मैं आभारी हूं सभी की जो मुझे अपना प्यार दे रहे है उन में से एक "kajal thakur "💕भी है !
आपका दिल से धन्यवाद 💕💕
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