Yashaswini - 14 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 14

Featured Books
  • પેનીવાઈસ - ભાગ 7

    🩸 પેનીવાઇઝ – ભાગ 7 (The Mirror’s Curse)રૂમમાં અંધકાર ઘેરાઈ ગ...

  • ખોવાયેલ રાજકુમાર - 26

    "ઈનોલા હોમ્સ," મેં વિચાર્યા વિના કહ્યું.તરત જ હું મને એટલી મ...

  • મારું જુનુ ઘર....

    આજના સમયમાં આ જે જુની ઈમારતો જેવા ઘર ઊભા છે ને એ પોતાનામાં ક...

  • The Glory of Life - 1

    જીવનનો મહિમા ખરેખર છે શું ?મસ્તી માં જીવન જીવવું ?સિરિયસ થઈ...

  • ભાનગઢ કિલ્લો

    ધારાવાહિક:- ચાલો ફરવા જઈએ.સ્થળ:- ભાનગઢ કિલ્લોલેખિકા:- શ્રીમત...

Categories
Share

यशस्विनी - 14


 

    उधर वही हाल रोहित का था…. मैं योग साधना के मार्ग में यशस्विनी जी से जो सहायता मैं ले रहा हूं…. कहीं मुझे उनसे आसक्ति न हो जाए और यह आसक्ति कहीं प्रेम में न बदल जाए और कहीं हम दोनों ईश्वरीय प्रेम को भूल कर एक दूसरे के साथ सांसारिक प्रेम के बंधन में तो नहीं बंध जाएंगे? रोहित बिस्तर पर लेटे-लेटे देर तक अपने फोन में विभिन्न अवसरों पर खींची गई यशस्विनी की फोटो देखने लगे...ये कैसा गहरा आकर्षण है यशस्विनी जी के मुख मंडल पर... कहीं वे भी ईश्वर का अंश तो नहीं? कितनी पवित्र हैं वे... जैसे पूर्णिमा का उजला चंद्र... जिसमें कोई दाग धब्बे नहीं…...।

    ऐसा सोचते - सोचते रोहित की नींद लग गई ….जैसे नींद लगी है और वह जाग भी रहा है... जैसे अचानक वह विस्तृत नीले आकाश में चंद्र और तारों के बीच पहुंच गया है...वह एक घोड़े पर सवार है और दूर ब्रहमांड के एक कोने में यशस्विनी खड़ी है बिल्कुल राजकुमारियों की सी वेशभूषा धारण की हुई और जैसे अपने से करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर आकाशगंगा के एक कोने में खड़ी यशस्विनी तक पहुंचने के लिए अब उसे अपने घोड़े को प्रकाश से भी अधिक गति से ले जाना होगा ……

….. और यशस्विनी के पास पहुंचकर जैसे रोहित उससे कह रहा हो... क्या तुम मेरे साथ इस ब्रह्मांड के अनेक अनदेखे जगहों की यात्रा पर चलोगी?......

          योग शिविर का एक भाग 'आत्मरक्षा प्रशिक्षण' भी था।यशस्विनी ने इसके लिए भारतीय मार्शल आर्ट कलरीपायट्टू का चयन किया। इसका विचार भी यशस्विनी को एक योग साधिका के साथ बातचीत में आया। कल शाम योग सत्र की समाप्ति के बाद एक साधिका मीरा ने यशस्विनी से अकेले में बात करने की इच्छा प्रकट की।मीरा एक कस्बाई शहर में रहने वाली कॉलेज की लड़की है।प्रायः जब वह कॉलेज की छुट्टी होने के बाद अपने घर लौटती है तो उसे मनचलों के छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता है। घर में माता-पिता दोनों बीमार रहते हैं। इसी कारण उसे एक मेडिकल स्टोर में शाम की शिफ्ट में पार्ट टाइम जॉब करने को विवश होना पड़ा है।

  मेडिकल स्टोर से उसे घर लौटते रात को 9:00-9:30 बज जाते हैं।चौराहे से जब वह ऑटो रिक्शा से उतरकर घर लौटती है तो उसके मन में यह बराबर भय बना रहता है कि कोई छींटाकशी और छेड़छाड़ न कर दे। उसका घर अंदर तीसरी गली में है और कभी कभी रात अधिक होने के कारण यह रास्ता सुनसान हो जाता है।ऐसे में वहां किसी पान दुकान के नुक्कड़ वाली जगह पर बैठे लड़के उस पर फिकरे कसते हैं।

" इतनी रात गए कहां से आ रही हो मैडम जी"

" यू सड़कों पर अकेली न घूमा करो…"

" बेबी आओ तुम्हें घर छोड़ दूं…."

