Narendra Modi Biography - 1 in Hindi Biography by mood Writer books and stories PDF | Narendra Modi Biography - 1

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Narendra Modi Biography - 1


भाग 1 – बचपन और शुरुआती जीवन (लगभग 4000 शब्द)

प्रस्तावना

किसी भी महान व्यक्ति के जीवन को समझने के लिए उसके बचपन और परिवेश को जानना बेहद आवश्यक है। क्योंकि वही उसकी सोच, आदतें और संघर्ष की नींव रखते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का बचपन, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और वडनगर का वातावरण हमें यह समझने में मदद करता है कि किस तरह एक साधारण परिवार का बच्चा आगे चलकर देश का सर्वोच्च नेता बना।


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जन्म और परिवार

नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितम्बर 1950 को गुजरात राज्य के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित छोटे से कस्बे वडनगर में हुआ। यह कस्बा इतिहास में बौद्ध संस्कृति, शिक्षा और व्यापार के लिए प्रसिद्ध रहा है, लेकिन आज़ादी के बाद यह एक साधारण-सा कस्बा था, जहाँ अधिकांश लोग छोटे-मोटे धंधे, खेती या मजदूरी पर निर्भर रहते थे।

उनके पिता का नाम दामोदरदास मूलचंद मोदी था, जो रेलवे स्टेशन के पास एक छोटी-सी चाय की दुकान चलाते थे। उनकी माता हीराबेन मोदी एक साधारण, धार्मिक और मेहनती महिला थीं। परिवार बहुत संपन्न नहीं था, लेकिन संस्कारों और सादगी से भरा हुआ था। मोदी पाँच भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थे।

यह परिवार ओबीसी समुदाय के "घांची" वर्ग से आता था, जिसे उस दौर में समाज के पिछड़े वर्गों में गिना जाता था। इस कारण नरेंद्र मोदी ने बचपन से ही गरीबी और सामाजिक असमानता को नज़दीक से देखा। यही अनुभव आगे चलकर उनकी राजनीति और विचारधारा को आकार देने वाले साबित हुए।


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वडनगर का माहौल

वडनगर एक छोटा लेकिन जीवंत कस्बा था। यहाँ बाजारों की चहल-पहल, मंदिरों की घंटियाँ और छोटे दुकानदारों की आवाजें हमेशा गूंजती रहती थीं। इस माहौल ने नरेंद्र मोदी को जीवन के यथार्थ से परिचित कराया।

उनके पिता रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को चाय पिलाते थे। छोटा नरेंद्र भी अपने पिता की मदद करने रेलवे स्टेशन जाया करता था। कई बार वह खुद भी यात्रियों को चाय परोसता। यही अनुभव उन्हें साधारण लोगों की तकलीफों और संघर्षों को समझने में मददगार बना।


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बचपन की कठिनाइयाँ

गरीबी ने उनके बचपन को कठिन बना दिया था। स्कूल जाने से पहले उन्हें घर के कामों और चाय की दुकान में मदद करनी पड़ती। पढ़ाई के लिए संसाधन सीमित थे—ना अच्छे कपड़े, ना किताबों की भरमार। लेकिन मोदी जी ने हमेशा मेहनत को अपना साथी बनाया।

वे अक्सर कहते हैं कि –
"गरीबी में जीते हुए भी मेरे माता-पिता ने हमें आत्मसम्मान और परिश्रम का मूल्य सिखाया।"


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शिक्षा और अध्ययन

नरेंद्र मोदी की शुरुआती पढ़ाई वडनगर के एक साधारण विद्यालय में हुई। वे पढ़ाई में औसत से अच्छे थे, लेकिन उनका असली हुनर कक्षा से बाहर की गतिविधियों में दिखता था। उन्हें नाटक, वाद-विवाद और भाषण में गहरी रुचि थी।

वे बचपन से ही मंच पर जाकर संवाद बोलने में निपुण थे। अक्सर वे स्कूल के नाटकों में हिस्सा लेते और अपनी आवाज़ व अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लेते। यह गुण उनके भीतर जन्मजात नेतृत्व की क्षमता को उजागर करता था।


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बाल्यकाल के संस्कार

नरेंद्र मोदी के घर में धार्मिक वातावरण था। उनकी माता हीराबेन बहुत धार्मिक थीं और रोज़ पूजा-पाठ करती थीं। वे अपने बच्चों को सत्य, ईमानदारी और सेवा का पाठ पढ़ाती थीं। मोदी बचपन से ही माँ के साथ मंदिर जाते और भक्ति-भाव से जुड़ते।

उन्होंने बहुत कम उम्र में ही स्वामी विवेकानंद के विचार पढ़े। विवेकानंद की पुस्तकों ने उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला। समाज सेवा, राष्ट्रभक्ति और आत्मनिर्भरता के विचार मोदी के व्यक्तित्व का हिस्सा बन गए।


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मित्र और सामाजिक जीवन

बचपन में नरेंद्र मोदी अपने दोस्तों के बीच मददगार और अलग सोच वाले बच्चे के रूप में जाने जाते थे। वे केवल खेलकूद में नहीं उलझते, बल्कि समाज और देश से जुड़ी बातें सोचते।

उनके मित्र बताते हैं कि मोदी को शुरू से ही संगठन और नेतृत्व करने का शौक था। वे मोहल्ले के बच्चों को इकट्ठा कर कोई नाटक करवाते, रचनात्मक काम कराते या फिर किसी समस्या का समाधान ढूंढते।


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रेलवे स्टेशन और चाय की दुकान

मोदी के जीवन में रेलवे स्टेशन का खास महत्व है। बचपन से लेकर किशोरावस्था तक उन्होंने अपने पिता के साथ चाय बेची। यह काम साधारण था, लेकिन इसने उन्हें आम जनता से जोड़ दिया।

वह यात्रियों को देखते, उनसे बातें करते और उनकी मुश्किलें समझते। इस अनुभव ने उन्हें यह सिखाया कि देश का बड़ा हिस्सा साधारण मेहनतकश लोगों से बना है, और इन्हीं की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है।


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किशोरावस्था और सोच का विस्तार

जैसे-जैसे वे बड़े हुए, उनका मन सिर्फ परिवार तक सीमित नहीं रहा। वे देश और समाज के लिए कुछ करने का सपना देखने लगे। भारत उस समय गरीबी, अशिक्षा और विभाजन की पीड़ा से जूझ रहा था। यह माहौल नरेंद्र मोदी को गहराई से प्रभावित करता था।

वे पढ़ाई के साथ-साथ स्थानीय पुस्तकालय में जाकर किताबें पढ़ते। उन्हें विशेषकर वीरता, संघर्ष और समाजसेवा पर लिखी पुस्तकें पसंद थीं। उनके आदर्शों में महात्मा गांधी, सरदार पटेल और विवेकानंद प्रमुख थे।