The last letter in Hindi Motivational Stories by mood Writer books and stories PDF | आखिरी चिट्ठी

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आखिरी चिट्ठी

भाग-1: शुरुआत
राघव, एक छोटे से कस्बे में रहने वाला एक साधारण सा डाकिया था। उम्र लगभग पचपन साल, सफ़ेद होते बाल, और चेहरे पर समय की लकीरें। वह पिछले तीस साल से लोगों के घर-घर चिट्ठियां, मनीऑर्डर और पार्सल पहुँचाता आया था।

लेकिन समय बदल रहा था। मोबाइल और ईमेल के जमाने में चिट्ठियों का आना लगभग बंद हो गया था। राघव का काम अब बस बिजली के बिल और सरकारी नोटिस पहुंचाने तक सिमट गया था।

फिर भी, उसके दिल में चिट्ठियों के लिए एक खास जगह थी — कागज़ पर लिखी स्याही में जो अपनापन होता है, वो किसी स्क्रीन पर नहीं मिलता।


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भाग-2: रहस्यमयी लिफ़ाफ़ा
एक दिन डाकखाने में छंटाई करते समय उसकी नज़र एक पुराने, पीले पड़ चुके लिफ़ाफ़े पर पड़ी। उस पर साफ़-साफ़ लिखा था —
"सुमन, गुलमोहर हवेली, पुराना बाज़ार, बनासपुर"

लेकिन चौंकाने वाली बात ये थी कि लिफ़ाफ़े पर तारीख़ थी 12 अगस्त 1995 — यानी 30 साल पुराना!
पता तो कस्बे में ही था, लेकिन इतने साल बाद ये चिट्ठी कैसे मिली?

राघव ने तय किया कि वो इसे खुद जाकर देगा।


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भाग-3: गुलमोहर हवेली
गुलमोहर हवेली अब खस्ताहाल हो चुकी थी। लकड़ी के दरवाज़े पर जंग लगे कुंडे थे। राघव ने दरवाज़ा खटखटाया।
एक बूढ़ी औरत ने दरवाज़ा खोला। चेहरा झुर्रियों से भरा, लेकिन आँखों में एक अजीब चमक थी।

"जी, आप सुमन हैं?" राघव ने पूछा।
महिला ने हैरानी से सिर हिलाया, "हाँ, मैं ही हूँ।"

राघव ने लिफ़ाफ़ा आगे बढ़ाते हुए कहा, "ये चिट्ठी… 30 साल पुरानी है, लेकिन शायद ये आपको पढ़नी चाहिए।"

सुमन के हाथ काँपने लगे। उसने लिफ़ाफ़ा खोला और पढ़ना शुरू किया।


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भाग-4: चिट्ठी का सच
चिट्ठी में लिखा था —
"सुमन,
जब तुम ये पढ़ोगी, शायद मैं बहुत दूर जा चुका होऊँगा। मुझसे गलती हुई, लेकिन मेरा दिल कभी तुम्हारे बिना नहीं रह सका। अगर कभी माफ़ कर सको तो गुलमोहर हवेली के पीछे वाले नीम के पेड़ के नीचे आ जाना… मैं हर सावन वहाँ तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।
— आर्यन"

सुमन पढ़ते-पढ़ते रोने लगी। उसने धीमे स्वर में कहा,
"आर्यन मेरा बचपन का दोस्त था… हम शादी करने वाले थे, लेकिन एक गलतफहमी में उसने मुझसे बात करना बंद कर दिया। शायद ये चिट्ठी उसी वक्त आई थी, लेकिन मुझे कभी मिली ही नहीं।"


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भाग-5: पछतावा और खोज
राघव के दिल में अजीब सी कसक हुई।
"क्या आर्यन अब भी…"
सुमन ने सिर झुका लिया, "नहीं, सुना है वो 15 साल पहले ही गुजर गया।"

कुछ पल की खामोशी के बाद सुमन बोली,
"काश ये चिट्ठी मुझे समय पर मिल जाती… मेरी ज़िन्दगी शायद अलग होती।"


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भाग-6: राघव का निर्णय
राघव ने उस दिन महसूस किया कि कभी-कभी वक्त पर पहुँचा एक शब्द, किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है।

अगले दिन उसने अपनी पुरानी डाक की अलमारी खोली और तय किया कि जो भी अनपहुंची चिट्ठियां होंगी, वो उन्हें ढूँढकर सही लोगों तक पहुँचाएगा — चाहे वो कितनी भी पुरानी क्यों न हों।

उसके लिए ये बस एक डाकिया होने का काम नहीं था… ये उसके दिल का फ़र्ज़ बन गया था।


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भाग-7: संदेश
सीख:
शब्दों में ताकत होती है — लेकिन उनका असर तभी होता है जब वे सही समय पर सही जगह पहुँचें। इसलिए भावनाओं को रोककर मत रखो, जो कहना है समय रहते कह दो, वरना शायद वो पल कभी वापस न आए।