परिचय
मेरा नाम "कबीर" है। मैं देहरादून का रहने वाला हूँ और यहाँ कॉलेज में साहित्य की पढ़ाई कर रहा हूँ। लोग कहते हैं मैं थोड़ा अलग हूँ—कम बोलता हूँ, ज़्यादा लिखता हूँ। मेरी दुनिया किताबों, कविताओं और ख्वाबों में ही बसती है। लेकिन मुझे नहीं पता था कि एक दिन मेरी किताबों के बीच कोई ऐसा चेहरा आ जाएगा…जो मेरी हर कविता, हर ख्वाब की सच्चाई बन जाएगा।
पहली मुलाक़ात
लाइब्रेरी की वो बरसाती शाम…बाहर आसमान रो रहा था और अंदर मैं किताबों के बीच खोया हुआ था।तभी दरवाज़ा खुला और वो आई— "सायरा"।
उसके भीगे बाल, घबराई साँसें और फिर वो मुस्कान—
जैसे अचानक किसी ने अंधेरे कमरे में दिया जला दिया हो।
उसने कहा— ‘क्या ये जगह सिर्फ तुम्हारे लिए है?’ मैंने अनजाने ही कह दिया ‘नहीं, अब से ये जगह हमारी है।’ वो हँस दी। और मेरी ज़िंदगी भी। उस पल को मैं शब्दों में नहीं बाँध सकता। कुछ रिश्ते शायद जन्मों से तय होते हैं, और उस दिन मुझे लगा कि मैंने अपने हिस्से की रूह पा ली है।
दोस्ती
उस दिन से हमारी मुलाक़ातें बढ़ती चली गईं। कभी लाइब्रेरी की खामोश गलियों में, कभी कैंपस की चहल-पहल में, कभी बारिश के नीचे खुली सड़कों पर। हमारा वक्त जैसे किताबों और चाय के प्यालों में सिमटकर हमें एक-दूसरे से बाँधता जा रहा था। हम घंटों बैठकर कविताएँ पढ़ते। कभी मैं ग़ालिब सुनाता, कभी वो अमृता प्रीतम की पंक्तियाँ दोहराती।
कभी हम दोनों बहस करते— “प्यार क्या सच में ज़िंदगी बदल देता है?” और फिर दोनों हँसकर चुप हो जाते।
सायरा को बारिश बहुत पसंद थी। वो कहती—“बारिश में हर दुख धो जाता है, और हर खुशी और गहरी हो जाती है"।हम छतरी लेकर भी भीग ही जाते। कभी सड़क पर चायवाले की दुकान पर खड़े होकर एक कप साझा करते, तो कभी सड़क किनारे पकौड़े खाते हुए हँसते-हँसते भूल जाते कि समय कितना बीत गया। धीरे-धीरे मुझे उसका हर पहलू जानने को मिला। वो बहुत जिद्दी थी—अगर ठान लेती तो हार नहीं मानती। पर अंदर से बेहद नाज़ुक, छोटी-सी बात पर आँखें भर आतीं। वो अपने सपनों के बारे में बहुत बात करती—
“मैं चाहती हूँ एक दिन अपना स्कूल खोलूँ, जहाँ गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ा सकूँ।” उसकी आँखों में उस वक्त ऐसी चमक होती कि मुझे लगता, काश मैं उस सपने को अपने हाथों से पूरा कर दूँ। कभी-कभी मैं उसकी मदद करता—क्लास के प्रोजेक्ट्स में, लाइब्रेरी से नोट्स ढूँढने में, या फिर बस तब, जब उसे चुपचाप किसी के कंधे की ज़रूरत होती।
और कई बार, वो मेरी टूटी-फूटी कविताएँ पढ़कर कहती — “कबीर, तुम लिखते कमाल हो, लेकिन जीते उससे भी ज्यादा खूबसूरती से हो।” उसकी ये बात सुनकर मैं सिर्फ मुस्कुराता, क्योंकि सच तो ये था कि मैंने जीना उसी से सीखा था। हम शहर के छोटे-छोटे कोनों में घूमने जाते। कभी झील किनारे बैठकर पानी में पत्थर फेंकते, कभी बाज़ार की गलियों में किताबें खरीदते, तो कभी बिना वजह पैदल चलते जाते और बातें करते रहते। हमारी दोस्ती अब एक ऐसी डोर में बदल चुकी थी जिसमें न कोई वादा था, न कोई कसक—सिर्फ गहरा अपनापन और अनकहा सुकून। और मुझे धीरे-धीरे महसूस होने लगा… ये दोस्ती अब सिर्फ दोस्ती नहीं रही। ये मेरे दिल की धड़कनों में उतरकर मोहब्बत की दस्तक बन चुकी है।”
प्रेम
