Khamosh Chehron ke Pichhe - 2 in Hindi Thriller by Kapil books and stories PDF | खामोश चेहरों के पीछे - भाग 2

The Author
Featured Books
  • वो पहली बारिश का वादा - 3

    कॉलेज कैंपस की सुबहबारिश के बाद की सुबह कुछ खास होती है। नमी...

  • The Risky Love - 1

    पुराने किले में हलचल.....गामाक्ष के जाते ही सब तरफ सन्नाटा छ...

  • इश्क़ बेनाम - 17

    17 देह का यथार्थ कुछ महीने बाद, मंजीत और राघवी की एक अनपेक्ष...

  • Mahatma Gandhi

    महात्मा गांधी – जीवनीपूरा नाम: मोहनदास करमचंद गांधीजन्म: 2 अ...

  • महाभारत की कहानी - भाग 121

    महाभारत की कहानी - भाग-१२२ शरशय्या में भीष्मका के पास कर्ण क...

Categories
Share

खामोश चेहरों के पीछे - भाग 2

खामोश चेहरों के पीछे   भाग 2-   अतीत का दरवाजा

राघव को उस रात नींद नहीं आई। दादी की पुरानी बातों में छुपे हुए इशारे अब उसकी सोच पर ताले की तरह लग गए थे। हर बार जब वह आँखें बंद करता, उसके कानों में वही शब्द गूंजते –
"अतीत का दरवाज़ा एक बार खुल जाए, तो वापसी का रास्ता धुंधला हो जाता है..."

सुबह होते ही वह खेतों के किनारे पुराने पीपल के पेड़ की ओर निकल पड़ा। गाँव में अफवाह थी कि इस पेड़ के नीचे कभी दौलतपुर के ठाकुर साहब का खजाना दबा हुआ था, लेकिन उससे भी डरावनी बात यह थी कि वहाँ रात में कोई गया तो कभी लौटकर नहीं आया।

रास्ते में उसे गणू मिला – गाँव का वही बुजुर्ग जो कभी कम बोलता था, पर जिसकी आँखों में सब कुछ पढ़ लेने की अजीब-सी ताकत थी।
गणू ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और धीमे स्वर में कहा –
"राघव, उस रास्ते पर मत जा... वहाँ सिर्फ मिट्टी नहीं, सदियों पुराने ज़ख्म दफन हैं।"

राघव रुक गया, लेकिन मन में उठ रही जिज्ञासा अब डर से बड़ी हो चुकी थी।
"गणू काका, मैं सिर्फ सच्चाई जानना चाहता हूँ। क्या सच में अतीत का दरवाज़ा यहीं है?"

गणू ने कोई जवाब नहीं दिया, बस अपनी जेब से एक पुराना, जंग लगा हुआ चाबी जैसा लोहे का टुकड़ा निकालकर उसकी हथेली पर रख दिया।
"अगर जाना ही है, तो ये साथ ले जाना... पर याद रखना, दरवाज़ा खुलने के बाद पीछे मत देखना।"

राघव ने उस टुकड़े को कसकर पकड़ लिया और आगे बढ़ गया।
पीपल के पेड़ के पास पहुँचते ही अजीब-सी ठंडक ने उसे घेर लिया, जबकि सूरज ऊपर तेज़ चमक रहा था। मिट्टी खोदने पर उसे एक पत्थर का फर्श नज़र आया, जिसके बीचों-बीच लोहे का छोटा-सा ताला जड़ा था।

वह झुका, और गणू द्वारा दी गई चाबी उसमें फिट करने की कोशिश की। जैसे ही ताला खुला, ज़मीन हल्के-हल्के कांपने लगी। हवा का एक तेज़ झोंका आया, और नीचे जाने वाली पुरानी सीढ़ियाँ दिखाई दीं।

राघव ने टॉर्च जलाई और सीढ़ियाँ उतरने लगा। नीचे पहुँचते ही उसने देखा – एक लंबा, अंधेरा गलियारा, जिसकी दीवारों पर पुरानी तस्वीरें टंगी थीं। तस्वीरों में दौलतपुर का पुराना किला, गाँव के लोग, और... एक चेहरा जो हूबहू उसके जैसा था!

उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह समझ नहीं पा रहा था कि ये सपना है या हकीकत। तभी पीछे से किसी के कदमों की आहट आई।
"राघव... वापस चलो!"
वह मुड़कर देखता है – गणू वहाँ खड़ा है, लेकिन उसके चेहरे पर अजीब-सी पीली रोशनी चमक रही है।

"तुम बहुत गहराई में आ चुके हो... अब ये सिर्फ तुम्हारी कहानी नहीं रही," गणू ने कहा, और अपने हाथ में पकड़ी लालटेन आगे कर दी।

लालटेन की रोशनी में सामने एक विशाल लकड़ी का दरवाज़ा था, जिस पर खून से लिखा था –
"अतीत का दरवाज़ा"।

राघव ने काँपते हाथों से दरवाज़े को छू लिया... और जैसे ही उसने धक्का दिया, उसके चारों ओर सब कुछ घूमने लगा। आवाज़ें, चीखें, और किसी पुराने युद्ध के नगाड़ों की गूंज उसके कानों में भर गई।

दरवाज़ा खुलते ही, उसने खुद को सौ साल पुराने दौलतपुर में खड़ा पाया, जहाँ चारों ओर तलवारें, घोड़ों की टापें और बारूद की गंध थी।
गणू अब एक जवान सैनिक के रूप में उसके सामने था, और बोला –
"स्वागत है, राघव... अतीत में तुम्हारा।"

(जारी रहेगा...)


मैं भाग 3 में इस समय-यात्रा और दौलतपुर के रहस्यों को और रोमांचक है जिसमें राघव को पता चलेगा कि उसका खुद का जन्म कैसे हुआ।