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📘 एपिसोड 2 — रंगों में उलझी रेखाएँ
थीम: जब पहली मुलाक़ात के बाद दिल सवाल पूछने लगे, और जवाब सिर्फ दीवारों पर मिलें
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🪷 भाग 1: दीवार की दरारें
जान्हवी उस दीवार के सामने खड़ी थी जहाँ उसने विराज से पहली बार बात की थी।
वो मोर अब अधूरा नहीं था — लेकिन उसकी आँखें अब भी खाली थीं।
उसने ब्रश उठाया, लेकिन हाथ काँप रहे थे।
वो सोच रही थी — क्या वो लड़का सिर्फ एक मुस्कान था, या कोई कहानी जो अब मेरी स्केचबुक में उतरने वाली है?
तभी रीमा आई — उसकी सबसे करीबी दोस्त।
> “तू फिर उसी दीवार के पास?”
> “हाँ… शायद मैं उस मोर की आँखों में खुद को ढूंढ रही हूँ।”
रीमा मुस्कराई —
> “या शायद किसी और को।”
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☕ भाग 2: विराज की डायरी
विराज अपने कमरे में बैठा था — सामने उसकी नोटबुक खुली थी।
उसने पहली बार किसी स्केच को इतने ध्यान से देखा था — जान्हवी का मोर।
उसने लिखा:
> “उस मोर की आँखों में जो खालीपन था, वो मेरे कैमरे में नहीं आया… लेकिन मेरे दिल में उतर गया।”
वो सोच रहा था — क्या मैं फिर से उससे मिलूँगा? या जयपुर की गलियाँ फिर से कोई इत्तेफाक़ रचेंगी?
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🎨 भाग 3: हवेली की दीवार
जान्हवी एक पुरानी हवेली की दीवार पर स्केच बना रही थी — वहाँ विराज फिर से आया।
> “तुम फिर रंगों में खोई हो?”
> “हाँ… क्योंकि शब्दों से डर लगता है।”
विराज ने कहा:
> “तुम्हारे रंग बोलते हैं… और मैं उन्हें सुनना चाहता हूँ।”
जान्हवी चुप रही — लेकिन उसकी ब्रश की चाल बदल गई।
वो अब एक चेहरा बना रही थी — अधूरा, लेकिन भावों से भरा।
विराज ने तस्वीर ली — लेकिन इस बार उसने कैमरा नीचे रखा और कहा:
> “तुम्हारे रंगों में जो कहानी है, वो मेरी तस्वीरों से ज़्यादा सच्ची है।”
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🌌 भाग 4: पहली शाम साथ
वो दोनों हवेली के छज्जे पर बैठते हैं — नीचे जयपुर की गलियाँ, ऊपर गुलाबी आसमान।
जान्हवी कहती है:
> “तुम्हें क्या लगता है — तस्वीरें सच्ची होती हैं?”
विराज जवाब देता है:
> “सच्ची नहीं… लेकिन वो झूठ नहीं बोलतीं।”
जान्हवी मुस्कराती है —
> “मेरे रंग भी झूठ नहीं बोलते… लेकिन लोग उन्हें समझते नहीं।”
विराज कहता है:
> “मैं समझना चाहता हूँ… अगर तुम चाहो।”
वो दोनों चुप हो जाते हैं — लेकिन उस चुप्पी में एक वादा था।
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📖 भाग 5: स्केचबुक का पन्ना
रात को जान्हवी अपनी स्केचबुक खोलती है — और पहली बार विराज का चेहरा बनाने की कोशिश करती है।
वो लिखती है:
> *“उसकी आँखों में कोई पुरानी कहानी थी…
> शायद वो भी किसी दीवार पर अधूरी रह गई थी।”*
वो स्केच अधूरी रहती है — लेकिन उसके नीचे एक पंक्ति लिखी जाती है:
> “अगर वो फिर मिले… तो मैं ये चेहरा पूरा करूँगी।”
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🌈 एपिसोड का समापन
- जान्हवी और विराज की मुलाक़ात अब एक भावनात्मक गहराई में बदल रही है
- दीवारें अब सिर्फ रंग नहीं, रिश्तों की परछाइयाँ बन रही हैं
- और एक अधूरी स्केच — जो अगले एपिसोड में पूरी हो सकती है… या फिर और उलझ सकती है
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अगर आप चाहें, तो मैं कल पेश करूँगा:
📘 एपिसोड 3 — “छतों पर बिखरे सवाल”
जिसमें विराज अपने अतीत की एक तस्वीर जान्हवी को दिखाएगा… और वो तस्वीर सबकुछ बदल देगी।
Writer: Rekha Rani