(छाया ने नित्या और काशी की सुरक्षा के लिए खुद को नित्या बताकर अगवा होने से बचाया, पर खुद अगवा हो गयी। पुलिस ने डैनी की साजिश का पर्दाफाश किया। विशाल, परिवार और पुलिस छाया की तलाश में लगे रहे। छाया एक अंधेरे कमरे में बंधी मिली, जहाँ शादी का मंडप सज रहा था। उसने खतरनाक औरत को बेहोश कर कुर्सी से बांध दिया और मंडप की ओर दौड़ी। दूल्हे को देखकर उसका सामना प्रमोद से हुआ जो नित्या से शादी करना चाहता था। साहस और धैर्य दिखाते हुए छाया ने प्रमोद के साथियों को रोक दिया और अंततः खुद सुरक्षित निकलने में सफल रही। अब आगे )
घर वापसी
छाया ने बाहर की ओर कदम बढ़ाया। चारों तरफ़ सन्नाटा था, ज्यादा चहल-पहल नहीं थी। वह कुछ दूर तक चली—जगह उसे अच्छी तरह पता थी। यह वही जगह थी, जहाँ वह नित्या की मंगनी के समय प्रमोद के गांव में आती रही थी। अब वह समझ चुकी थी कि उसे क्या करना है।
थोड़ी दूरी पर पहुँचते ही वह एक छोटी सी मार्किट में आई। वहाँ एक सुनार की छोटी सी दुकान थी। वह अंदर गई, अपने गले की कीमती चेन निकालकर सुनार से बोली—“यह मेरे लिए बहुत कीमती है। मैं इसे गिरवी रखना चाहती हूँ, कुछ दिनों में वापस ले लूंगी।”
सुनार ने चेन को ध्यान से देखा और 5000 रुपये देकर उसे सुरक्षित रख लिया। छाया ने अपना फोन लिया और सीधा केशव भैया को कॉल किया। “मैं रत्नागिरी में हूँ।”
केशव ने जोर से आवाज़ दी और सबको बुलाया। सबने छाया की खैरियत पूछी। उसने कहा कि वह ठीक है और 5 मिनट में बस लेगी। केशव खुशी से बोला—“वहां मैं लेने आता हूँ।”
छाया ने सुनार को धन्यवाद कहा और बस स्टैंड की ओर बढ़ी। थोड़ी देर में वह कुशल नगर के लिए बस में बैठ गई। रात बहुत लंबी लगी, लेकिन घर पहुँचने की खुशी उसके चेहरे पर झलक रही थी। इस संतोष और खुशी ने उसे नींद के आगोश में ढकेल दिया।
बस में कई लोग उसे घूर रहे थे, एक अकेली, कम उम्र की लड़की को देखकर। छाया इस सब से अनजान थी और गहरी नींद में थी। तभी कंडक्टर की आवाज़ से उसकी नींद टूटी—“सफर लंबा है, सभी यही पर खाना खा लें।”
छाया ने पूछा—“क्या कुशल नगर आ गया?”
कंडक्टर ने कहा—“कल सुबह पहुँचेगा, अब खाना खा लो।”
वह मुस्कराई और दुबारा सो गई।
इधर जतिन, नम्रता, केशव और नित्या बेहद खुश थे। जतिन ने इंस्पेक्टर ठाकुर, विशाल और काशी की खैरियत बताई। सबने राहत की सांस ली।
जैसे ही सुबह हुई, कंडक्टर बार-बार उठाने लगा। छाया नींद में थी, लेकिन झल्ला कर बोला—“कुशल नगर आ गया, मैडम! उतरेंगी।”
छाया को होश आया कि वह घर नहीं, बस में है। जल्दी से वह उतरी और छोटे बैग के साथ कदम बढ़ाए, जिसमें उसने चेन बेचकर मिला कैश रखा था।
तभी अचानक—“छाया! इधर!”
वह मुड़ी और देखा विशाल खड़ा था। विशाल ने दौड़कर उसे गले लगा लिया। छाया के चेहरे पर खुशी झलक रही थी, वह बार-बार विशाल को छूते हुए देखने लगी। उसने सोचा—काश यह पल हमेशा के लिए थम जाए।
लेकिन अचानक विशाल ने उसे खुद से अलग कर दिया। सामने पूरा परिवार था। नम्रता और नित्या कुछ पूछने लगीं। छाया ने जवाब दिया—“यह सब काम प्रमोद का था।”
केशव आगबबूला हो गया—“उस **** प्रमोद की हिम्मत!”
जतिन ने उसे शांत किया—“शांत हो जाओ, हमारी बेटी सुरक्षित वापस आ गई है।”
छाया ने सबके गले लगकर खुशियाँ बाँटी। इंस्पेक्टर ठाकुर को कॉल कर विशाल ने प्रमोद की खबर दी। दो गाड़ियाँ परिवार के लिए आईं। छाया ने अचानक उछलते हुए कहा—“वाह पापाजी! हम सब कार से जाएंगे।” सब मुस्कुरा दिए।
केशव ने हंसते हुए “बातें बाद में, पहले कार में बैठो।” कहकर दरवाजा खोला।
सफर के दौरान छाया और विशाल लगातार एक-दूसरे की ओर झांक रहे थे, नजरों से बातें कर रहे थे। घर पहुँचने के बाद पुलिस ने छाया से बयान लिया। इंस्पेक्टर ने फिर से उसकी तारीफ की। नित्या लगातार हाथ पकड़कर खुश थी।
जब विशाल कार में अपने घर की ओर बढ़ा, उसने साइट मिरर में देखा—छाया उसे देख मुस्कराते हुए शर्मा रही थी। घर आते ही विशाल के फोन पर मैसेज आया। छाया ने लिखा—“थैंक्यू।”
सब कार से उतर गये।
विशाल ब्लश कर गया, मन कर रहा था कि वह भागकर उसे गले लगा ले, लेकिन खुद को संभाल लिया।
तभी अचानक वह अपनी पुरानी बातें याद करने लगा—“तुम्हें शर्म नहीं आती इस तरह हरकत करने में? प्यार की बात तो बहुत दूर है। अब अपनी हद में रहना, समझी?”
छाया की यादें, उसकी मुस्कान, बिताए पल—सारे भाव उसके दिल में उमड़ आए। पछतावा और खिंचाव के बीच विशाल ने गहरी सांस ली।
1. छाया की बहादुरी ने उसे बचा लिया, लेकिन क्या कोई नया खतरा अब उसके और उसके परिवार के लिए उभर सकता है?
2. विशाल की यह पहल विशाल और छाया के संबंध मे क्या नया मोड़ लाएगी ?
3. प्रमोद का रहस्य उजागर हो चुका है—क्या वह अपनी हार को चुपचाप स्वीकार करेगा, या कोई नया षड़यंत्र रचने की कोशिश करेगा?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "छाया प्यार की".