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(भाग 1)
बारिश अब कम हो गई थी, लेकिन कॉलेज के लॉन में गीली मिट्टी की महक अभी भी बनी हुई थी। पिछले दिनों की मुलाकातों ने अन्वी और विवेक के बीच अजीब-सा खिंचाव पैदा कर दिया था। वे दोनों खुद को एक-दूसरे की तरफ खिंचता महसूस करते थे, लेकिन कोई भी अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
उस दिन, लंच ब्रेक में विवेक ने देखा कि अन्वी कैंटीन में अकेली बैठी है। उसने धीरे-धीरे पास जाकर कहा —
"चलो, आज फिर वही झील चलते हैं।"
अन्वी ने किताब बंद करते हुए हल्की मुस्कान दी —
"तुम्हें लगता है मैं हमेशा तुम्हारे साथ घूमने तैयार रहती हूँ?"
विवेक ने हंसते हुए कहा —
"हाँ… क्योंकि तुम्हें भी अच्छा लगता है।"
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दोनों फिर उसी झील के किनारे पहुँचे। बारिश के बाद का आसमान साफ था, और पानी में बादलों का प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था। लेकिन आज विवेक के चेहरे पर कुछ गंभीरता थी, जो अन्वी ने तुरंत भांप ली।
"कुछ कहोगे नहीं?" — अन्वी ने पूछ ही लिया।
विवेक ने झील की ओर देखते हुए धीमी आवाज़ में कहा —
"अन्वी… अगर किसी दिन मैं तुम्हारे आसपास न रहूँ तो… तुम्हें फर्क पड़ेगा?"
अन्वी चौंक गई —
"ये कैसी बात कर रहे हो?"
विवेक ने उसकी आँखों में देखा —
"बस… ऐसे ही पूछ रहा हूँ।"
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अन्वी ने उसकी बात टालने की कोशिश की, लेकिन दिल के अंदर एक अनजाना डर उतर गया। विवेक की आँखों में उस दिन एक ऐसा भाव था, जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा था — जैसे वो कुछ छुपा रहा हो।
लेकिन इससे पहले कि वह और कुछ पूछ पाती, अचानक अन्वी का फोन बजा। स्क्रीन पर "माँ" का नाम चमक रहा था।
"हाँ माँ…" — उसने धीरे से फोन उठाया।
दूसरी तरफ से माँ की आवाज़ में घबराहट थी —
"बेटा, जल्दी घर आ जाओ… पापा की तबीयत ठीक नहीं है।"
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अन्वी का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने फौरन विवेक की तरफ देखा —
"विवेक… मुझे घर जाना होगा, अभी!"
विवेक ने बिना कुछ पूछे बाइक स्टार्ट की और उसे घर छोड़ आया। रास्ते भर दोनों चुप रहे। विवेक के मन में हजार सवाल थे, लेकिन वह जानता था कि यह समय सवाल करने का नहीं है।
जब अन्वी घर के गेट के अंदर चली गई, तो विवेक ने एक लंबी सांस ली। उसे महसूस हो रहा था कि यह शाम… शायद उनकी ज़िंदगी का एक मोड़ बनने वाली है।
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(भाग 2)
अन्वी घर में दाख़िल हुई तो लिविंग रूम में तनाव का माहौल था। पापा सोफ़े पर लेटे थे, उनके पास डॉक्टर और मम्मी खड़े थे। डॉक्टर ने दवा का पैकेट मम्मी को देते हुए कहा —
"ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ गया था, अभी कंट्रोल में है… लेकिन इन्हें सख़्ती से आराम और डायट का ध्यान रखना होगा।"
मम्मी ने गंभीरता से सिर हिलाया।
अन्वी पापा के पास बैठ गई —
"पापा, आप ठीक हैं ना? आपने बताया क्यों नहीं?"
