The Breaths Beneath the Floor in Hindi Short Stories by Vivek Singh books and stories PDF | फर्श के नीचे जो सांसें आती हैं

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फर्श के नीचे जो सांसें आती हैं



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 फर्श के नीचे जो सांसें आती हैं

(एक ख़ौफ़नाक हॉरर कहानी)


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“मैंने जब पहली बार वो आवाज़ सुनी… लगा जैसे कोई बहुत पास है… लेकिन दिखता कुछ नहीं था… वो आवाज़… सांस लेने की थी… बहुत भारी, बहुत धीमी… जैसे मौत फर्श के नीचे दुबकी हो।”


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 एक सुनसान जगह, एक पुराना बंगला

अर्जुन और सुरभि, एक नवविवाहित जोड़ा, मुंबई से दूर एक पहाड़ी कस्बे "कालागढ़" में शिफ्ट हुआ था।
उन्हें एक पुराना, बहुत ही सस्ता बंगला मिला — 1921 में बना, चारों तरफ जंगल, और अंदर एक अजीब सी सर्द हवा।

एजेंट ने कहा था:
"बस एक बात ध्यान रखना — नीचे के स्टोररूम का फर्श मत छेड़ना। वहां कुछ... पुराना है।"

अर्जुन ने हँसते हुए जवाब दिया, "भाई, मैं आत्माओं में यकीन नहीं करता।"


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पहली रात

सुरभि ने बिस्तर पर लेटे-लेटे अर्जुन से कहा,
"नीचे से कोई आवाज़ आ रही है... सुनो न..."

अर्जुन ने कान लगाए —
"हह्ह्ह्ह... हह्ह्ह्ह..."
साफ़ सुनाई दे रही थी किसी के साँस लेने की आवाज़ — नीचे से, फर्श के भीतर से।

अर्जुन ने कहा, "पुराना घर है, चूहा होगा।"
पर सुरभि की आँखें डरी हुई थीं — "कोई है वहां, अर्जुन... कोई जो सांस ले रहा है... ज़िंदा।"


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 अगली सुबह

अर्जुन ने नीचे के स्टोररूम का दरवाज़ा खोला।
कमरा पुराना था, मिट्टी और धूल से भरा।
पर बीच में एक जगह — लकड़ी का फर्श अलग दिखता था। नया, चमकदार, जैसे किसी को ढंकने के लिए जल्दबाज़ी में लगाया गया हो।

अर्जुन ने फर्श पर हाथ रखा —
वो गरम था।

"कोई अंदर है?" उसने ज़ोर से पूछा।

कुछ नहीं...

फिर अचानक — उसी नीचे से — एक चीख़ आई: "मुझे बाहर मत निकालो!! मैं फिर से नहीं मरना चाहती!"


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 अर्जुन ने फर्श खोद डाला

उसने हथौड़ा उठाया और लकड़ी उखाड़ दी। नीचे मिट्टी की एक परत थी।
उसे हटाते ही एक लोहे का छोटा दरवाज़ा निकला — जंग खाया हुआ, लेकिन अंदर की दुनिया को बंद करने के लिए काफी मज़बूत।

दरवाज़ा खुला — नीचे अँधेरा था। और ठंडी, भरी हुई साँसें उठ रही थीं...

अर्जुन ने टॉर्च जलाकर झाँका।
एक छोटी सी कोठरी थी — और वहां बैठी थी — एक लड़की।
बिलकुल ज़िंदा — लेकिन उसकी आँखें पूरी काली थीं। चेहरे पर सूजन… और होंठ फटे हुए।

"मैं सुरभि हूं..." उसने कहा।

अर्जुन के होश उड़ गए — "क्या बकवास है? मेरी बीवी तो ऊपर है!"


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 असली सुरभि कौन?

अर्जुन दौड़कर ऊपर आया।
सुरभि किचन में खड़ी थी, मुस्कुरा रही थी।

अर्जुन बोला — "तुम कौन हो?"
सुरभि बोली — "क्या मतलब?"

अर्जुन ने देखा — सुरभि का चेहरा धीरे-धीरे बदल रहा था... उसकी आँखें भी अब काली हो रही थीं...
और वो बोली —
"तुमने उसे बाहर क्यों निकाला...? अब तुम भी नीचे जाओगे..."


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 अंतिम सच

100 साल पहले, इसी बंगले में एक पागल डॉक्टर रहता था — जो ज़िंदा लोगों को दफन कर देता था, यह देखने के लिए कि वो कितने दिनों तक जिंदा रह सकते हैं।

सुरभि जैसी दिखने वाली लड़की भी उसकी एक “प्रयोग” थी।

उस आत्मा ने किसी तरह सुरभि के शरीर में घुसपैठ कर ली थी। और असली सुरभि को बंगले के नीचे बंद कर दिया गया था।

अब जब अर्जुन ने असली सुरभि को बाहर निकाला — आत्मा तिलमिला उठी।

“अब एक को जाना ही होगा…” सुरभि बोली — या जो भी वो अब थी।


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 अंतिम दृश्य

अर्जुन ने नीचे की लोहे की कोठरी में वापस झाँका।

दो सुरभियां अब आमने-सामने थीं।
एक बोली — "मैं असली हूं!"
दूसरी बोली — "मत सुनो इसे, ये भूत है!"

और तभी...

अर्जुन को पीछे से किसी ने धक्का दे दिया... वो नीचे गिरा... दरवाज़ा बंद...

अब अंदर तीन थे। और बाहर सिर्फ एक।


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❓ अब सवाल ये है:

जो बाहर है — क्या वो सुरभि है? या आत्मा?

और अगर नहीं… तो वो बंगला अब किसे बुला रहा है अगली बार...?



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