(नित्या की कक्षा में गौरव का अचानक आना और उसके माता-पिता को जानना रहस्य बना रहा। वहीं, विशाल अस्पताल पहुंचा जहाँ टीना की आत्महत्या की कोशिश से परिवार दुखी था। आग्रह ने टीना की तरफ से माफी मांगी और तीनों ने दोस्ती निभाई। छाया को डैनी की बातों से शक हुआ कि लाइब्रेरी में विशाल के साथ उसकी बात कैसे फैल गई। कॉलेज में विशाल और छाया के बीच तनाव भरा संवाद हुआ, जिसमें विशाल ने छाया के हाथ पकड़ कर अपने दर्द को जाहिर किया। अंत में छाया, विशाल के लिए अपनी उम्मीद खो चुकी थी, लेकिन दोस्त काशी को इसका पता नहीं था। ) अब आगे
रविवार की सुबह थी। जतिन आराम से कुर्सी पर बैठा अखबार पढ़ रहा था, वहीं नम्रता मोबाइल में कुछ देख रही थी। किचन से नित्या चाय लेकर आई।
जतिन ने चाय की प्याली उठाते हुए केशव को आवाज लगाई, "केशव, चाय पीने आओ।"
पर कोई जवाब नहीं मिला।
नित्या अंदर से बोली, "केशव तो बाहर गया है।"
नम्रता मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, हर रविवार वो दोस्तों के साथ मैदान में क्रिकेट खेलने जाता है, भूल गए क्या?"
जतिन ने सिर हिलाया, "अरे हां, बिलकुल।" फिर नम्रता से पूछा, "भाग्यवान! और छाया? वो कहाँ है? अभी तक नहीं दिखी क्या?"
नम्रता गर्व से बोली, "पढ़ रही होगी मेरी बेटी। आजकल तो दिन-रात मेहनत में लगी है।"
नित्या चुपके से मुस्कुराई और किचन का काम छोड़कर ऊपर चली गई।
कमरे में पहुंचकर उसने देखा कि छाया गहरी नींद में थी। नित्या बिस्तर के पास जाकर हँसते हुए बोली, "शर्म आती है! सबको लगता है पढ़ रही है, लेकिन ये तो पूरे परिवार को अपनी चालाकी में फंसा रखा है।"
फिर छाया के सर पर हाथ रखते हुए बोली, "पर जो भी हो, कल तो रात भर पढ़ाई में लगी थी।"
छाया ने आंखें मूंदे हुए तुनक कर कहा, "क्या बात है, डार्लिंग! कभी बुराई तो कभी तारीफ। तुम्हारा इरादा क्या है?"
नित्या ने शरारत से उसका कंबल खींच लिया और हंसते हुए बोली, "उठो मैडम, जागने का वक्त हो गया।"
छाया गुस्से में बोली, "आज रविवार है, सोने दो मुझे!"
नित्या मुस्कुराई, "ठीक है, पर चाची ने नाश्ते में खास आलू के परांठे बनाए हैं। उठोगी तो मिलेगा, नहीं तो बाद में मत कहना।"
इतना कहते ही छाया बाथरूम की तरफ दौड़ गई और नित्या जोर-जोर से हंसने लगी।
नाश्ते की टेबल पर सभी साथ बैठकर परांठे खा रहे थे। केशव ने छाया को देखकर कहा, "जल्दी खाओ, पता नहीं कब भूखे रहना पड़ेगा इनकी छत्रछाया में!"
सभी हँस पड़े। छाया ने गुस्से में भाई को देखा, जो परांठे से पूरा मुंह भरा लेकर फनी लग रहा था।
छाया केशव से झगड़ने ही वाली थी कि नम्रता ने बात बदलते हुए कहा, "आज हमारी बेटी नौकरी पर जाने वाली है, पेट भर के खा लो।"
केशव दबे स्वर में हंस पड़ा, छाया चिढ़ गई पर कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुराई। शाम को छाया अपने भाई के साथ पहली बार पार्ट-टाइम नौकरी पर जाने वाली थी।
"भैया, याद है न? आप मुझे छोड़ने आओगे?" छाया ने उम्मीद भरे स्वर में पूछा।
केशव ने सिर पकड़ते हुए कहा, "सॉरी, आज ऑफिस जाना है, रास्ते में छोड़ दूंगा पर एक घंटा पहले निकल जाऊंगा।"
छाया नाराज़ होकर बोली, "और मुझे बताया तक नहीं?" फिर उठकर किचन चली गई और बर्तन धोने लगी।
पापा ने कहा, "मैं चलता हूं।"
छाया मायूस होकर बोली, "आप मत जाइए, भैया के पास बाइक है, मैं खुद चल जाऊंगी। चिंता मत करो।"
मां ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखो मेरी बेटी कितनी मेहनती और समझदार है।"
छाया को ये सुन हिम्मत मिली। उसने नौकरी का फैसला कर लिया था, पर नई दुनिया में कदम रखते हुए घबराहट भी थी। केशव के साथ जाना होता तो हौसला ज़रूर मिलता।
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इसी बीच, विशाल और आग्रह अस्पताल की कैंटीन में खाना खा रहे थे। विशाल की आंखों में राहत थी। टीना अब ठीक थी।
विशाल ने आग्रह से कहा, "टीना अंकल-आंटी के साथ है, आज शाम तक घर लौट जाएगी। खुश हो न?"