पापा ने उसकी ओर देखकर हल्की मुस्कान दी —
"बेटा, ये उम्र है… अब तुम्हारे ऊपर भी ज़िम्मेदारियाँ आ जाएँगी।"
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अन्वी का दिल भर आया। उसने धीरे से उनका हाथ पकड़ लिया। मम्मी ने पास आकर कहा —
"तुम्हारी पढ़ाई के साथ-साथ अब हमें भी थोड़ा संभालना होगा। और हाँ, अब कॉलेज के बाद कहीं घूमना-फिरना कम करना, घर जल्दी आना ज़रूरी है।"
यह सुनकर अन्वी को विवेक की याद आई। वो सोचने लगी कि अब उससे मिलना पहले जैसा आसान नहीं होगा।
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शाम को, जब पापा आराम कर रहे थे, अन्वी अपने कमरे में बैठी थी। बाहर खिड़की पर बारिश फिर से शुरू हो चुकी थी। वो विवेक को मैसेज करने के लिए फोन उठाती, फिर रख देती। पता नहीं क्यों… लेकिन आज उसे उससे बात करने में हिचकिचाहट हो रही थी।
उधर, विवेक भी बेचैन था। वह अन्वी का हाल जानना चाहता था, लेकिन उसे लग रहा था कि शायद अभी फोन करना ठीक नहीं होगा।
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अगले दिन कॉलेज में अन्वी नहीं आई। तीसरे दिन जब वो आई, तो उसकी आँखों में नींद की कमी और चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी। लंच ब्रेक में विवेक उसके पास आया —
"कैसी है अब सब?"
"ठीक है… बस थोड़ा संभलना है," — अन्वी ने हल्के स्वर में जवाब दिया।
विवेक कुछ कहना चाहता था, लेकिन तभी अन्वी की मम्मी का फोन आ गया। उसने कॉल रिसीव की और कुछ पल बाद विवेक से कहा —
"मुझे आज भी जल्दी घर जाना है।"
विवेक ने मुस्कुराने की कोशिश की —
"ठीक है, मैं छोड़ देता हूँ।"
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रास्ते में, दोनों के बीच सिर्फ़ बाइक की आवाज़ थी। विवेक सोच रहा था कि कैसे इस बदलते माहौल में अन्वी को हिम्मत दे, और अन्वी सोच रही थी कि कहीं ये बदलाव उनकी दोस्ती में दूरी न ले आए।
जब बाइक घर के बाहर रुकी, अन्वी ने उतरते हुए धीमी आवाज़ में कहा —
"विवेक… शायद अब पहले जैसा नहीं होगा।"
विवेक का दिल धक से रह गया, लेकिन उसने सिर्फ़ इतना कहा —
"जो भी होगा… हम साथ रहेंगे।"
(भाग 3)
अगले हफ़्ते घर का माहौल और भी बदल गया। पापा की सेहत में थोड़ी सुधार थी, लेकिन मम्मी अब उनकी हर छोटी-बड़ी ज़रूरत के लिए सतर्क रहतीं।
एक शाम डाइनिंग टेबल पर मम्मी ने कहा —
"अन्वी, तुम्हारी पढ़ाई के बाद हम चाहते हैं कि तुम्हारा रिश्ता अच्छे घर में हो जाए।"
अन्वी चौंक गई —
"अभी तो मेरी पढ़ाई बाकी है, मम्मी!"
मम्मी ने मुस्कुराकर कहा —
"हाँ, लेकिन बातें पहले से तय कर ली जाएँ तो अच्छा होता है। तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा… बहुत अच्छा है, पढ़ाई भी बाहर से की है।"
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अन्वी का मन अचानक भारी हो गया। उसकी नज़रें सामने रखी थाली पर टिक गईं, लेकिन दिमाग में सिर्फ़ विवेक का चेहरा था।
रात को, अपने कमरे में, उसने विवेक को मैसेज टाइप किया —
"मुझसे मिलने आओ… ज़रूरी है।"
लेकिन उसने सेंड नहीं किया।
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अगले दिन कॉलेज में, विवेक ने उसकी उदासी भांप ली।
"क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?" — उसने पूछा।
अन्वी ने कुछ पल चुप रहकर कहा —
"विवेक… अगर तुम्हें कोई अपना कहने से पहले घरवालों से इजाज़त लेनी पड़े, और वो इजाज़त न मिले… तो?"
