Narendra Modi Biography - 4 in Hindi Biography by mood Writer books and stories PDF | Narendra Modi Biography - 4

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Narendra Modi Biography - 4

भाग 4 – राजनीतिक जीवन की शुरुआत (गुजरात)

प्रस्तावना

आध्यात्मिक साधना और संन्यास की खोज के बाद जब नरेंद्र मोदी RSS में लौटे, तब उनका जीवन पूरी तरह सेवा और संगठन को समर्पित हो गया। RSS ने उन्हें एक अनुशासित, परिपक्व और समाज-सेवी कार्यकर्ता के रूप में गढ़ा। अब उनकी असली यात्रा शुरू हो रही थी – वह यात्रा जिसने उन्हें गुजरात की राजनीति का हिस्सा बनाया और धीरे-धीरे राष्ट्रीय पटल पर एक बड़ा चेहरा।


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प्रचारक के रूप में शुरुआती दिन

RSS में प्रचारक का जीवन कठिन होता है। नरेंद्र मोदी ने इस चुनौतीपूर्ण जीवन को अपनाया और गाँव-गाँव घूमकर शाखाएँ संचालित करने लगे।

वे युवाओं को शाखा से जोड़ते।

समाज में संघ के विचारों को फैलाते।

साधारण जीवन जीते और पूरी तरह संगठन पर केंद्रित रहते।


धीरे-धीरे उनकी मेहनत और ईमानदारी ने वरिष्ठों का ध्यान खींचा। उन्हें अधिक जिम्मेदारियाँ मिलने लगीं।


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आपातकाल का दौर (1975–77)

1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया। इस दौरान विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लग गई और लोकतंत्र पर संकट छा गया।

RSS और जनसंघ (भाजपा का पूर्व रूप) इस आपातकाल के खिलाफ थे। नरेंद्र मोदी ने भी भूमिगत होकर काम किया।

वे नेताओं को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने का काम करते।

गुप्त संदेश पहुँचाते।

संघ और विपक्षी कार्यकर्ताओं को संगठित करते।


यह दौर मोदी जी की साहस और रणनीतिक क्षमता की पहली बड़ी परीक्षा थी। वे न केवल बचकर काम करते रहे बल्कि संगठन को मजबूत भी किया।


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RSS में बढ़ती भूमिका

आपातकाल के बाद नरेंद्र मोदी की पहचान और भी मजबूत हो गई। उन्हें संगठन में और बड़ी जिम्मेदारियाँ दी गईं।

उन्होंने गुजरात में युवा कार्यकर्ताओं को जोड़ा।

शाखाओं की संख्या बढ़ाई।

समाज में शिक्षा, सेवा और राष्ट्रवाद के कार्यक्रम चलाए।


उनकी मेहनत और योजनाओं ने RSS में उनकी छवि “मेहनती और दूरदर्शी प्रचारक” की बना दी।


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भाजपा का गठन और मोदी का प्रवेश

1980 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की स्थापना हुई। RSS ने अपने प्रमुख कार्यकर्ताओं को भाजपा की मदद के लिए भेजा। नरेंद्र मोदी भी उनमें से एक थे।

अब नरेंद्र मोदी का जीवन केवल सामाजिक सेवा तक सीमित नहीं था, बल्कि वे प्रत्यक्ष राजनीति की ओर बढ़ रहे थे।

उन्होंने चुनावी रणनीतियों पर काम करना शुरू किया।

कार्यकर्ताओं को संगठित किया।

भाजपा की विचारधारा को जनता तक पहुँचाया।



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संगठन कौशल और रणनीति

नरेंद्र मोदी के पास राजनीति का अनुभव भले कम था, लेकिन संगठन और रणनीति की समझ अद्भुत थी।

वे कार्यक्रमों की सूक्ष्म योजना बनाते।

छोटे-से-छोटे कार्यकर्ता से व्यक्तिगत जुड़ाव रखते।

चुनाव प्रचार में नई तकनीक और तरीकों का इस्तेमाल करते।


गुजरात में भाजपा की पकड़ बढ़ाने में मोदी का योगदान अहम था।


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स्थानीय राजनीति में सक्रियता

1980–90 का दशक गुजरात की राजनीति में उथल-पुथल का समय था। कांग्रेस का दबदबा था, लेकिन भाजपा धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमा रही थी। नरेंद्र मोदी ने इस दौर में भाजपा संगठन को मजबूत किया।

वे अहमदाबाद और अन्य शहरों में दंगे-फसाद के बाद राहत कार्यों में लगे।

उन्होंने पिछड़े और मध्यम वर्ग को भाजपा से जोड़ा।

चुनावों के समय बूथ स्तर तक की रणनीति बनाई।



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दंगों और सामाजिक संघर्षों में भूमिका

गुजरात में उस समय कई बार सांप्रदायिक दंगे हुए। ऐसे समय में नरेंद्र मोदी ने राहत कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।

वे कार्यकर्ताओं को राहत सामग्री बाँटने में लगाते।

पीड़ित परिवारों की मदद करते।

शांति और संगठन का संदेश फैलाते।


इन गतिविधियों से उनकी पहचान केवल एक प्रचारक तक सीमित नहीं रही, बल्कि “संकट में मददगार नेता” के रूप में उभरने लगी।


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भाजपा नेतृत्व के साथ जुड़ाव

नरेंद्र मोदी को धीरे-धीरे भाजपा नेतृत्व की नज़रों में जगह मिल गई।

उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के साथ काम किया।

उनकी रणनीति और मेहनत ने भाजपा के कई चुनावी अभियानों में सफलता दिलाई।

वे पर्दे के पीछे रहकर भी बड़ी भूमिका निभाने लगे।



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1990 का दशक – बड़ा मौका

1990 के दशक में नरेंद्र मोदी को गुजरात भाजपा का संगठन मंत्री बनाया गया। अब वे केवल प्रचारक नहीं, बल्कि पार्टी के संगठनात्मक ढांचे के मुख्य स्तंभ थे।

उन्होंने कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज तैयार की।

चुनावी अभियानों को नए अंदाज़ में चलाया।

राम मंदिर आंदोलन और आडवाणी की रथयात्रा में अहम भूमिका निभाई।


राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान नरेंद्र मोदी ने आडवाणी की रथयात्रा को गुजरात में सफल बनाने के लिए दिन-रात मेहनत की। इससे उनकी छवि “संगठन के मास्टर” की बन गई।