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🗼 भाग 1: पेरिस की पहली सुबह
पेरिस की सुबह जयपुर से अलग थी — वहाँ की हवा में इतिहास था, लेकिन जान्हवी की साँसों में विराज की कमी।
वह Galerie Lumière पहुँची — जहाँ उसकी स्केच प्रदर्शित होनी थी।
हर दीवार पर उसकी कला थी, लेकिन हर रंग में एक अधूरापन।
> “ये शहर खूबसूरत है… लेकिन तुम नहीं हो,” उसने अपनी डायरी में लिखा।
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🎨 भाग 2: प्रदर्शनी की तैयारी
जान्हवी ने अपनी सबसे भावनात्मक स्केच चुनी —
एक लड़की जो एक पुल पर खड़ी है, नीचे बहती नदी, और सामने एक खाली फ्रेम।
वह फ्रेम विराज के लिए था — लेकिन अब वह वहाँ नहीं था।
क्यूरेटर ने पूछा:
> “इस फ्रेम में क्या होगा?”
जान्हवी ने जवाब दिया:
> “जो नहीं है… वही सबसे ज़्यादा दिखता है।”
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📷 भाग 3: विराज की चुप्पी
जयपुर में विराज अब तस्वीरें नहीं ले रहा था — उसका कैमरा बंद था, और उसकी आँखें खाली।
वह जान्हवी की प्रदर्शनी की खबरें पढ़ता था — लेकिन कोई मैसेज नहीं भेजता।
उसने अपनी डायरी में लिखा:
> “मैंने उसे उड़ते देखा… लेकिन खुद को ज़मीन से बाँध लिया।”
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💌 भाग 4: खत जो नहीं भेजा गया
जान्हवी ने एक खत लिखा —
> *“पेरिस की दीवारों पर तुम्हारी परछाई है… लेकिन तुम्हारी आवाज़ नहीं।
> क्या मैं तुम्हें बुला सकती हूँ? या फिर ये शहर तुम्हें खो देगा?”*
वह खत उसने भेजा नहीं — बस अपनी स्केचबुक में चिपका दिया।
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🖼️ भाग 5: प्रदर्शनी का दिन
प्रदर्शनी शुरू हुई — लोग आए, तस्वीरें लीं, तारीफें कीं।
लेकिन जान्हवी की आँखें दरवाज़े पर थीं — क्या विराज आएगा?
वह नहीं आया।
जान्हवी ने अपनी अंतिम स्केच बनाई —
एक लड़की जो एक दीवार पर लिख रही है:
> “वो शहर जहाँ तुम नहीं थे… वहाँ भी तुम थे।”
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🌌 भाग 6: समापन की रात
रात को जान्हवी सीन नदी के किनारे बैठी थी — वही जगह जहाँ विराज ने कहा था, “तुम्हारे रंगों में मैं हूँ।”
उसने अपनी डायरी खोली — और पहली बार लिखा:
> “अब मैं तुम्हारे बिना भी रंग बना सकती हूँ… लेकिन तुम्हारे साथ वो रंग ज़िंदा हो जाते हैं।”
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🗼 भाग 7: पेरिस की खामोश सुबह
जान्हवी अपनी प्रदर्शनी के बाद कुछ दिन अकेली रही — सीन नदी के किनारे, अपनी स्केचबुक के साथ।
वो सोच रही थी कि विराज अब शायद उसकी कहानी का हिस्सा नहीं रहा।
तभी एक लिफाफा आया — बिना नाम, बिना पता।
सिर्फ एक लाइन लिखी थी:
> “तुम्हारी दीवार अब भी मेरी सबसे पसंदीदा जगह है।”
जान्हवी की साँसें थम गईं — क्या ये विराज है?
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📷 भाग 8: जयपुर की दीवार
विराज जयपुर लौट चुका था — लेकिन किसी को बताया नहीं।
वो हर रात स्टेशन की दीवार के पास जाता था — जहाँ जान्हवी की स्केच अब भी थी।
उसने एक नई तस्वीर ली — लेकिन इस बार उसने उसे पोस्ट नहीं किया।
बस एक लिफाफे में रखकर पेरिस भेज दिया।
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🎨 भाग 9: जान्हवी की उलझन
जान्हवी ने उस तस्वीर को देखा — वही दीवार, वही स्केच, लेकिन उसमें एक नया रंग था।
कोने में एक छोटा सा मोर बना था — वही जो जान्हवी ने पहली बार विराज के साथ बनाया था।
वो सोचती है — क्या ये सिर्फ याद है? या फिर एक नई शुरुआत की कोशिश?
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☕ भाग 10: रीमा की सलाह
जान्हवी ने रीमा को कॉल किया — उसने सब बताया।
रीमा ने कहा:
> “अगर वो लौटना चाहता है… तो उसे आने दो।
> लेकिन इस बार उसे तुम्हारी दुनिया में चलना होगा — तुम्हारे साथ, तुम्हारे बराबर।”
जान्हवी चुप रही — लेकिन उसकी आँखों में एक चमक थी।
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🌌 भाग 11: पेरिस की दीवार
जान्हवी ने पेरिस की एक दीवार पर एक नई स्केच बनाई —
एक लड़की जो एक दरवाज़े के सामने खड़ी है, और दरवाज़े की परछाई में एक चेहरा है।
नीचे लिखा:
> “अगर तुम लौटे… तो मैं यहीं रहूँगी।”
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✈️ भाग 12: समापन की उड़ान
एक हफ्ते बाद, जान्हवी को एक मैसेज मिला —
> “मैं पेरिस आ रहा हूँ। लेकिन इस बार तस्वीर नहीं लाऊँगा… तुम्हारे रंगों में जीना चाहता हूँ।”
वो मुस्कराई — और अपनी स्केचबुक बंद कर दी।
> “अब परछाई नहीं… अब साथ चाहिए।”
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Writer: Rekha Rani