SWEATERS OF REALATION in Hindi Love Stories by Arkan books and stories PDF | रिश्तों की मिठास

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रिश्तों की मिठास

भाग 1: रिश्तों की मिठास

एक छोटे से शहर में, रामू और सीमा की कहानी हर कोई जानता था। उनकी शादी को 20 साल हो चुके थे, और उनकी जिंदगी बहुत सीधी-सादी थी। रामू एक छोटी सी मिठाई की दुकान चलाता था, जिसकी सबसे खास बात थी उसके हाथ की बनी जलेबी। रामू की जलेबी में स्वाद कम, प्यार ज्यादा था, शायद इसीलिए उसकी दुकान हमेशा भरी रहती थी।
रामू और सीमा के दो बच्चे थे, रोहन और रिया। उनका घर भले ही पुराना था, लेकिन हँसी और कहानियों से गुलजार रहता था। रात के खाने पर सब साथ बैठते, दिनभर की बातें करते और हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाते। उस घर में कभी पैसों की बात नहीं होती थी, सिर्फ रिश्तों की गरमाहट महसूस होती थी। उनके लिए खुशियाँ पैसों से नहीं, बल्कि साथ रहने से बनती थीं।

भाग 2: पैसे की आंधी


एक दिन, रामू का पुराना दोस्त मोहन शहर में लौटकर आया। मोहन ने विदेशों में काम करके बहुत पैसा कमाया था। वह आलीशान गाड़ी में आया और रामू की दुकान के सामने उतरा। "अरे रामू, तू अभी भी यही छोटी-सी दुकान चला रहा है?" मोहन ने हँसते हुए कहा।
मोहन ने रामू को सलाह दी कि वह अपनी दुकान बेचकर एक बड़ा बिज़नेस शुरू करे, जिसमें ज्यादा पैसा और कम मेहनत हो। मोहन ने कहा, "देख रामू, आजकल रिश्ते भी पैसों से बनते हैं। अगर तेरे पास पैसा होगा, तो समाज में तेरी इज्जत होगी, और तेरे बच्चे भी तुझ पर गर्व करेंगे।"
मोहन की बातों का रामू पर गहरा असर हुआ। उसने घर आकर सीमा से कहा, "मैं अब और नहीं रुक सकता। हमें भी बड़ा बनना है।" सीमा ने उसे समझाने की कोशिश की, "हमारे पास जो है, वह काफी है। हमारे रिश्ते हमारी सबसे बड़ी दौलत हैं।" लेकिन रामू ने उसकी बात नहीं मानी।
रामू ने अपनी दुकान बेच दी और मोहन के साथ मिलकर एक नया कारोबार शुरू किया। पहले महीने ही उसने इतना कमाया, जितना उसने सालों में नहीं कमाया था। पैसे आने लगे, और रामू का व्यवहार बदलने लगा। उसने बच्चों से बात करना कम कर दिया, और सीमा के साथ भी दूरी बढ़ने लगी। अब वह परिवार के साथ खाना नहीं खाता था, क्योंकि उसके पास ई-टेस्टिंग और मीटिंग्स का बहाना था। उसके लिए अब परिवार से ज्यादा ज़रूरी बिजनेस डील्स हो गई थीं।
रामू ने एक बड़ा, आलीशान घर खरीदा और बच्चों को महंगे स्कूल में दाखिला दिलाया। सब कुछ था, सिवाय परिवार की पुरानी हँसी के। रात में रामू जब भी घर आता, तो देखता कि सब सो चुके हैं। उसे अकेलापन महसूस होता, लेकिन वह खुद को समझाता कि यह सब उनकी भलाई के लिए है।


भाग 3: खोया हुआ खजाना



एक रात, रिया और रोहन कमरे में बैठकर रो रहे थे। रिया ने रोते हुए कहा, "काश पापा हमें वो मिठाई की दुकान वापस दिला दें, जहाँ हम हँसते थे।" तभी, रामू वहाँ आ गया। उसने अपने बच्चों को रोते हुए देखा, और उसका दिल टूट गया।
रोहन ने रामू से कहा, "पापा, क्या आप हमें वो पुराने दिन वापस दिला सकते हैं? जब हम सब साथ होते थे, जब आप हमें जलेबी खिलाते थे?" रामू के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था। उसे एहसास हुआ कि उसने जो पैसा कमाया था, वह उसके रिश्तों की कीमत पर आया था।
अगले दिन, रामू ने मोहन को फोन किया और कहा, "मैं यह सब छोड़ रहा हूँ।" मोहन ने उसे समझाने की कोशिश की, "रामू, तू पागल हो गया है? इतना पैसा और नाम छोड़ रहा है?" रामू ने कहा, "नहीं मोहन, मैं सब कुछ नहीं छोड़ रहा, मैं अपने आप को और अपने परिवार को वापस पा रहा हूँ।"
रामू ने अपना कारोबार बंद कर दिया और फिर से अपनी पुरानी दुकान खरीदी। जब उसने अपनी पहली जलेबी बनाई, तो उसकी आँखों में आंसू आ गए। उसने पहली जलेबी बच्चों को खिलाई और कहा, "मेरे बच्चों, ये जलेबी पैसों से नहीं, मेरे प्यार से बनी है। पैसा आता-जाता है, लेकिन रिश्ते हमेशा दिल में रहते हैं।"


इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि असली दौलत पैसों में नहीं, बल्कि उन रिश्तों में होती है, जो प्यार और विश्वास से बनते हैं।