ये लड़के अलग-अलग होते हैं।कभी कोई तो कभी कोई और नए चेहरे दिखाई पड़ते हैं।यह सब इसी मोहल्ले के बदमाश लड़के हैं या आसपास के मोहल्ले के बिगड़ैल घरों के किशोर।

    मीरा उन्हें देखते ही घबरा जाती है और तेज कदमों से लगभग दौड़ती हुई  गलियों को पार कर घर पहुंचती है। ऐसे ही एक दिन भागते समय जब सैंडल टूटने से अचानक उसका पर्स नीचे गिरा तो एक मनचले ने पास आकर पर्स उठाने के बहाने उसका दुपट्टा लगभग खींचते हुए शारीरिक छेड़छाड़ करने की कोशिश की। मीरा ने उसे तेजी से झटका दिया। उसने दुस्साहस करते हुए मीरा का हाथ पकड़ लिया। यह तो भला हो कि मुरारी काका गली के मोड़ से आते दिखाई दिए और उस लड़के ने तुरंत हाथ छोड़ा और वह तथा उसके साथ वाले लड़के तेजी से दूसरी गली में गायब हो गए।

  मीरा अपने बीमार माता-पिता से इस बात की चर्चा नहीं करना चाहती है।वह मोहल्ले की अन्य आंटियों और उसकी समवयस्क लड़कियों को भी यह सब नहीं बताना चाहती है, नहीं तो बात का बतंगड़ हो जाएगा और येन- केन प्रकारेण सारा दोष उसी के ऊपर मढ़ा जाएगा कि उसे नौकरी करने का शौक चढ़ा हुआ है।दो दिनों पहले उसके कॉलेज में पुलिस पब्लिक कार्यक्रम के अंतर्गत लड़कियों के लिए एक आत्मरक्षा प्रशिक्षण सत्र का आयोजन किया गया था और जिले की डीएसपी प्रज्ञा मैडम ने  आत्मरक्षा के अनेक तरीकों और मानसिक दृढ़ता की विधियों को डिमांस्ट्रेट कर भी बताया था, फिर भी इस तरह की स्थिति का मुकाबला करने के लिए मीरा आत्मविश्वास अर्जित नहीं कर पा रही थी। वह सीधे पुलिस में शिकायत करने से भी बचना चाहती थी। एक आम भारतीय परिवार की लड़की होने की यह बहुत बड़ी सजा थी। "बिना कारण झंझट क्यों मोल लें' "इससे तो बदनामी ही होगी"..." रिपोर्ट करने पर अपराधी कहीं बाद में हमसे बदला न लें".... यही सोचकर कई तरह के अन्याय को एक साधारण भारतीय सहन कर लेता है और इससे अपराधियों के हौसले बुलंद होते जाते हैं।

    पिछले दो हफ्ते से मीरा ने मेडिकल स्टोर के रात्रि कालीन ड्यूटी के चौकीदार भैया से प्रार्थना की, कि वह उसे अपनी गाड़ी से घर तक छोड़ दे। इससे उसे सुविधा तो होने लगी है लेकिन खतरा कम नहीं हुआ है। कल तो उसने यही नोटिस किया कि अब लड़के चौकीदार भैया को भी नुकसान पहुंचाने की नीयत रखने लगे हैं। जब गार्ड  की मोटरसायकल उन लफंगों के पास से गुजरी तो वे लफंगे चिल्लाकर कहने लगे- कहां- कहां से गुल खिला कर आ रही हो मैडम जी?... और अब तो एक सिक्योरिटी गार्ड भी रख लिया है….. यह तो अच्छा था कि गार्ड भैया ने हेलमेट पहना हुआ था इसलिए वे उनकी आवाज नहीं सुन पाए अन्यथा उस दिन कोई बवाल हो जाता।

    जब कॉलेज में मीरा को नोटिस बोर्ड में यशस्विनी के योग शिविर का समाचार प्राप्त हुआ तो उसने अपने मन में निश्चय किया कि वो किसी भी तरह 15 दिनों के इस प्रशिक्षण सत्र में सम्मिलित होगी।इतने दिनों के लिए माता और पिता को छोड़कर यूं इस शिविर में आना उसके लिए कठिन फैसला था लेकिन उसने सोचा कि यशस्विनी जी का योग, अध्यात्म, नारी सशक्तिकरण आदि क्षेत्रों में बहुत बड़ा नाम है।वे जरूर मेरी सहायता करेंगी।

योग शिविर शुरू होने के दो दिनों पहले मीरा ने यशस्विनी से मुलाकात की और अपने घर की सारी स्थिति के बारे में जानकारी दी। कॉलेज और जॉब से घर लौटने के समय हो रही घटनाओं के बारे में तो उसने नहीं बताया और केवल पिता के स्वास्थ्य की देखरेख का प्रश्न उठाया। यशस्विनी ने श्रीकृष्ण प्रेमालय से एक महिला सहायिका को मीरा के घर में नियुक्त करवा दिया और मीरा को अनिवार्य रूप से योग शिविर में सम्मिलित होने के लिए कहा।

 (क्रमशः)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय