Flight 914 in Hindi Fiction Stories by Arkan books and stories PDF | Flight 914

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Flight 914

एक विमान जो 1955 में उड़ान भरता है, लेकिन गंतव्य तक कभी नहीं पहुँचता। परदे के पीछे छिप जाता है, मानो आसमान ने उसे निगल लिया हो। यात्री और पायलट – सब रहस्यमयी ढंग से गायब। तीन दशक बाद अचानक 1985 में वही विमान प्रकट होता है, वही पुराने कपड़े, वही चेहरे और वही उलझन कि आखिर यह कौन सा साल है। पायलट टावर से कहता है – “हम तो 1955 से उड़ान भर रहे हैं…” और कुछ ही पलों में विमान फिर आसमान में ग़ायब हो जाता है।

क्या यह समय यात्रा थी? किसी रहस्यमयी सुरंग का खेल? या सिर्फ एक दंतकथा जो इंसानी कल्पना का नतीजा है? फ़्लाइट 914 की कहानी रहस्य, रोमांच और साज़िश का ऐसा संगम है जो सुनने वाले को हैरान कर देता है और सोचने पर मजबूर करता है – अगर वाक़ई समय की दीवारें टूट जाएँ तो क्या होगा?




















विस्तार से पढ़े ----




सन् उन्नीस सौ पचपन की गर्मियों का मौसम था। जुलाई की सुबह न्यूयॉर्क के हवाई अड्डे पर हलचल थी। यात्रियों का एक समूह उत्साह और थोड़ी सी घबराहट के साथ मियामी की यात्रा पर जाने के लिए तैयार था। यह यात्रा उनके लिए सामान्य थी, लेकिन किस्मत ने शायद उनके लिए कुछ और ही लिखा हुआ था। पैन अमेरिकन एयरलाइंस का एक पुराना डीसी–4 विमान, जिसे फ़्लाइट 914 कहा गया, रनवे से उड़ान भरने की तैयारी कर रहा था। सब कुछ बिल्कुल सामान्य लग रहा था। मौसम साफ था, हवा सुहानी थी और तकनीकी जाँच में भी कोई समस्या नहीं आई थी।

विमान में सत्तावन यात्री और चार क्रू सदस्य सवार थे। परिवार अपने बच्चों के साथ छुट्टियों का आनंद लेने निकले थे, कुछ लोग कामकाज के सिलसिले में जा रहे थे और पायलट आत्मविश्वास के साथ अपने गंतव्य की ओर बढ़ने के लिए तैयार था। कंट्रोल टावर से हरी झंडी मिली और ठीक दस बजकर पंद्रह मिनट पर फ़्लाइट 914 ने न्यूयॉर्क से मियामी के लिए उड़ान भर ली।

शुरुआती कुछ मिनट सामान्य रहे। लेकिन अचानक राडार स्क्रीन पर विमान की लोकेशन ग़ायब हो गई। एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर ने बार-बार संपर्क करने की कोशिश की, पर कोई जवाब नहीं आया। कुछ ही समय में यह स्पष्ट हो गया कि विमान से हर तरह का संपर्क टूट चुका है। घबराहट में खोजी अभियान चलाया गया। समुद्र और ज़मीन दोनों पर तलाश हुई। लेकिन न तो कोई विमान का मलबा मिला और न ही कोई संकेत कि यह कहाँ गिरा हो सकता है। कुछ ही घंटों में फ़्लाइट 914 रहस्य बन गई। यात्रियों के परिवार टूट गए। किसी ने सोचा शायद विमान समुद्र में गिर गया, किसी ने कहा यह बरमूडा ट्रायंगल की करतूत है। लेकिन असली सच्चाई किसी को नहीं मालूम हुई। समय बीतता गया और यह मान लिया गया कि विमान हादसे का शिकार हो गया।

तीस साल बीत गए। ज़िंदगी आगे बढ़ चुकी थी। पर अचानक नौ मार्च 1985 की सुबह वेनेज़ुएला की राजधानी काराकस के एयरपोर्ट पर राडार पर एक अजीब सा विमान दिखाई दिया। कंट्रोलर ने स्क्रीन पर ध्यान दिया तो वह दंग रह गया। यह विमान पुराना दिख रहा था, जैसे किसी म्यूज़ियम का हिस्सा हो। जब उसने रेडियो पर संपर्क किया तो पायलट की आवाज़ आई – “यह न्यूयॉर्क से मियामी जा रही फ़्लाइट 914 है। हमारे साथ सत्तावन यात्री हैं।”

कंट्रोल टावर में सन्नाटा छा गया। यह कैसे संभव था? वहाँ मौजूद अधिकारी ने धीरे-धीरे कहा – “लेकिन अभी साल 1985 चल रहा है।” यह सुनते ही पायलट की आवाज़ काँपने लगी। उसने घबराकर पूछा – “आप क्या कह रहे हैं? हमने तो 2 जुलाई 1955 को उड़ान भरी थी।” यह सुनते ही सबकी साँसें थम गईं।

