शीर्षक: “पीछे मत देखना”
रवि देर रात ऑफिस में फँस गया था। घड़ी ने बारह बजाए और बिल्डिंग में अँधेरा छा गया। बैकअप लाइट सिर्फ़ उसकी मंज़िल पर टिमटिमा रही थी।
लिफ्ट बंद थी, तो वो सीढ़ियों से उतरने लगा। सातवीं से छठी, फिर पाँचवीं मंज़िल… तभी उसे एक हल्की सी हँसी सुनाई दी। वो रुक गया। यह किसी छोटे बच्चे की हँसी थी।
उसने सोचा—"शायद भ्रम होगा"—और आगे बढ़ा। पर अब वो हँसी करीब आती जा रही थी, जैसे कोई उसके पीछे-पीछे चल रहा हो।
अचानक, उसके कान में एक धीमी सी फुसफुसाहट गूँजी—
"पीछे मत देखो..."
रवि का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने कदम तेज़ कर दिए, पर हर कदम के साथ उसे महसूस हुआ कि कोई उसके पीछे भी उतने ही कदम भर रहा है… बस आधा सेकंड देर से।
चौथी मंज़िल पर लाइट एक पल के लिए बुझ गई। अँधेरे में उसने railing के पास एक परछाई देखी… लंबी, अजीब-सी, जैसे इंसान की न हो। वो हल्के-हल्के हिल रही थी।
उसने खुद को समझाया और आगे बढ़ा। लेकिन आवाज़ फिर आई—
"मत देखो..."
अब ये फुसफुसाहट उसके कान के बिलकुल पास महसूस हो रही थी।
दूसरी मंज़िल पर पहुँचकर उसने देखा—नीचे, ग्राउंड फ्लोर के पास, कोई खड़ा है। सफेद कपड़े, झुका हुआ सिर। उसकी हरकत बिलकुल स्थिर थी… बस एक बात अजीब थी—उसके आसपास की हवा हल्के-हल्के काँप रही थी, जैसे गर्मी में हवा काँपती है।
रवि ने एक पल को रुककर सोचा… क्या वो सच में इंसान है? तभी…
"अब देखो..."
रवि के पैर अपने आप रुक गए। उसका सिर धीरे-धीरे पीछे मुड़ने लगा।
उसने देखा—सीढ़ियों पर कोई खड़ा था, बिल्कुल नज़दीक, इतनी नज़दीक कि उसकी साँस चेहरे से टकरा रही थी… पर उस चेहरे पर कोई आँखें नहीं थीं। सिर्फ़ काली खाली जगहें।
अगले पल, सब अँधेरा।
और सुबह, बिल्डिंग के चौकीदार ने सीढ़ियों पर रवि का फोन पाया… जिसकी रिकॉर्डिंग में बस एक ही आवाज़ थी—
"मैंने कहा था, मत देखो..." ।"
यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है
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