The Silence of a Mother in Hindi Motivational Stories by SYAAY books and stories PDF | मां की चुप्पी: संघर्ष से सफलता

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मां की चुप्पी: संघर्ष से सफलता


मां की चुप्पी
शाम का वक्त था। बाहर गली में बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे और घर के अंदर टीवी पर न्यूज़ चैनल की आवाज़ गूंज रही थी। 22 साल का आदित्य अपने कमरे में मोबाइल पर व्यस्त था। उसके हाथ तेज़ी से स्क्रीन पर चल रहे थे—कभी चैट, कभी सोशल मीडिया, कभी वीडियो। तभी दरवाज़ा धीरे से खुला।

दरवाज़े पर उसकी मां, सविता देवी, खड़ी थीं। हाथ में चाय का कप था।
“बेटा, चाय पी ले…” उन्होंने धीरे से कहा।

आदित्य ने बिना ऊपर देखे कहा—“रख दो, मां, बाद में पी लूंगा।”

मां ने उसकी तरफ देखा। आँखों में हल्की सी थकान और उम्मीद दोनों थीं। वो चुपचाप कप मेज़ पर रखकर वापस चली गईं। आदित्य की नज़र उन पर पड़ी भी नहीं।

उस दिन कुछ भी नया नहीं था। मां रोज़ ऐसे ही आतीं, कुछ कहतीं, और फिर चुपचाप लौट जातीं।

  • बीते दिन

सविता देवी की ज़िंदगी आसान नहीं रही थी। जब आदित्य दस साल का था, उसके पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। उस दिन से सविता ने घर और बेटे दोनों का बोझ अकेले उठाया।

कभी स्कूल की फीस भरने के लिए सिलाई की मशीन रात-रात भर चलानी पड़ती, कभी घर चलाने के लिए लोगों के कपड़े धोने पड़ते। लेकिन उन्होंने कभी आदित्य को कमी महसूस नहीं होने दी।

वो खुद पुरानी साड़ी पहन लेतीं, लेकिन बेटे को नई शर्ट दिलातीं। वो खुद भूख दबा लेतीं, लेकिन उसके टिफ़िन में पराठे और अचार ज़रूर रखतीं।

आदित्य जब छोटा था, तो मां का यह त्याग उसके लिए प्यार का सबसे बड़ा रूप था। लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ा हुआ, उसकी दुनिया बदलती चली गई—दोस्त, पढ़ाई, मोबाइल, सोशल मीडिया। मां पीछे छूट गईं।

  • मां की डायरी
एक दिन अलमारी साफ़ करते वक्त आदित्य को एक पुरानी कॉपी मिली। उस पर धूल जमी हुई थी। जब उसने खोला, तो उसमें मां की लिखावट में कुछ बातें दर्ज थीं।

"आज आदित्य ने पहली बार स्कूल में इनाम जीता। मुझे लगा जैसे उसकी जीत मेरी जीत है। काश उसके पापा भी देखते। मैंने उसकी पसंद की खीर बनाई, लेकिन उसने जल्दी-जल्दी खाई और खेलने भाग गया। शायद यही मां का प्यार है—बेटे की छोटी-सी मुस्कान भी ज़िंदगी भर के लिए याद बन जाती है।"

दूसरे पन्ने पर लिखा था—
"आज बहुत थकान है। हाथों में छाले पड़ गए हैं। लेकिन फीस का इंतज़ाम हो गया। जब बेटा डॉक्टर या इंजीनियर बनेगा, तब ये सब दर्द मिट जाएगा। बस भगवान उसे खुश रखे।"

आदित्य के हाथ कांपने लगे। उसकी आंखों में नमी आ गई। उसे एहसास हुआ कि उसकी मां ने कितने त्याग किए, कितनी चुप्पी में दर्द छुपाए।

  • मां की चुप्पी
सविता अक्सर बोलती नहीं थीं। वो चुप रहतीं, लेकिन उनकी खामोशी बहुत कुछ कहती थी।
जब आदित्य देर से घर आता, मां चुपचाप दरवाज़े पर खड़ी रहतीं।
जब वो खाना छोड़ देता, मां चुपचाप प्लेट उठा लेतीं।
जब वो दोस्तों में खो जाता, मां चुपचाप उसके कमरे की लाइट बंद कर देतीं।

वो शिकायत नहीं करती थीं, डांटती भी नहीं थीं। लेकिन उनकी चुप्पी में जो दर्द था, वो पहाड़ जैसा भारी था।

  • जागरूकता का पल
उस रात आदित्य अपने कमरे में अकेला बैठा था। उसने फोन साइड में रखा और सोचा—“मैं हर रोज़ मां की चुप्पी को नज़रअंदाज़ करता रहा। लेकिन उनकी चुप्पी ही तो उनका सबसे बड़ा दर्द है। वो मुझे परेशान नहीं करना चाहतीं, इसलिए सब अकेले सहती हैं।”

उसे याद आया, बचपन में जब वो बीमार पड़ा था, मां सारी रात उसके पास बैठी रहतीं। खुद सोती नहीं थीं। जब भी वो बुखार में कराहता, वो उसके माथे पर ठंडी पट्टी रख देतीं। लेकिन अब जब मां सिरदर्द की शिकायत करतीं, तो वो बस कहता—“दवा ले लो मां।”

आदित्य की आंखों से आंसू निकल पड़े।

  • नया रिश्ता
अगली सुबह, आदित्य मां के पास गया। मां सिलाई मशीन पर बैठी थीं। आदित्य ने धीरे से उनके हाथ पकड़े।

“मां…” उसकी आवाज़ भर्रा गई।
मां ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
“अब से आप चुप मत रहना। जो भी दिल में हो, मुझे बताना। और मैं वादा करता हूं, अब मैं आपकी हर बात सुनूंगा।”

सविता देवी की आंखों से आंसू बह निकले। उन्होंने बेटे का चेहरा अपने हाथों में थाम लिया और कहा—
“बेटा, मां तो हमेशा बोलती है… बस कभी शब्दों में, कभी खामोशी में।”

उस पल आदित्य ने ठान लिया कि अब उसकी ज़िंदगी में मां सबसे ऊपर होंगी। वो समझ गया कि चुप्पी भी एक भाषा होती है, जिसे सिर्फ़ दिल से सुना जा सकता है।
  • सीख
मां की चुप्पी हमें सिखाती है कि प्यार हमेशा ज़ोर से नहीं बोला जाता। कभी-कभी वो त्याग और खामोशी बनकर हमें घेर लेता है।
अगर समय रहते हम उस चुप्पी को समझ लें, तो रिश्ते और गहरे हो जाते हैं, और ज़िंदगी का बोझ हल्का हो जाता है।


लेखक: आकाश सिंह