शायद अब मुझे उससे प्रेम होने लगा था…मगर मैं ये बात कह देना उचित नहीं समझता था।कहीं ऐसा न हो कि दोस्ती की नींव हिल जाए,कहीं वो मुझे सिर्फ एक अच्छा साथी समझती हो,और मैं अपनी हड़बड़ी से सब कुछ खो दूँ। लेकिन सच ये था कि उसकी हंसी मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन चुकी थी।
उसकी मुस्कान देखते ही जैसे दिन की सारी थकान पिघल जाती।उसकी आँखों की गहराई में झाँककर मुझे लगता—
जैसे मैं खुद को ढूँढ रहा हूँ। मैं अक्सर अकेले में सोचता— ‘काश, ये पल ऐसे ही ठहर जाएं। काश, वो जाने बिना ही मेरी धड़कनों में हमेशा के लिए बस जाए।’ मैं उसके साथ रहते हुए छोटी-छोटी चीज़ों में सपने बुनने लगा था। कभी सोचता, हमारा एक घर होगा, खिड़की पर उसके पसंदीदा फूल खिलेंगे,
सुबह उसकी आवाज़ मुझे जगाएगी, और रात उसकी मुस्कान मुझे सुलाएगी। वो अक्सर मेरी बातों पर हँस देती, और मैं उस हँसी में अपना पूरा भविष्य देख लेता। उसकी खामोशियाँ भी मेरे लिए किसी ‘हाँ’ से कम नहीं थीं। वो चुप रहती, और मैं उस चुप्पी को अपने हक़ में जवाब समझ लेता। धीरे -धीरे मुझे यक़ीन होने लगा— ये सिर्फ दोस्ती नहीं है। ये मोहब्बत है… गहरी, सच्ची और शायद बेहिसाब। और अब मेरी दुनिया उसकी धड़कनों में सिमट गई थी। मेरे हर ख्वाब में, हर ख़ुशी में, हर ‘कल’ में सिर्फ वही थी—सायरा।”
उसकी खामोशी
दिन बीतते गये। और अब सायरा भी ज़्यादा कुछ कहती नहीं थी। ऐसा लगने लगा था जैसे सब कुछ बदल सा गया हो।
हमारा यूँ बेवजह बाहर जाना, घंटों बातें करना, बारिश में भीगना—सब कम हो गया। मै उससे पूछता—‘क्या हुआ? सब ठीक तो है?’ वो बस मुस्कुरा देती और कहती—‘कुछ नहीं, सब अच्छा है।’ लेकिन उसकी मुस्कान अब आँखों तक नहीं पहुँचती थी। वो मुस्कान सिर्फ एक परदा थी, जिसके पीछे कोई गहरी थकान छुपी थी। उसकी चुप्पियाँ मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थीं। हर बार जब वो खामोश बैठती, मुझे लगता जैसे कोई अनकहा दर्द उसके भीतर उफन रहा है। वो मुझसे दूर नहीं हुई थी, पर अब खुद में बहुत भीतर चली गई थी। जैसे उसके चारों ओर कोई अदृश्य दीवार खड़ी हो गई हो,
जिसके पार पहुँचने की कोशिश में मैं बार-बार खुद को असहाय पाता। उसकी आँखों में अब एक रहस्य था। एक ऐसा राज़, जो वो मुझसे छुपाना चाहती थी। और मैं… मैं बस उसकी चुप्पियों को पढ़ने की नाकाम कोशिश करता रहा।
अप्रत्याशित विदाई
उस शाम मैंने तय कर लिया था—अब और नहीं। अब ये छुप-छुपाकर जीना नहीं, अब अनकहे शब्दों का बोझ नहीं। मैंने मन ही मन ठान लिया था कि सायरा से अपने दिल की हर बात कह दूँगा। मैंने घंटों बाजार घूमकर एक अंगूठी खरीदी थी। सस्ती थी, पर उसमें मेरा पूरा दिल था। उस छोटी सी चमकदार धातु में मैंने अपना भविष्य देख लिया था। मैंने सोचा—शायद वो समझ जाएगी कि मेरी मोहब्बत को किसी सोने-हीरे की कीमत की ज़रूरत नहीं। सायरा उस शाम आई, हमेशा की तरह मुस्कुराती हुई। पर उसकी मुस्कान में फिर वही छुपा हुआ साया था। मैं काँपते हुए उसके सामने खड़ा हुआ और शब्द निकल ही गए— ‘सायरा… क्या तुम मेरी ज़िंदगी में हमेशा रहोगी?’ कुछ पल के लिए समय ठहर गया।
बारिश की हल्की बूंदें हवा में थीं, पर मैं सिर्फ उसकी आँखों में देख रहा था। उसकी आँखों में अचानक आँसू भर आए। वो आँसू… जैसे अनगिनत अधूरे सवालों के जवाब हों। उसने मेरा हाथ थामा— इतना कसकर कि मुझे लगा शायद अब सब कुछ बदल जाएगा। पर अगले ही पल उसने वही हाथ धीरे से छोड़ दिया। मेरे भीतर कुछ टूटने की आवाज़ गूँज उठी। मैं घबरा गया— ‘सायरा! बोलो कुछ… प्लीज़!’ उसने बस मुझे देखा।
