Rakt Haweli - 1 in Hindi Horror Stories by Akash S books and stories PDF | रक्त हवेली - 1

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रक्त हवेली - 1

बारिश की बूँदें खिड़की से टकरा रही थीं। शाम का अँधेरा गाँव की कच्ची गलियों को और रहस्यमयी बना रहा था। 13 साल का आरव कार की खिड़की से बाहर झाँक रहा था। उसके माता-पिता ने अभी-अभी शहर छोड़कर इस दूर-दराज़ के गाँव में रहने का फैसला किया था।गाँव का नाम था रतौली। नाम सुनकर ही डर लगता था। और इस गाँव में सबसे मशहूर थी – रक्त हवेली।कार गाँव के चौक पर रुकी। वहीं पर हरिराम काका बैठा था – बोतल हाथ में, आँखें लाल।“अरे साहब लोग! नया खून आ गया है गाँव में… हा हा हा…” वह हँसते-हँसते खाँसने लगा।आरव ने माँ का हाथ पकड़ा – “मम्मी, ये कौन है?”माँ ने धीमे से कहा – “मत देखो बेटा, पागल है।”लेकिन पागल की आँखों में कुछ और था। वह आरव को घूर रहा था, जैसे किसी अनजाने राज़ को पहचान गया हो।---रात को गाँव का घर सूना-सूना सा लगा। चारों तरफ टिमटिमाती लालटेनें और दूर से कुत्तों का हुआँ-हुआँ।आरव को नींद नहीं आ रही थी। अचानक उसे खिड़की से चीख सुनाई दी।“आऽऽआऽऽर्घ्ह्ह!!!”वह सिहर उठा। उसने खिड़की से बाहर झाँका। दूर पहाड़ी पर खड़ी हवेली के ऊपर बिजली कड़की।हवेली पुरानी थी – टूटी खिड़कियाँ, दीवारों पर काले निशान, और सबसे ऊपर टूटा हुआ गुम्बद। लेकिन उस अंधेरी रात में हवेली की एक खिड़की से हल्की सी लाल रोशनी झाँक रही थी।---सुबह होते ही आरव बाहर खेलते-खेलते गाँव के दो लड़कों से मिला – गुड्डू और बल्लू।गुड्डू बोला – “ओए नए लड़के! तूने हवेली देखी क्या?”आरव ने सिर हिलाया – “हाँ… रात को उसमें रोशनी जल रही थी।”बल्लू ने डर का नाटक किया – “हाय राम! मतलब आज रात फिर कोई गया अंदर।”गुड्डू ने हँसते हुए कहा – “सुना है, जो भी वहाँ जाता है, कभी लौटकर नहीं आता… बस उसका खून और हड्डियाँ बचती हैं।”आरव का दिल तेज़ धड़कने लगा।“लेकिन वहाँ कौन रहता है?” उसने पूछा।दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।बल्लू ने धीरे से फुसफुसाया – “रागिनी… और कुर्वा।”---शाम को हरिराम काका फिर से चौपाल पर बैठा था।“हवेली मत जाना बच्चो…” उसने शराब की घूँट भरते हुए कहा।गुड्डू हँसा – “काका, तुम तो रोज यही कहते हो, पर सच क्या है?”हरिराम की हँसी गायब हो गई। उसकी आवाज़ भारी हो गई –“सच ये है कि हवेली में औरत है… हसीन, मोहक… पर उसकी नज़र जिस पर पड़ जाए, उसका खून सूख जाता है।”आरव ने काँपते हुए पूछा – “और कुर्वा…?”हरिराम की आँखें फैल गईं। उसने बोतल जमीन पर पटकी।“कुर्वा इंसान नहीं है… वो गुस्से का दरिंदा है। उसका शरीर लहूलुहान है, जैसे किसी ने उसे जलते कोयलों पर फेंक दिया हो। उसकी गुर्राहट सुनकर जानवर तक भाग जाते हैं।”गुड्डू और बल्लू हँसने लगे –“अरे काका, तुम तो फिल्मी कहानी सुना रहे हो।”लेकिन हरिराम का चेहरा सख्त था –“फिल्म नहीं है बेटा, हकीकत है। मैंने अपनी आँखों से देखा है, कुर्वा का शिकार…”---उस रात आरव को नींद नहीं आई। वह बार-बार खिड़की से हवेली की तरफ देख रहा था।और अचानक – उसे वही दिखा।एक औरत।सफेद कपड़ों में, हवेली की छत पर खड़ी। उसके लंबे काले बाल हवा में उड़ रहे थे।आरव की साँस रुक गई। औरत ने अपना चेहरा उसकी तरफ घुमाया।उसकी आँखें लाल चमक रही थीं।आरव पीछे हट गया, लेकिन तभी उसे लगा – औरत मुस्कुरा रही है।एक अजीब, मोहक मुस्कान।---सुबह जब वह बाहर निकला, तो गाँव में हलचल थी।एक आदमी – हलवाई का बेटा – खेत में मरा पड़ा था।उसका शरीर चिथड़ों में बँटा हुआ था, और पेट फटा हुआ।लोग चीख रहे थे – “ये काम कुर्वा का है!”गुड्डू ने आरव के कान में फुसफुसाया –“देखा? हमने कहा था ना… हवेली में मौत रहती है।”आरव ने फिर से हवेली की तरफ देखा।उसकी खिड़की से वही लाल रोशनी झाँक रही थी।और उसे लगा – कोई अंदर से उसे घूर रहा है।---भाग 1 समाप्त।