विवेक ने उसकी आँखों में देखते हुए जवाब दिया —
"तो मैं लड़ूँगा… क्योंकि दिल की बात से बड़ा कोई हुक्म नहीं।"
ये सुनकर अन्वी की आँखें नम हो गईं, लेकिन उसने बात आगे नहीं बढ़ाई।
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कुछ दिन बाद, कॉलेज के बाहर विवेक ने देखा कि अन्वी एक कार में बैठ रही है। कार ड्राइव कर रहा था एक अनजान युवक — अच्छी ड्रेस में, स्मार्ट, और मुस्कुराता हुआ।
विवेक के दिल में जैसे किसी ने तेज़ चोट की हो।
उसने उसी वक्त अन्वी को कॉल किया, लेकिन उसने फोन रिसीव नहीं किया।
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उस रात, बारिश हो रही थी। विवेक अकेला झील के किनारे बैठा था।
वो सोच रहा था —
"क्या वो लड़का वही है, जिसके लिए घरवाले रिश्ता देख रहे हैं?"
उसके मन में सवाल और शक दोनों थे, लेकिन जवाब कहीं नहीं था।
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(भाग 4)
बारिश की ठंडी बूँदें विवेक के चेहरे पर गिर रही थीं, लेकिन उसके भीतर जलन की लपटें उठ रही थीं।
"क्या अन्वी ने मुझसे कुछ छुपाया?" — ये सवाल उसे चैन नहीं लेने दे रहा था।
अगले दिन कॉलेज में उसने अन्वी को देखा। वो सामान्य दिखने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी आँखों में बेचैनी साफ थी।
विवेक ने सीधे पूछा —
"कल तुम्हारे साथ जो था… वो कौन था?"
अन्वी एक पल के लिए चुप रही, फिर बोली —
"वो पापा के दोस्त का बेटा है… बस।"
"बस?" — विवेक की आवाज़ में तड़प थी।
"क्या ये वही है… जिसके लिए तुम्हारे घर वाले…"
अन्वी ने बीच में ही रोक दिया —
"विवेक, प्लीज़… अभी मुझसे कुछ मत पूछो। सब वक़्त आने पर बताऊँगी।"
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उसकी आवाज़ में ऐसा दर्द था कि विवेक के सवाल वहीं थम गए।
लेकिन दिल में बिठा लिया गया शक आसानी से नहीं निकलता।
शाम को, अन्वी की मम्मी ने उसे बुलाकर कहा —
"कल उस लड़के के घर जाना है। उनका परिवार तुमसे मिलना चाहता है।"
अन्वी ने धीरे से कहा —
"मम्मी, मैं… तैयार नहीं हूँ।"
"ये बातें सोचकर नहीं होतीं, बेटा। ये मौका बार-बार नहीं आता," — मम्मी का स्वर सख़्त हो गया।
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अगले दिन, अन्वी उस घर गई। वहाँ वही युवक मिला — अर्णव। उसने बहुत शिष्टता से उसका स्वागत किया।
बातचीत के दौरान अर्णव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा —
"अन्वी, मुझे तुम पसंद हो… लेकिन शायद तुम किसी और को चाहती हो।"
अन्वी चौंक गई —
"आप… ये कैसे…?"
अर्णव ने शांत स्वर में कहा —
"आँखें सच छुपा नहीं पातीं। मैं तुम्हें मजबूर नहीं करूँगा… लेकिन तुम्हारे पापा की सेहत का ख्याल रखना भी ज़रूरी है।"
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उसकी बातें अन्वी के दिल को छू गईं, लेकिन उसने महसूस किया कि अब उसका रास्ता और कठिन हो गया है।
उसने सोचा —
"क्या मैं अपने दिल की सुनूँ… या पापा की?"
बारिश बाहर तेज़ हो रही थी, और अंदर अन्वी के दिल में तूफ़ान।
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Writer: Rekha Rani