कहते हैं कि विमान ने एयरपोर्ट पर लैंडिंग की। ज़मीन पर खड़े कर्मचारियों ने देखा कि खिड़कियों से झाँकते यात्री पुराने फ़ैशन के कपड़ों में थे। उनके चेहरे पर भ्रम और डर साफ झलक रहा था। पायलट ने ज़मीन पर आते ही हड़बड़ाकर टावर से कहा कि वह यहीं रुकना चाहता है, लेकिन अचानक उसने इंजन चालू किया और बिना किसी अनुमति के विमान ने फिर उड़ान भर ली। देखते ही देखते वह आसमान में ओझल हो गया और कभी वापस नहीं आया।

यह घटना उस समय इतनी सनसनीखेज़ थी कि अख़बारों में छप गई। 1985 में “वीकली वर्ल्ड न्यूज़” नाम के टैब्लॉइड ने इसे विस्तार से छापा। बाद में 1993 और 1999 में भी इसे दोहराया गया। हर बार लोग इसे पढ़कर हैरान रह गए। किसी ने कहा यह टाइम ट्रैवल का सबूत है, किसी ने कहा कि विमान किसी रहस्यमयी सुरंग में फँसकर तीस साल आगे निकल आया।

लोगों की कल्पना को और हवा तब मिली जब प्रत्यक्षदर्शियों की कहानियाँ सामने आईं। एयरपोर्ट पर काम करने वालों ने दावा किया कि उन्होंने पायलट और कंट्रोल टावर के बीच हुई बातचीत सुनी थी। यात्रियों को उन्होंने अपनी आँखों से खिड़की से बाहर झाँकते देखा था। एक कर्मचारी ने तो यह तक कहा कि पायलट ने जाते-जाते कहा था – “हे भगवान, हमें यहाँ से जाना होगा।” इसके बाद विमान गायब हो गया।

इस घटना ने लाखों लोगों की कल्पना को झकझोर दिया। कईयों ने इसे रहस्य और चमत्कार का नाम दिया। कुछ लोगों ने इसे विज्ञान के लिए सबसे बड़ा सवाल माना। अगर वास्तव में कोई विमान 1955 से 1985 में बिना बूढ़ा हुए पहुँच सकता है तो इसका मतलब है कि समय यात्रा संभव है। यह सोचकर लोग रोमांचित हो उठे।

लेकिन जब विशेषज्ञों ने इस मामले की जाँच की तो सच्चाई कुछ और निकली। आधिकारिक एविएशन रिकॉर्ड्स में पैन एम एयरलाइंस की ऐसी कोई फ़्लाइट दर्ज ही नहीं थी। न ही किसी एयरपोर्ट पर उसके लैंड होने का कोई प्रमाण मिला। जो तस्वीरें और गवाहियाँ पेश की गईं, वे बाद में झूठी या मनगढ़ंत साबित हुईं। असल में, “वीकली वर्ल्ड न्यूज़” अख़बार खुद ही काल्पनिक और अजीबोगरीब कहानियाँ छापने के लिए बदनाम था। यह अख़बार एलियन, भूत और अजीब घटनाओं की गढ़ी हुई कहानियाँ छापता रहता था। फ़्लाइट 914 की कहानी भी उसी की कल्पना का हिस्सा निकली।

फिर भी, लोगों ने इसे सच माना। वजह साफ थी। इंसान हमेशा रहस्यों से आकर्षित होता है। समय यात्रा का विचार सदियों से हमारे दिलो-दिमाग़ पर छाया हुआ है। बरमूडा ट्रायंगल जैसी घटनाओं ने लोगों की कल्पना को पहले ही रोमांचित कर रखा था। ऐसे में फ़्लाइट 914 की कहानी सच और झूठ के बीच कहीं टिक गई।

आज भी इंटरनेट और सोशल मीडिया पर यह किस्सा खूब फैलता है। यूट्यूब पर वीडियो बनाए जाते हैं, ब्लॉग और वेबसाइटें इस पर लेख लिखती हैं। कुछ इसे हक़ीक़त बताते हैं, कुछ इसे पूरी तरह कल्पना। लेकिन सच यह है कि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। यह एक दिलचस्प दंतकथा है, जो हमारी जिज्ञासा को जगाती है लेकिन वास्तविकता से इसका कोई लेना-देना नहीं।

फिर भी अगर हम कल्पना करें कि यह घटना सच होती, तो क्या होता? कल्पना कीजिए कि वे सत्तावन यात्री अचानक तीस साल आगे की दुनिया में पहुँच जाते। उनके परिवार के लोग बूढ़े हो चुके होते, कुछ मर चुके होते। उनके बच्चे बड़े होकर खुद परिवार बसा चुके होते। और ये लोग तो उसी उम्र में रहते जैसे वे 1955 में थे। यह दृश्य किसी विज्ञान कथा उपन्यास से कम नहीं होता। शायद इसी कारण यह कहानी आज तक जीवित है।

फ़्लाइट 914 की गाथा हमें यह भी सिखाती है कि हमें किसी भी सनसनीखेज़ दावे पर तुरंत विश्वास नहीं करना चाहिए। सच और झूठ के बीच की रेखा बहुत पतली होती है। कहानियाँ आकर्षक हो सकती हैं, पर सबूत के बिना वे सिर्फ कल्पना होती हैं। फिर भी, कल्पना और रहस्य ही इंसान को आगे बढ़ाते हैं। शायद इसी वजह से फ़्लाइट 914 आज भी हमारे ज़हन में उड़ती रहती है, भले ही वह कभी आसमान में मौजूद नहीं थी।