वरुण के जाने की बात सुनकर नताशा ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "चलो ना वरुण, कुछ देर साथ में घूमकर आते हैं, उसके बाद चले जाना।"
"ठीक है," कहते हुए वरुण ने सबसे नमस्ते कहा और नताशा का हाथ पकड़कर बाहर चला गया।
विनय ने शोभा से कहा, "मुझे तो लड़का बहुत पसंद आया। लंदन में रहता है, उसके व्यवहार से ऐसा पता ही नहीं चलता। हमारी नताशा हमेशा खुश रहेगी।"
शोभा ने कहा, "विनय, तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। हमारी बेटी राज करेगी क्योंकि ना कोई रोकने वाला, ना टोकने वाला। मुझे तो इसी बात की खुशी ज्यादा है।"
माही अपने कामकाज से निपटकर रात को जब कमरे में गई, तब वह बहुत थकी हुई थी और आराम करना चाह रही थी।
तभी रीतेश ने फिर वही ज़िक्र छेड़ते हुए कहा, "तो माही, मकान के कागज़ कब तक ले आएगी तू? कब होगा वह मकान मेरा? बहुत इंतज़ार करवा रही है; लगता है उस दिन की पिटाई फिर से याद दिलाना पड़ेगा।"
माही यह सुनकर कांपने लगी। उसने कहा, "करूंगी रीतेश, मैं आपका यह काम ज़रूर पूरा करूंगी, पर उसके लिए मुझे मेरे मायके जाना होगा। कुछ दिन वहाँ रहना भी पड़ेगा, फिर मौका देखकर ही मैं पापा से बात करूंगी। मेरे लिए यह सब आसान नहीं है। मुझे यह कहने में भी शर्म महसूस होती है कि उनकी मेहनत से लिया मकान मैं उनसे हमारे लिए मांग लूं और वह सड़क पर आ जाएँ।"
"ज़्यादा प्यार मत दिखा उनके लिए। अपने बारे में सोच, यदि मकान मिल गया तो तू मेरे दिल की रानी बन जाएगी, और यदि नहीं मिला तो उस ट्रक वाले से अब भी मेरी दोस्ती है। किसी को पता भी नहीं चलेगा और काम हो जाएगा। मेरा क्या, तू नहीं और सही। देख, मैं तुझे यह आखिरी मौका दे रहा हूँ। इससे पहले भी तू दो बार मायके गई, पर खाली हाथ वापस आ गई। अभी 19 तारीख को नताशा की शादी है, तब तक यह काम हो जाना चाहिए, समझी?"
"हाँ, ठीक है, मैं कोशिश करूंगी।"
यह हफ्ता तो उनके घर के लिए बहुत ही व्यस्त हफ्ता था। उन लोगों ने ज़्यादा ताम-झाम किए बिना एक ही दिन में शादी करने का निर्णय ले लिया था; जिससे ख़र्चा भी कम होगा।
इसी बीच, माही एक दिन के लिए अपने मायके गई। वहाँ जाकर उसने पहली बार अपने पापा को सब कुछ बता दिया। माही के मुँह से निकले ये शब्द उसके पापा के दिल को छलनी कर गए। उनकी बेटी इतनी तकलीफ में है, वह सोच में पड़ गए कि अब वह क्या करें।
माही ने कहा, "पापा, आप भैया को यह बात मत बताना, वरना वह तो हंगामा मचा देंगे।"
"लेकिन बेटा, इतनी बड़ी बात मैं उससे कैसे छुपा सकता हूँ? इस मकान पर उसका भी तो हक़ है, ना?"
"पापा, वह रीतेश बहुत बेकार इंसान है। वह ट्रक वाला उसका दोस्त है। वह कई बार मुझे धमकी दे चुका है। मुझे मेरी नहीं, भैया और चिंटू की चिंता है। पापा, मकान तो फिर भी भैया खरीद ही लेंगे, पर यदि हम में से किसी की भी जान चली गई, तो वह तो कभी वापस नहीं आएगी, ना?"
"ठीक है बेटा, मुझे सोचने के लिए थोड़ा समय चाहिए।"
माही ने कहा, "ठीक है, पापा।"
दूसरे दिन सुबह, माही अपनी ससुराल वापस चली गई।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः