नक्षत्र रक्षक महागाथा
प्रथम अध्याय : उत्पत्ति
आदि काल में जब सृष्टि का प्रथम उदय हुआ, तब आकाश देव ने अंधकार को दूर करने हेतु अनगिनत तारों की रचना की। ये तारे दीपक की भाँति ब्रह्मांड को आलोकित करने लगे।
किन्तु अंधकार का अधिपति अंध्यसुर इस ज्योति से संतप्त हुआ। उसने काल के गहरे गर्भ से कालग्राह नामक महादैत्य को जन्म दिया, जो तारों को निगलने लगा।
एक-एक करके नक्षत्र मंद पड़ने लगे। ब्रह्मांड में भय का संचार हुआ और समय का प्रवाह डगमगाने लगा।
तब ब्रह्मा ने घोषणा की—
“ज्योति की रक्षा हेतु हम नक्षत्र रक्षकों को जन्म देंगे। वे होंगे आधे मानव, आधे नक्षत्र, और ब्रह्मांड की शाश्वत रक्षा करेंगे।”
द्वितीय अध्याय : रक्षकों का अवतरण
चार नक्षत्र रक्षक प्रकट हुए—
अरण्य – अग्नि नक्षत्र से उत्पन्न, जिसके श्वास से ज्वालाएँ फूट पड़तीं।
माया – चन्द्र नक्षत्र की कन्या, जो भ्रम और मायाजाल की अधिष्ठात्री थी।
सूर्यांश – आदित्य का अंश, जिसकी तलवार स्वयं सूर्यकिरणों से बनी थी।
तन्वी – ध्रुव नक्षत्र की वंशीधर, जिसके गीत से बुझते तारे पुनः प्रज्वलित हो उठते।
ये चारों पृथ्वी और आकाश के मध्य सेतु बने, और तारों की ज्योति के रक्षक कहे गए।
तृतीय अध्याय : महान युद्ध
जब कालग्राह ने सप्तऋषि मंडल को निगलने का प्रयत्न किया, तब नक्षत्र रक्षक युद्धभूमि में उतरे।
अरण्य ने अग्नि से आकाश प्रज्वलित कर दिया।
माया ने सहस्र नक्षत्रों का आभास रचकर दैत्य को भ्रमित किया।
सूर्यांश ने अपनी तेजस्वी तलवार से उसके पाश काट डाले।
तन्वी ने मधुर गान किया, और बुझते नक्षत्र पुनः चमकने लगे।
फिर भी कालग्राह अमर प्रतीत हुआ, उसका बल अपार था।
चतुर्थ अध्याय : ज्योति-बंधन
अंततः रक्षकों ने अपनी शक्तियाँ संगठित कीं—
अरण्य ने अग्नि से यज्ञकुण्ड रचा।
माया ने उसमें मायाजाल का मंडल सजाया।
सूर्यांश ने अपनी सूर्य-तलवार उसमें विसर्जित की।
तन्वी ने मंत्रगान कर देवशक्ति का आह्वान किया।
यज्ञकुण्ड से एक दिव्य बंधन उत्पन्न हुआ, जिसे ज्योति-बंधन कहा गया। उसी बंधन में कालग्राह जकड़कर आकाश की गहराइयों में कैद हो गया।
पंचम अध्याय : उपसंहार
उस दिन से ब्रह्मांड का संतुलन पुनः स्थापित हुआ। नक्षत्र रक्षक अदृश्य लोक में निवास करने लगे, परन्तु यह वचन दिया—
“जब भी अंधकार पुनः तारों को निगलने उठेगा, हम पुनः प्रकट होंगे।”
आज भी जब कोई तारा टूटता है, जनश्रुति है कि वह रक्षक का संकेत है—किसी की प्रार्थना सुनी गयी है और ज्योति की रक्षा अब भी जारी है।
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लेखक परिचय
मैं एक माइंड एक्सप्लोरर हूं, जो विचारों, भावनाओं और कल्पनाओं की अनदेखी गलियों में यात्रा करता है। मेरे लिए मन केवल सोचने का साधन नहीं, बल्कि एक अनंत ब्रह्मांड है जहाँ हर विचार एक नक्षत्र की तरह चमकता है। लेखन मेरे लिए आत्मा और ब्रह्मांड के बीच संवाद है, जिसमें मैं अदृश्य भावनाओं को शब्दों का रूप देता हूँ। मेरी रचनाएँ पाठकों को भीतर झाँकने, नए दृष्टिकोण खोजने और अदृश्य को महसूस करने का निमंत्रण देती हैं। मैं मानता हूँ कि हर मनुष्य का मन स्वयं में एक संसार है, और मैं उस संसार का अन्वेषक हूँ।