आग्रह ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया और फिर सोच में खो गया। विशाल खुश था कि उसका दोस्त वापस आ गया है।
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छाया ने किचन साफ करके अपने कमरे में पढ़ाई की। तीन बजे तक वह पूरी तरह तैयार थी, चेहरे पर घबराहट और उत्साह दोनों साफ झलक रहे थे।
तभी उसके फोन पर बॉस कीर्तन का मैसेज आया — "थोड़ा लेट आऊंगा।"
छाया ने सोचा, "मैं पहले पहुंच जाऊंगी, अगर ऑफिस बंद होगा तो वहीं इंतजार करूंगी।"
जैसे ही वह ऑफिस पहुंची, दरवाजा खुला था, लेकिन अंदर सन्नाटा था। गार्ड भी कहीं नजर नहीं आ रहा था।
फोन किया, आवाज तो आ रही थी पर कोई दिख नहीं रहा था। छाया आवाज की ओर बढ़ी।
तभी उसने देखा तीन लोग शराब पी रहे थे — उनमें कीर्तन भी था, जिसने उसे नौकरी दी थी।
कीर्तन ने हँसते हुए कहा, "शिकार आ गया।"
दूसरे ने कहा, "सुंदर है न?"
तीसरे ने कहा, "इंतजार नहीं होता, जल्दी बुलाओ।"
कीर्तन बोला, "थोड़ा लेट बुलाऊंगा।"
वे सब जोर-जोर से हँसने लगे।
छाया डर गई, चुपके से पीछे हटने लगी। तभी एक आदमी ने उसे पकड़ लिया और तीनों के सामने फेंक दिया।
"आप क्या कर रहे हैं? मैं पुलिस में शिकायत करूंगी!" छाया ने घबराकर कहा।
पर कोई उसकी बात नहीं सुन रहा था। चारों ओर से आदमी उसके पास आ रहे थे।
तभी उसका हाथ पास रखे पेन पर गया। उसने पूरी ताकत से एक आदमी के चेहरे पर वार किया। वह दर्द से चीखा।
मौका पाकर वह भागने लगी, लेकिन एक ने पकड़ लिया और थप्पड़ मारने वाला था कि अचानक पीछे से एक औरत आई और गुलदान से उसके सिर पर वार किया।
छाया ने हैरानी से उस औरत को देखा।
औरत ने उसे खींचकर बाहर निकाला, "बाहर आओ!"
छाया उलझन में थी — मदद कर रही है या फंसा रही?
तभी कीर्तन और दूसरा आदमी बाहर आए। कीर्तन ने पूछा, "तुम कौन हो?"
औरत ने सख्ती से कहा, "जल्द पता चल जाएगा।"
फिर बोली, "सोचती हो मैं तुम्हारी मदद करूंगी? मैं एजेड हूं। तुम अपनी रक्षा खुद करो। मैं आज तुम्हें बचा रही हूं, कल कौन बचाएगा?"
यह सुन छाया में ताकत आई। उसने पास रखे पेपर वेट से कीर्तन के सिर पर वार किया। वह लहूलुहान हो गया।
फिर पेन से दूसरे पर वार किया। एक को थप्पड़ मारा।
अब छाया पूरी तरह बदल चुकी थी। जो लोग पहले गलत नजरों से देख रहे थे, वे कांपने लगे।
उन्होंने माफी मांगी, पर छाया को कोई दया नहीं आई।
कड़क आवाज़ में बोली, "लड़कियों की मजबूरी का फायदा उठाने वालों को…!"
तभी एक आदमी भागकर पुलिस को फोन करने लगा और कहा, वे सरेंडर कर देंगे।
औरत ने छाया के कंधे पर हाथ रखा, "अब बताओ, मदद किसे चाहिए?"
छाया को समझ आया कि वह औरत असल में उसकी मदद नहीं कर रही थी, बल्कि उसकी ताकत खुद पहचानने दे रही थी।
औरत चली गई। जल्द ही पुलिस आई। इंस्पेक्टर ने कहा, "रिपोर्ट लिखनी होगी, हमारे साथ चलो।"
छाया ने हाँ कहा और पुलिस के साथ चली गई।
चलते हुए वह उस औरत के बारे में सोच रही थी — शायद वह भगवान का भेजा फरिश्ता थी, जो उसकी जिंदगी में अचानक आई।
1. छाया की नई नौकरी का पहला दिन क्यों बन जाता है उसके लिए खतरनाक अनुभव?
2. वो रहस्यमयी औरत कौन थी जिसने छाया को खतरे से बचाया, और उसका असली मकसद क्या था?
3. क्या छाया अपने हिम्मत और साहस से उन खतरनाक लोगों का सामना कर पाएगी, और उसके बाद उसकी जिंदगी कैसी होगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की"