बारिश की पहली बूंद जैसे ही ज़मीन को छुई, हवा में मिट्टी की वो भीनी-भीनी खुशबू फैल गई।
अंशुल बालकनी में खड़ा कॉफी पी रहा था और सामने वाली गली में पानी की छोटी-छोटी धाराएँ बह रही थीं।
उसे बारिश हमेशा से पसंद थी, लेकिन इस बार दिल किसी और वजह से धड़क रहा था —
आज उसे कॉलेज का पहला दिन याद आ रहा था, जब उसने उसे पहली बार देखा था… रूपा को।
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पहली मुलाक़ात
तीन साल पहले, इसी मौसम में, कॉलेज के गेट पर एक लड़की भीगती हुई अंदर आई थी।
उसके बाल भीगे हुए थे, चेहरा पानी से चमक रहा था, और हाथ में किताबें थीं जिन्हें वो बचाने की कोशिश कर रही थी।
अंशुल ने छाता आगे बढ़ाया और कहा,
"अगर आप चाहें तो साथ चल सकते हैं, वरना किताबें बरसात में तैरना सीख जाएँगी।"
रूपा हल्का मुस्कुराई — और वही मुस्कान अंशुल के दिल में बस गई।
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दोस्ती का सफ़र
धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती बढ़ी।
कॉलेज के कैंटीन में एक साथ चाय पीना, लाइब्रेरी में एक-दूसरे के नोट्स शेयर करना, और कभी-कभी बरसात में बिना छाते के चलना — ये सब उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया।
अंशुल को महसूस होने लगा था कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं रही।
लेकिन उसने कभी कहा नहीं, क्योंकि रूपा हमेशा कहती थी — "मैं प्यार-व्यार में विश्वास नहीं करती, दोस्ती ही सबसे बड़ी चीज़ है।"
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पहला इकरार
एक दिन, कॉलेज के आख़िरी साल में, अचानक रूपा की आँखों में आँसू थे।
उसने बताया कि उसके पापा की तबीयत बहुत ख़राब है और उसे अपने गाँव वापस जाना पड़ सकता है।
अंशुल ने उसका हाथ थामकर कहा —
"तुम्हें जो भी मुश्किल होगी, मैं साथ रहूँगा। बस एक बार मुझ पर भरोसा करके देखो।"
रूपा चुप रही, लेकिन उसकी आँखों में हल्की-सी चमक थी।
शायद वो समझ रही थी कि अंशुल सिर्फ दोस्त नहीं है।
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जुदाई के दिन
रूपा अपने गाँव चली गई।
फोन पर बात होती रही, लेकिन दिन-ब-दिन दूरी बढ़ने लगी।
अंशुल शहर में नौकरी करने लगा और रूपा अपने पापा की देखभाल में व्यस्त हो गई।
कभी-कभी हफ़्तों बात नहीं होती, लेकिन अंशुल हर बार उसी बारिश का इंतज़ार करता,
जिसमें वो दोनों पहली बार मिले थे।
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अनकहा प्यार
एक साल बीत गया।
अंशुल ने कई बार सोचा कि उसे गाँव जाकर अपने दिल की बात कह दे,
लेकिन डर था — कहीं रूपा मना कर दे, तो दोस्ती भी खत्म हो जाएगी।
फिर एक दिन अचानक रूपा का मैसेज आया —
"बारिश हो रही है… तुम्हें याद कर रही हूँ।"
अंशुल ने तुरंत जवाब लिखा — "मैं भी… और हमेशा करता रहूँगा।"
फिर अचानक उसके अंदर हिम्मत आई और उसने टाइप किया — "रूपा, I love you."
सेंड करने से पहले उसका दिल तेज़ धड़कने लगा, लेकिन उसने मैसेज भेज दिया।
कुछ मिनट तक कोई जवाब नहीं आया।
फिर स्क्रीन पर एक नोटिफिकेशन आया —
"मुझे भी तुमसे प्यार है, अंशुल… बस कहने की हिम्मत नहीं हुई कभी।"
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मिलन
अगले ही हफ़्ते अंशुल गाँव पहुँचा।
बारिश हो रही थी, और रूपा घर के आँगन में खड़ी थी, बाल भीग रहे थे।
अंशुल बिना कुछ कहे उसके पास गया और उसका हाथ थाम लिया।
"अब चाहे बारिश हो या तूफ़ान, मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगा।"
रूपा की आँखों से आँसू बह निकले, लेकिन इस बार वो खुशी के थे।
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बरसात का वादा
दोनों ने तय किया कि इस रिश्ते को शादी तक ले जाएंगे,
लेकिन जल्दीबाज़ी नहीं करेंगे — पहले अपने सपने पूरे करेंगे, फिर साथ में ज़िंदगी।
हर साल जब बारिश आती, अंशुल और रूपा उसी जगह मिलते जहाँ उनकी पहली मुलाकात हुई थी।
वो छाता, जो कभी सिर्फ किताबों को बचाने के लिए था, अब उनके रिश्ते का प्रतीक बन गया था।
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कहानी का अंत (या शायद शुरुआत)
तीन साल बाद, उसी बरसात के मौसम में, दोस्तों और परिवार के बीच
अंशुल और रूपा ने शादी की।
शादी में भी हल्की-हल्की बारिश हो रही थी —
जैसे आसमान भी इस प्रेम कहानी का हिस्सा बनना चाहता हो।
और यूँ, बरसात जो कभी सिर्फ मौसम थी, अब उनके लिए प्यार की याद बन गई।
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शिक्षा:
कभी-कभी प्यार कहने की हिम्मत देर से आती है,
लेकिन अगर एहसास सच्चा हो, तो वक्त और दूरी भी उसे मिटा नहीं पाते।