श्रेया से बात करके वह फोन रख चुकी थी। तभी उसकी बहन कमरे में आते हुए कहती है....दी! आप कहीं जा रहे हो क्या ? मैंने सुना ताइज़ी और मम्मी को पापा, दादू, दादी, बड़े पापा और पापाजी से बात करते हुए। सब बहुत गुस्सा कर रहे थे।
कंगना लापरवाही से अपना बैग पैक करते हुए बोली....कुछ नया है क्या इसमें, वो हर बार ही ऐसा करते हैं।
शिल्पी ने कहा....अभी उन्होंने हां नहीं की है जो तुमने बैग लगाना शुरू कर दिया।
कंगना ने कहा.... जानती हूं कि उन्होंने अभी हां नहीं की है लेकिन सारी बहस के बाद वह हां ही करने वाले हैं हर बार की तरह।
शिल्पी ने कहा....आप बचपन से कितने जिद्दी हो दीदू, आपकी वजह से हर बार मॉम को सुनना पड़ता है।
कंगना ने कहा....जब ख्वाहिशों को पिंजरे में कैद कर दिया जाता है तब उन पिंजरों से आजाद होने के लिए पंछियों को पंख फड़फड़ाने पड़ते हैं माय डियर सिस्टर। मैं जिद्दी नहीं हूं , मैं बस थोड़ा सा जीना चाहती हूं।
शिल्पी ने कहा....इसके लिए मॉम को मुसीबत में डालना जरूरी है क्या। परिवार के नियम पिंजरा नहीं होते। वह सुरक्षा कवच होते हैं जो हमें सुरक्षित रखते हैं। उन्होंने हमारे पंखों को उड़ान भरने के लिए सुरक्षित जगह तराश कर दी है जैसा कि हर जिम्मेदार माता पिता या बड़े लोग करते हैं।
उसकी बात से कंगना की मुस्कुराहट थोड़ी फीकी हो गई थी। वह गंभीर होकर कहती है....और अगर उनका दिया हुआ सुरक्षा कवच ही सुरक्षित ना हो तब पंछी को क्या करना चाहिए ? उसे ऊंची उड़ान भर लेनी चाहिए क्या पता आजाद आसमान सुरक्षा घेरे से अधिक सुरक्षित हो।
शिल्पी अपनी किताबें उठाते हुए कहती है....तुम्हारी अजीब अजीब बातें मेरी समझ से बाहर हैं। मुझे इनमें जरा भी दिलचस्पी नहीं है। मैं जा रही हूं पढ़ने मुझे डिस्टर्ब मत करना। इतना कहकर शिल्पी किताबें उठाकर अपने बिस्तर के साथ लगी टेबल के पास जाकर कुर्सी पर बैठ गई थी।
उसे पढ़ाई करता देख कंगना कमरे से बाहर निकल आई थी। वह अपनी उंगलियों को मोड़ कर उन्हें चटकाते हुए बाहर गैलरी में इधर उधर घूमें जा रही थी जो दिखा रहा था कि वह स्ट्रैस में है।
कुछ ही देर में परिवार वालों की मीटिंग खत्म हो चुकी थी। कंगना को उसकी मॉम और बड़ी मॉम ने अपने कमरे में बुलाया जहां उसे बहुत सारी हिदायत देते हुए जाने की अनुमति दे दी गई थी। एक लंबे चौड़े भाषण के बाद उसे वहां से निकलने की अनुमति मिली थी।
अपने कमरे में आकर उसने गहरी सांस ली। बेशक इतने भाषण सुनने को मिले लेकिन उसे घूमने जाने की अनुमति मिल गई थी जिसकी वजह से उसके होठों पर मुस्कुराहट थी। उसने खुश होते हुए अपनी बची हुई पैकिंग खत्म की।
शिल्पी ने उसे एक नजर देखकर गर्दन को हल्के से हिलाया और वापस किताबों में घुस गई।
वहीं कंगना भी अपनी धुन में लगी हुई बेहद खुश थी। वह अपना बैग पैक करते हुए गुनगुना रही थी। तभी अशीष का कॉल आता है उसके मोबाइल पर वह उसका फोन उठाते ही खुश होते हुए उससे कहती है....अशीष मैं शिमला जा रही हूं, वो भी अकेले। सिर्फ मैं और श्रेया, आई एम सो हैप्पी ! आई कांट टैल यू ! मैं वहां से वापस आकर तुमसे बात करूंगी, बाय।
कहानी जारी है.....!!!
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