शाम होने को थी, ऋषि अभी तक घर नहीं आया। रूपा बेहोशी हालत में थी।फुल्की ने रूपा के सर पर मरहम लगाकर पट्टी बांध दिया था। रूपा को होश आया। जैसे ही रूपा होश में गई वो जोर जोर से चिल्लाने लगी, "ऋषि बेटा.....ऋषि बेटा..."
"तुम कहा जा रहे हो... बे..." आगे कुछ बोलती वो जान जाती है कि वो बेहोश होगई थी और अभी अभी उसे होश आया है।
रूपा बाहर होती है, जैसे अपनी माँ की पुकार सुनती है वो दौड़ी चली आती है। "माँ.. आपको होश आगया माँ... में तो चिंता करने लगी थी। यह कहकर फुल्की रोने लगती है। उसके आंखों से आसूं ऐसे टपक रहे थे मानो की वो जीवन में बहुत दिनों बाद रो रही है।
"फुल्की बेतो"
"हाँ माँ"
"बेटी,.. ऋषि कहां चल गया?"
"पता नहीं माँ भैया अभी तक घर नहीं लौटे" फुल्की बड़ा ही उदासीन चेहरा करके रोकर कहती है।
"भैया को क्या होगया माँ, वो अचानक ऐसे कैसे हमे छोड़ कर चले गए" फुल्की रोकर कहती है।
"इन सब चीज का जिम्मेदार में ही हूं... मेरी ही गलती है... में कभी ऋषि को एक माँ का प्यार दे नहीं सका.. मुझे मर जाना चाहिए" ऐसा कहकर रूपा बहुत जोरो से रोने लगती है। वो अपने आप को गुनहगार समझ कर खुदको मारने लगती है।
फुल्की रूपा को रोक कर कहती है," आप कभी गलत नहीं थे मां बस यही बात है कि ऋषि भैया अब भी आपको अपने मां की हत्याकार समझते हैं। देखना एक दिन जरूर आएगा जब हम सब एक साथ होंगे और खुश होंगे।"
"में तो चाहती हूं.. वो दिन जल्दी आए ताकि जो प्यार में ऋषि को देना चाहता हूं, जो ममता में ऋषि को देना चाहता हु वो सब दे सकू.. भले सौतेली लेकिन में उसकी माँ हूं" रूपा रोते हुए कहती है।
""खड़क""
दरवाजा खुलने की आवाज आया। आवाज सुनती ही दिनों माँ बेटी दरवाजे के तरफ दौड़े चले जाते हैं इस आशा में की ऋषि वापस आगया।
दरवाजा खुला, एक ६ फुट लंबा आदमी, घना दाढ़ी, जो कि सूट पहना हुआ था उसने अपना बाया पैर आगे रखा और अंदर आगया। ये और कोई नहीं बल्कि ऋषि के पिता संग्राम था।
जिन आंखों उम्मीद भरे दोनों मां और बेटी दरवाजे के यह देखने आए थे ऋषि आया होगा, संग्राम को देखते ही दोनों का उम्मीद मानो फटकर चूर चूर होकर पाव के नीचे बिखर गया। वो दोनों और उदास होगये।
संग्राम बड़े ही दमदार आवाज में कहा " क्या हुआ.. तुम दोनों इतने उदास क्यों हो "
फुल्की बड़े ही उदासीन आवाज में बोली," पापा वो ऋषि भैया..."
ऋषि नाम सुनकर संग्राम का आवाज और भारी हो जाता है। फुल्की आगे बोल पाती तभी संग्राम बोलता है," हॉस्टल से नहीं आया न रहनो दो उसे हॉस्टल में.."
फुल्की बोली," नहीं पापा.. ये बात नहीं है"
"फिर कौनसी बात है?" संग्राम ने पूछा
फुल्की," पापा वो भैया.." फूली आगे कुछ बोल पाती, दिल उसे काटकर कहती है " घर छोड़ कर चला गया... ऋषि घर छोड़ कर चला गया।"
ये बात सुनकर संग्राम जोरो से हंसने लगा। उसने भारी भरकम आवाज में बोला, " ठीक है भागने दो उसे.. कितने दिनों तक वो बाहर रह पाएगा आज नहीं तो कल चला आएगा.. आखिर कार मेरे पैसों में जो पलता है"
"इसी वजह से.. इसी वजह से" रूपा रोते रोते जमीन में अपनी हाथ को पीटते हुए कहती है। " आपके इस पैसों के वजह से ही आज तक कभी हमने का भरोसा नहीं जीत पाए...."
"अरे छोड़ो उसे... वो जल्दी आ जाएगा क्यों चिन्ता लेती हो.. चलो जल्दी जाओ मेरे लिए खाना परोसो मुझे बहुत तेज भूख लगी है" संग्राम ये कहकर अपने कमरे में चला गया।
रूपा रो रही थी। उसे समझते हुए फुल्की कहती है," पापा ठीक कह रहे है माँ, भैया जल्द ही लौट आएंगे.. हमे चिंता नहीं लेनी चाहिए।"
फुल्की अपने माँ को उठती है और अंदर लेने लगती है। लेकिन कहीं न कहीं रूपा का जी न मानता। उसे बहुत डर सता रहा था कि ऋषि को कुछ हो न जाए। "है भगवान ऋषि जहां कही भी हो ठीक हो" रूपा अपने दोनों हाथ जोड़कर भगवान को बिनती करती है।
ऋषि कहां है? रूपा सौतेली माँ होकर भी उसे इतना स्नेह देती फिर भी ऋषि उसे क्यों समझ नहीं पाता? ऋषि रूपा से इतना घृणा करती है?
आगे जारी रहेगा......