Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 6 in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 6

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Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 6

राजा वीरभान सिंह ने अपने प्राणों की आहुति देकर वैंपायर अग्निवेश का अंत किया। चांदी की कटार से उसका हृदय छेद दिया गया और उसकी गुफा जलाकर राख कर दी गई। लेकिन इस युद्ध में राजा ने अपने प्राण खो दिए। गांव को लगा कि अब डर का अंत हो चुका है…

…परन्तु उन्हें नहीं पता था कि असली डर अभी शुरू हुआ है।

राजा वीरभान सिंह की मौत के बाद, रतनपुर पर वीरानी छा गई थी।
राजमहल ने उनका भव्य अंतिम संस्कार किया पूरे राज्य में शोक की लहर थी।

लेकिन रतनपुर में एक और सन्नाटा गहराता जा रहा था…

गांववाले अब भी घर से बाहर निकलने से डरते थे। शवों की गिनती तो बंद हो चुकी थी… लेकिन कुछ और था जो लोगों की आत्मा को डस रहा था।

राजगुरु विभाकर सात दिनों तक गुफा की राख पर निगरानी करते रहे।
लेकिन आठवें दिन, राख में कुछ हलचल हुई।
उन्होंने देखा कि राख के बीच कुछ अजीब-सी काली लकीरें हिल रही थीं।

जैसे कोई साँस ले रहा हो… जैसे कोई नया जीवन जन्म ले रहा हो…

राजगुरु ने मंत्र पढ़े, पर लकीरें और फैलती चली गईं।

"यह असंभव है…" उन्होंने बुदबुदाया।

"अग्निवेश मरा नहीं है… उसकी आत्मा किसी और शरीर में प्रवेश कर चुकी है…"

कुछ ही दिनों में गांव में औरतों की नींद में चीखें गूंजने लगीं।
बच्चे सोते-सोते डर के मारे जाग जाते।
गायें अचानक मरने लगीं, और कुओं का पानी लाल हो गया।

गांव के बुज़ुर्ग बोले – “ये रूहानी नहीं, यह शैतानी असर है।”

अब गांववालों ने निर्णय लिया:
"गांव छोड़ दो, इससे पहले कि अग्निवेश की आत्मा किसी और को भी ले डूबे!"

एक के बाद एक घर खाली होने लगा।
लोग अपने सामान बाँधने लगे, बैलगाड़ियों में बच्चे, बुज़ुर्ग, और सामान लेकर महेंद्रगढ़ की ओर रवाना होने लगे।

गांव में एक घर था आत्मानंद, राजकवि का। वह राजा वीरभान की शहादत को कलम से अमर बनाना चाहता था।
"मैं गांव छोड़ कर नहीं जाऊँगा… राजा की कथा अधूरी नहीं रहेगी मैं उसे पूरी करूंगा फिर यह से जाऊंगा।"

उसके पास राजा की लहूलुहान तलवार थी… और राजा की अंतिम सांस में कहे गए शब्द: "डर से मत भागो… उसका सामना करो…"

लेकिन उस रात…

आत्मानंद के घर के बाहर काली धुंध छा गई। दीपक बुझ गए, कुत्ते भौंकते-भौंकते शांत हो गए। झिंगुर की आवाज अचानक से बंध हो गई।

और तभी…

एक छाया उसके कमरे में दाखिल हुई।

छाया से आहट सुनाई दी उसने कहा, "अग्निवेश मर गया… लेकिन अग्निवेश की आत्मा… अब ‘नेवला’ के रूप में जन्मी है…"

आत्मानंद का शरीर हिल नहीं सका। उसके हाथों से कलम छूट गई।

"तू… कौन है?"

"मैं वह हूं जिसे मारा गया, जलाया गया, पर मिटाया नहीं जा सका। अब मैं किसी एक शरीर का नहीं… मैं हर डर में बसता हूं। और तू… अब तू मेरा पहला वाक्य लिखेगा।"

छाया ने उसकी छाती में पंजा घुसा दिया…

आत्मानंद की चीख पूरे गांव में गूंज उठी… लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था।

नेवला… एक नया रूप था, जो अग्निवेश की राख से जन्मा था।

अग्निवेश की ताकतें अब और भी अधिक विकसित हो चुकी थीं:

वह सिर्फ रात में नहीं, अब दिन में भी प्रकट हो सकता था।

वह अब सिर्फ लड़कियों को नहीं, किसी को भी अपना शिकार बना सकता था।

उसकी आंखें अब लाल नहीं, काली थीं… इतनी गहरी कि कोई उसमें झांक नहीं सकता था।

वह इंसानी शक्ल में था, लेकिन उसका दिल… अब अशुद्ध शैतान का था।

नेवला ने गांव छोड़ते एक परिवार को देखा।

एक 8 साल की बच्ची—सुहानी, जो लगातार कह रही थी: "मां, पीछे कोई है… कोई देख रहा है…"

मां ने कहा, "डर मत बेटा, अब हम महेंद्रगढ़ जा रहे हैं।"

लेकिन नेवला ने उसे ही अपना शिकार ठाना था। " वाह छोटी बच्ची... इसका मांस काफी नरम होगा और खून तो शहद से भी मीठा होगा।"

रात में, जब सभी सो गए, नेवला उनके तंबू में पहुंचा…

और अगली सुबह....

सुहानी की आंखें काली थीं… मुस्कान अजीब थी… और उसकी आवाज़ बदल चुकी थी।

अब वह सुहानी नहीं थी वह नेवला का नया रूप थी।

राजगुरु विभाकर, जो अब जंगलों में छिप गए थे, एक आखिरी चिट्ठी छोड़ गए:

“यदि यह संदेश कोई पढ़े तो जान लो:
अग्निवेश की आत्मा को मिटाया नहीं गया…
वह अब हर उस डर में जन्म लेता है
जो तुम अपने भीतर छुपाते हो…
वह बच्चा, वह लड़की, वह बूढ़ा… कोई भी उसका रूप हो सकता है।
डर से भागो मत… लेकिन आंखें खुली रखना…
क्योंकि अगली बार… वह तुम्हारे दरवाज़े पर दस्तक देगा।”