पार्ट 8पिछले भाग में आपने पढ़ा:
> अवनि ने माँ से सवाल किया — "क्या मेरा कोई और भाई भी था?"
माँ का चेहरा ज़मीन में गड़ गया… और वो बस यही बोली, "हां था… लेकिन वो अब नहीं है।"
फिर उसने कहा, "तेरे पापा ने उसे मार डाला… और… मैंने सब छुपाया।"
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अब आगे…
अवनि जैसे ही तहखाने में उतरी, एक सड़ी-गली गंध ने उसका दम घोंटना शुरू कर दिया। दीवारों पर मकड़ियों के जाले थे, लेकिन बीच में रखी वो लोहे की संदूक… जैसे उसकी ओर बुला रही हो।
उसने कांपते हाथों से संदूक खोली।
उसमें एक पुरानी डायरी थी। पहले पन्ने पर लिखा था:
> "आरव की माँ द्वारा"
अवनि का दिल बैठने लगा। उसने पढ़ना शुरू किया—
> "आज आरव ने पहली बार बोला – 'माँ'। उसकी मुस्कान में मेरी सारी थकान मिट जाती है। लेकिन मैं डरती हूँ, कहीं पापा को उसके जन्म का सच पता ना चल जाए…"
> "आज मैंने उसे तहखाने में छिपा दिया। पापा कहते हैं, वो उनका नहीं हो सकता, क्योंकि वो बहुत गोरा है… उनकी तरह नहीं… वो चीखते हैं कि मैंने धोखा दिया।"
> "आज उन्होंने आरव को छीन लिया… और… मैंने देखा… देखा… मेरी आँखों के सामने उसका सिर दीवार पर पटका गया। मैंने चुपचाप उसकी लाश को इसी तहखाने में गाड़ दिया।"
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अवनि की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। माँ का सच जैसे एक ज़हरीले तीर की तरह उसके सीने में चुभा था। वो सोच भी नहीं सकती थी कि जिसकी गोद में उसने बचपन गुज़ारा, वही औरत किसी की जान की जिम्मेदार हो सकती है।
लेकिन माँ की आँखों में एक अलग ही सच्चाई थी।
“हाँ अवनि… मैं ही जिम्मेदार थी… पर एक माँ होने के नाते नहीं, एक औरत होने के नाते… जिसे जलाया गया, कुचला गया… और फिर भी जिंदा रहना पड़ा।”
अवनि की आँखें भर आईं।
माँ ने कांपते हाथों से अलमारी की चाबी निकाली और बोली, “अब समय आ गया है… कि तू देखे उस तहखाने को… जिसे इस घर में तुझसे भी ज़्यादा चुप रखा गया है।”
अवनि कुछ कहती, इससे पहले माँ ने उसे खींचकर पुराने स्टोर रूम में ले गई। वहाँ एक लोहे की अलमारी के पीछे दीवार में एक दरार थी। माँ ने उस दीवार में हल्के से धक्का दिया — दीवार घूम गई।
एक गुप्त सीढ़ी नीचे उतरती थी… घुप्प अंधेरे में।
“चल,” माँ बोली, “अब तुझे असली खेल दिखाना है।”
अवनि काँपती हुई नीचे उतरी। हर कदम के साथ हवा और भारी होती जा रही थी। नीचे उतरते ही वो दोनों एक तहखाने में पहुँचे, जहाँ दीवारों पर पुराने खून के छींटे, टूटे खिलौने, और एक टूटी हुई पालना रखी थी।
माँ धीरे से बोली, “ये उसी का कमरा था… आरव का।”
अवनि का शरीर जैसे पत्थर बन गया।
“आरव?” उसने धीमे से पूछा।
माँ की आँखों से आँसू बहने लगे, “हाँ… तुम्हारा जुड़वाँ भाई… जो इस दुनिया में आया तो था, मगर जिंदा कभी नहीं रह पाया।”
“क्यों?”
माँ ने एक पुराना लाल रजिस्टर खोला, जिसमें पीले पन्नों पर एक आदमी की लिखाई थी।
“तेरे पापा ने उसे कभी अपनाया ही नहीं। उसे शैतान की औलाद कहा। कहा कि मेरी कोख से दो जान नहीं आ सकती, ये जरूर किसी टोटके का असर है।”
“पापा ने ही उसे इस तहखाने में छुपा दिया… और…”
माँ का गला भर आया।
“...और एक रात उसे यहीं मार दिया।”
अवनि का पूरा शरीर सुन्न हो गया।
“लेकिन…” माँ ने फुसफुसाते हुए कहा,
“उस दिन जब खून का टीका तेरे पापा के माथे पर दिखा था… वो आरव का ही था।”
“क्योंकि वो अब सिर्फ एक आत्मा नहीं…
वो इंतकाम है।”
अचानक तहखाने की बत्तियाँ झपकने लगीं।
दीवार पर खून से किसी ने लिखा था:
> "अब बहन की बारी है…"
अवनि पीछे मुड़ी… माँ गायब थी।
चारों तरफ सन्नाटा।
फिर एक धीमी आवाज़ आई — एक बच्चे की हँसी…
“दीदी… खेलें?”
अवनि की साँसें रुक गईं।
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❗जारी रहेगा… Part 9 में:
क्या आरव की आत्मा अवनि को नुकसान पहुँचाएगी?
माँ कहाँ गायब हो गई?
और ये “खेल” क्या है जिसमें अवनि फँसने वाली है?