वो नज़र… जिसमें हज़ारों बातें छुपी थीं, हज़ारों अलविदा छिपे थे। पर उसके होंठ बंद रहे। वो पल… मेरी पूरी ज़िंदगी का सबसे लंबा और सबसे दर्दनाक पल था। और फिर… वो तेज़ी से मुड़कर चल दी। बिना एक शब्द कहे। जैसे उसकी चुप्पी ही उसका आख़िरी जवाब थी। मैं हड़बड़ा कर पीछे दौड़ा। ‘सायरा! रुक जाओ… मुझे अकेला मत छोड़ो!’ मेरी आवाज़ में हताशा थी, डर था, टूटी हुई मोहब्बत का बोझ था। पर वो अंधेरे और भीड़ में कहीं खो गई। जैसे कभी आई ही न हो। उसके कदमों की आहट गुम हो गई, और मैं सिर्फ अपनी साँसों की गूँज के साथ खड़ा रह गया। उस रात आसमान में चाँद भी धुँधला था। हवा ठंडी थी, पर मेरे भीतर आग जल रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था— उसके आँसुओं का मतलब क्या था? उसकी चुप्पी आखिर कहती क्या थी? बस इतना जान पाया— ये उसकी ‘अप्रत्याशित विदाई’ थी। एक विदाई, जिसने मेरी मोहब्बत को अधूरा कर दिया, मेरे सपनों को चुपचाप दफ़न कर दिया। और मुझे वहीं छोड़ दिया, उस जगह, जहाँ कभी हम दोनों की हँसी गूँजा करती थी।
सच
कई महीने बीत गए…मगर सायरा का कुछ पता नहीं चला। हर सुबह उठकर उसकी आवाज़ खोजता, हर शाम उसके कदमों की आहट सुनने को बेचैन रहता, पर वो कहीं भी नहीं थी। और मेरे भीतर एक सवाल बार-बार उमड़ता रहा—‘क्यों?’ काश, मैंने अपने दिल की बात उससे न कही होती। काश, हम सिर्फ दोस्त ही रहते। शायद तब वो मुझसे दूर न जाती। शायद तब वो चुपचाप मेरी दुनिया से गुम न होती।
दिन गुज़रते रहे और वो सवाल मेरी रगों में उतरता चला गया।
एक दिन… अचानक मुझे खबर मिली। खबर जिसने मेरी साँसें रोक दीं। सायरा कैंसर से लड़ रही थी…वो भी आख़िरी स्टेज से। उस पल मेरे भीतर हज़ारों बार वही सवाल गूँजा—उसने मुझसे ये क्यों छुपाया? वो तो मेरे इतने करीब थी…फिर भी क्यों? मै घंटों बैठा उस ‘क्यों’ को समझने की कोशिश करता रहा। और धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ—वो ‘क्यों’ रहस्यमयी था… रहस्यमयी इसलिए क्योंकि उस सवाल में उसका प्रेम छिपा था। सायरा मुझे अपने टूटते शरीर, अपनी थकती साँसों से बाँधना नहीं चाहती थी। वो चाहती थी कि मैं उसे उसकी हँसी में याद रखूँ, उसकी चमकती आँखों में, उसके मासूम मज़ाकों में, उसकी अधूरी कहानियों में। वो चाहती थी कि मेरी यादों में उसकी छवि सिर्फ एक रोशनी बने— ना कि एक दर्दनाक विदाई। और तब मुझे समझ आया…
उसकी ‘अप्रत्याशित विदाई’ दरअसल उसकी अंतिम भेंट थी। एक ऐसा अलविदा जिसमें उसने मेरा दर्द भी अपने हिस्से में ले लिया। वो चली गई, पर पीछे छोड़ गई एक सवाल, एक अधूरी मोहब्बत, और एक सच्चाई… कि कभी-कभी सबसे गहरी मोहब्बत वही होती है, जो हमें छोड़ जाती है ताकि हम टूटकर न जिएँ।”
अधूरी मोहब्बत, अनंत यादें
आज जब मैं ये डायरी लिख रहा हूँ, तो समझता हूँ कि सच्चा प्यार हमेशा मिलन में नहीं होता। कभी-कभी सच्चा प्यार उस जुदाई में होता है जहाँ एक इंसान दूसरे की यादों में हमेशा ज़िंदा रहता है। सायरा अब नहीं है, पर उसकी हँसी, उसकी आँखें, उसकी चुप्पियाँ—सब मेरे साथ हैं। उसकी याद ही मेरी प्रार्थना है, उसकी अनुपस्थिति ही मेरी सबसे गहरी उपस्थिति है।
मेरा नाम कबीर है। मैं साहित्य पढ़ता हूँ। और मैंने मोहब्बत की है—एक ऐसी लड़की से जिसने मुझे सिखाया कि "प्यार मृत्यु से भी बड़ा होता है।”