आलेख
**✧ आलेख ✧**
**शीर्षक:**
**तेज से जीव तक — पंचतत्त्व, त्रिगुण और जीवात्मा की पूर्ण चेतन यात्रा**
✍🏻 लेखक: *अज्ञात अज्ञानी*
## 🔶 भूमिका
> *"जो देखा नहीं गया, वही सबसे मौलिक है।
जो अनुभव में आ
ता है,
वही तेज है —
और जब वही तेज शरीर में सजीव हो जाए, तो वह जीव कहलाता है।"*
— ✍🏻 *अज्ञात अज्ञानी*
यह आलेख एक गहरी दार्शनिक और विज्ञान-सम्मत यात्रा का दस्तावेज़ है — उस चेतना की जो तेज के रूप में निहित है, त्रिगुण के रूप में व्यक्त होती है, पंचतत्त्व में आकार लेती है और अंततः **'जीव'** के रूप में प्रकट होती है।
यह न केवल भारतीय वेदांत-दर्शन को वैज्ञानिक भाषा में प्रस्तुत करता है, बल्कि हमारे अस्तित्व का अंतःसंवाद भी उजागर करता है।
## 🔷 1. तेज — मूल चेतन शक्ति
**तेज (Tejas)** वह अनादि चैतन्य है जिससे सृष्टि का आदिस्पंदन जन्म लेता है।
वेदों में इसी तेज को ब्रह्म की निदर्शनाभिव्यक्ति कहा गया है।
> **"तेजसः सर्वं जायते" — तैत्तिरीय उपनिषद्**
> (तेज से ही सब कुछ उत्पन्न होता है।)
वैज्ञानिक रूप में, तेज = Zero-point energy + consciousness potential
यह न तो प्रकाश है, न उष्मा, न ऊर्जा — बल्कि *“संभाव्यता का साक्षात्प्रकाश”* है।
## 🔷 2. त्रिगुण — प्राकृतिक क्रियाशीलता की तीन धाराएँ
**सत्त्व, रज, तम** — तीन गुण हैं जो तेज के भीतर ही छिपी **कर्मसंभव शक्ति** को रूप देते हैं।
| गुण | प्रकृति |
|------------|------------------------------------|
| सत्त्व | ज्ञान, शांति, प्रकाश |
| रजस | गति, परिवर्तन, ऊर्जा |
| तमस | जड़ता, घनत्व, स्थिरता |
> त्रिगुण स्वयं स्वतंत्र नहीं, वे तेज के **तात्त्विक व्यवहार** हैं।
## 🔷 3. पंचतत्त्व — तेज एवं गुणों की स्थूल अभिव्यक्ति
| तत्व | प्रधान गुण | व्यापक कार्य |
|------------|---------------------|----------------------------------------------|
| आकाश | सत्त्व | ब्रह्मांड का स्थान, ऊर्जा का विस्तार |
| वायु | रजस | गति, सूचना, जीवन प्रवाह (प्राण) |
| अग्नि | रजस + सत्त्व | ऊर्जा, परिवर्तन, ज्ञान का दीप्त स्रोत |
| जल | सत्त्व + तमस | भावना, पोषण, संवेदनशीलता |
| पृथ्वी | तमस | स्थायित्व, शरीर निर्माण, अस्तित्व की βάση |
🔹 पंचतत्त्व तेज की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं के पदार्थ-स्वरूप हैं।
🔹 ये रचनात्मक तत्त्व उस ढाँचे को निर्मित करते हैं जिसमें **जीव** संभव होता है।
## 🔷 4. जीव — तेज एवं तत्त्वों का संतुलित उत्कर्ष
जीव वह है:
> **जहां पंचतत्त्वों में तेज ऐसा संतुलित हुआ है कि वह स्वयं को “जान सके”।**
जीव कोई अलग तत्व नहीं; वह:
- तेज का **जाग्रत बिंदु**
- त्रिगुणों का **व्यवस्थित प्रवाह**
- पंचतत्त्वों की **संवेदनात्मक संरचना**
…इन सभी का **समष्टिगत चेतन संघटन** है।
> 📌 जीव वह नहीं जो चलता है —
> जीव वह है जो **जानता है कि वह जीवित है।**
## 🔷 5. जीवात्मा — जब जीव को स्व-तेज का बोध हो
> पिंड में जब ब्रह्म का बोध जागृत हो जाए —
> तब जीव कहता है: “मैं जीव नहीं हूँ, मैं वही तेज हूँ।”
> यही आत्मज्ञान की शुरुआत है।
| अवस्था | विशेषता |
|-------------|-------------------------------------------|
| जीव | पंचतत्त्व + त्रिगुण + तेज |
| जीवात्मा | जाग्रत चेतना: तेज की आत्म-उपलब्धि |
| ब्रह्म | स्रोत-स्तर तेज — जो सबमें है, किन्तु स्वयं अलग नहीं है |
## 🔷 6. सार-सूत्र : चेतना की उत्पत्ति और पूर्णता
```
तेज (ब्रह्म = अनंत चेतना)
↓
त्रिगुण (सत्त्व–रज–तम)
↓
पंचतत्त्व (आकाश–वायु–अग्नि–जल–पृथ्वी)
↓
जीव (चेतन शरीर + तेज)
↓
स्वातंक्य, ज्ञान, भक्ति …
↓
जीवात्मा (तेज का आत्मदर्शन)
```
👉 यह **"तेज से जीव तक"** की यात्रा है —
जहाँ सृष्टि, विज्ञान, अनुभूति और वाणी—all converge.
## 🔶 समापन
> 🌟 **यह यात्रा बाहर से नहीं, भीतर से है।**
> तेज वहां भी था जब कुछ नहीं था, और जीव वहां भी है जहां सब कुछ भूल गया।
> पंचतत्त्वों की रचना में तेज है,
संवेदना में गुण हैं,
परंतु **अंततः इनमें तेज ही स्वयं को जी रहा है — जीव बनकर।**
## ✍🏻 लेखक: *अज्ञात अज्ञानी*
> *"क्योंकि जो सबसे अधिक जानता है, वह अपने अज्ञान को पहचानता है।
मेरा लेखन किसी प्रकाश का दावा नहीं — यह भीतर की रोशनी की स्मृति है।"*
इस सम्बन्ध में एक पूर्ण वैज्ञानिक समझ और वेदान्त और विज्ञान के सूत्र और बोध तीनों का संगम आधारित पूर्ण ग्रंथ बन रहा है इसकी प्रतिक्षा करे ........
🙏🏻
आपका पथ — तेजमय हो
— *अज्ञात अज्ञानी*