Khoon ka tika - 14 in Hindi Crime Stories by Priyanka Singh books and stories PDF | खून का टीका - भाग 14

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खून का टीका - भाग 14

सीढ़ियों के नीचे पड़े लाल कपड़े में लिपटे शव को देखते ही नंदिनी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसके होंठ कांपने लगे, आँखों में डर साफ़ झलक रहा था।

“हे भगवान… ये कौन हो सकता है?”

उसका मन मानो जवाब चाहता था लेकिन शरीर में इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि आगे बढ़कर कपड़ा उठाए। हवा और तेज़ बह रही थी, खिड़कियाँ बार-बार धमाके से बंद हो रही थीं, जैसे पूरा घर इस राज़ को छुपाना चाहता हो।

लेकिन नंदिनी जानती थी कि अब पीछे हटना संभव नहीं। उसने काँपते हाथों से धीरे-धीरे शव के ऊपर से लाल कपड़ा उठाया।

जैसे ही चेहरा सामने आया, नंदिनी की चीख निकल गई।

“नहीं…! ये… ये तो राघव है!”

राघव – वही नौकर, जो बरसों से इस घर की देखभाल कर रहा था। वही, जिस पर कभी किसी ने शक नहीं किया। उसकी आँखें खुली हुई थीं, चेहरे पर खौफ का नक्श साफ़ था। मानो मौत से पहले उसने कुछ ऐसा देखा हो जिसे शब्दों में बयान करना नामुमकिन था।

नंदिनी काँपती आवाज़ में बुदबुदाई –
“लेकिन… राघव को किसने मारा? और क्यों?”

उसके हाथों से कपड़ा छूट गया। तभी उसने देखा कि शव के पास ज़मीन पर खून से वही टीका पड़ा है। लेकिन इस बार टीके पर सिर्फ लाल रंग नहीं था, बल्कि उसमें कुछ अक्षर भी बने हुए थे।

नंदिनी झुककर देखने लगी। वहाँ लिखा था –

“राघव जानता था सच… इसलिए उसे चुप करा दिया गया।”

नंदिनी के रोंगटे खड़े हो गए। उसके दिमाग में एक ही बात गूंज रही थी – सच? कौन सा सच?

उसी वक्त पीछे से किसी के कदमों की आहट आई। नंदिनी ने डरते हुए मुड़कर देखा तो सामने उसकी सास, कमला देवी, खड़ी थीं। उनके चेहरे पर अजीब-सी कठोरता थी।

कमला देवी की नज़र शव पर पड़ी और उनकी आँखों में क्षण भर के लिए डर चमका, लेकिन अगले ही पल वो सामान्य हो गईं।
“नंदिनी… तुम यहाँ क्या कर रही हो?”

नंदिनी काँपती आवाज़ में बोली –
“मा… राघव… ये कैसे… किसने किया ये सब?”

कमला देवी ने एक लंबी साँस ली और फिर ठंडी आवाज़ में बोलीं –
“इस घर की हर चीज़ की एक कीमत है, नंदिनी। राघव ने वो जान लिया था जो उसे नहीं जानना चाहिए था। शायद इसी लिए…”

नंदिनी चौंक गई।
“क्या मतलब आपका? आखिर वो कौन-सा सच था?”

कमला देवी कुछ देर चुप रहीं, फिर अचानक पास आकर नंदिनी की आँखों में देखते हुए बोलीं –
“सच ये है कि यह घर खून से बंधा हुआ है। यहाँ हर पीढ़ी में एक बलि चढ़ती है। और इस बार… ये सिलसिला फिर से शुरू हो चुका है।”

नंदिनी का दिल जोर से धड़कने लगा।
“नहीं… ये झूठ है! आप मुझे डराना चाहती हैं।”

लेकिन कमला देवी की आँखों में कोई डर नहीं था, सिर्फ सख्ती और रहस्य था।

इसी बीच पीछे से दरवाज़ा जोर से बंद हुआ। दोनों ने पलटकर देखा तो दरवाज़े पर वही खून से लिखा संदेश चमक रहा था –

“अगली बारी उसकी है… जो सच जानना चाहती है।”

नंदिनी सन्न रह गई। उसकी नज़र संदेश पर और फिर अपनी सास पर टिक गई।
“मा… इसका मतलब… अगली बारी मेरी है?”

कमला देवी ने कुछ नहीं कहा। बस धीमे से मुस्कुराईं और कमरे से बाहर चली गईं। उनके कदमों की आहट धीरे-धीरे गायब हो गई।

नंदिनी वहीं बैठी रही, उसका पूरा शरीर काँप रहा था। शव, खून, संदेश और सास की रहस्यमयी बातें उसके दिमाग में गूंज रही थीं।

उसका मन कह रहा था कि राघव ने जरूर कुछ ऐसा देखा या जाना होगा जो इस घर के काले सच को उजागर कर सकता था। और अब वही सच उसे ढूँढना है, चाहे जान का खतरा ही क्यों न हो।

उसने शव के पास दोबारा जाकर ध्यान से देखा। राघव की जेब से कागज़ का एक टुकड़ा बाहर झाँक रहा था। नंदिनी ने हिम्मत जुटाकर वह कागज़ निकाला। उस पर खून के धब्बे थे, लेकिन अक्षर साफ़ दिखाई दे रहे थे –

“जिस दिन पुराने मंदिर का दरवाज़ा खुलेगा, उसी दिन सच सबके सामने आएगा। लेकिन याद रखना… वो दिन मौत भी साथ लाएगा।”

नंदिनी की साँसें रुक गईं।
“पुराना मंदिर…? तो क्या इस पूरे रहस्य की जड़ वहीं है?”

उसकी आँखों में अब डर से ज्यादा दृढ़ता थी। उसने खुद से वादा किया –
“अगर मेरी जान भी चली जाए… तो भी मैं इस ‘खून का टीका’ का रहस्य उजागर करके रहूँगी।”


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✨ अध्याय 14 समाप्त

👉 अब अगले अध्याय 15 में नंदिनी पुराने मंदिर की तलाश में जाएगी, जहाँ असली रहस्य की पहली परत खुलेगी।