Chapter 5
रात गहरी थी। बाहर हवा पेड़ों से टकराकर सरसराहट पैदा कर रही थी।
अचानक, एक डरावनी चीख ने खामोशी को तोड़ दिया।
मैं (जाचु) अचानक डर के मारे नींद से उठ बैठी। दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
ये कैसी आवाज़ थी?… अब भी धीमे-धीमे सुनाई दे रही है।
उसी वक़्त दरवाज़ा तेज़ी से खुला।
रवि भागते हुए अंदर आया—
“जाचु! क्या हुआ? तुम ठीक हो?”
मैं उसकी तरफ़ देखते ही सन्न रह गई।
उसकी आँखें लाल थीं, और नीचे काले घेरे गहरे हो चुके थे। जैसे वो पूरी रात सोया ही न हो।
“भाई… तुम्हें क्या हुआ? क्या रात भर सोए नहीं?” मैंने घबराकर पूछा।
रवि ने जल्दी से जवाब दिया—
“सो रहा था। तुम्हारी चीख से उठ गया।”
लेकिन मेरा मन शांत नहीं हुआ।
कमरे के चारों ओर नज़र दौड़ाई तो सब कुछ अलग ही लग रहा था। अलमारी चमक रही थी, शीशे साफ़ थे, यहाँ तक कि परदे भी नए लग रहे थे।
“ये… ये सब क्या है? क्या तुमने रात भर घर की सफ़ाई की है?” मैंने हैरानी से पूछा।
रवि ठिठका, फिर मुस्कुराते हुए बोला—
“नहीं… मैं? अरे नहीं, तू ही ज़्यादा सोच रही है।”
मैंने आगे बढ़कर परदों को छुआ—
“ये परदे तो नए हैं। तुमने लगाए हैं, ना?”
रवि झेंपकर बोला—
“हाँ… नींद नहीं आ रही थी। तो सोचा थोड़ा काम कर लूँ।”
“और ये कमरा? इतना चमक रहा है, जैसे अभी-अभी पोंछा लगाया हो!” मैंने शक से कहा।
रवि ने हल्की हँसी हँसी, पर उसमें घबराहट छुपी थी—
“हाँ… कोई काम नहीं था, तो कर लिया। शायद इससे नींद आ जाती।”
मैंने बिस्तर छोड़ा और कमरे से बाहर जाने लगी।
तभी रवि ने अचानक हाथ बढ़ाकर मुझे रोक लिया।
“जाचु, रुक। कॉलेज के लिए तैयार हो जा। मैं नाश्ता बना देता हूँ।”
मैंने उसका हाथ झटक दिया और बाहर निकल आई।
पूरे घर पर नज़र दौड़ाई और स्तब्ध रह गई।
“ये क्या… पूरा घर चमक रहा है। और… ये दरवाज़ा?” मैंने हैरत से दरवाज़े को छुआ।
“ये तो नया है! भाई, क्या ये भी रात में लगवाया?”
रवि ने झुँझलाकर कहा—
“हाँ। दिन में टाइम कहाँ मिलता है? ऑफिस में बिज़ी रहता हूँ। दरवाज़ा खराब था… डर भी लग रहा था… तो सोचा, रात में ही कर लूँ।”
“ऑफिस?” मैंने भौंहे चढ़ाईं।
“भाई, झूठ मत बोलो। आपके पास अब कोई नौकरी नहीं है। आपके बॉस ने आपको पिछले हफ़्ते ही निकाल दिया था। फिर ये किस ऑफिस की बात कर रहे हो?”
रवि का चेहरा तमतमा उठा।
“निकाला नहीं था! मैंने खुद छोड़ा है। और आज मेरा इंटरव्यू है। तू बहुत ज़्यादा बोलने लगी है।”
मैं गुस्से से काँपते हुए बोली—
“मैं आज कॉलेज नहीं जाऊँगी। और हाँ, आप मुझे झूठ बोलकर डराने की कोशिश मत करना। शायद आप… इन सब कहानियों और भूत के डर से पागल हो रहे हो।”
रवि की आँखें लाल चमक उठीं।
वो चिल्लाया—
“जितना कहा है, उतना करो! और नाश्ता करने ज़रूर आना!”
मैंने बिना जवाब दिए दरवाज़ा जोर से बंद किया और अपने कमरे में चली गई।
कुछ तो है जो भाई मुझसे छुपा रहा है… पर क्या?
Scene – Silent Apologies
शाम का समय था।
रवि थका-हारा घर लौटा। जैसे ही किचन में गया पानी पीने, नज़र टेबल पर पड़ी थाली पर अटक गई।
उसने धीरे से बुदबुदाया—
“ये क्या… जाचु ने अब तक खाना नहीं खाया? न नाश्ता, न दोपहर का भोजन…”
चेहरे पर हल्की सी चिंता उभर आई।
वो सीधे जाचु के कमरे की ओर बढ़ा।
कमरे का दरवाज़ा खोला तो देखा—
जाचु बिस्तर पर लेटी थी, पर नींद में नहीं… बस गुस्से में मुँह फेरकर चुपचाप लेटी रही।
रवि ने मुस्कुराकर हल्के मज़ाक के अंदाज़ में कहा—
“इतना गुस्सा? खाना भी नहीं खाया?”
जाचु ने बिना उसकी तरफ़ देखे तीखे स्वर में कहा—
“तुम्हें क्या! मैं खाऊँ या न खाऊँ… तुम जाओ यहाँ से।”
रवि ने साँस खींची, फिर थोड़ा नरम होकर बोला—
“जाचु… मुझे माफ़ कर दो। सुबह की बात के लिए…”
लेकिन जाचु ने फिर भी मुँह घुमा लिया।
रवि की आवाज़ धीमी हो गई, जैसे टूट रही हो—
“ठीक है… मत बोलो। वैसे भी आज मैं बहुत उदास हूँ। इंटरव्यू में फेल हो गया… और अब तुम भी मुझसे बात नहीं कर रही।”
उसके शब्दों में निराशा का बोझ था।
जाचु ने धीरे-धीरे उसकी तरफ़ देखा।
उसका चेहरा सचमुच उदास था—आँखों में हार की थकान और होंठों पर दबा हुआ दर्द।
उसका दिल पिघल गया।
“क्या… सच में आप फेल हो गए?” उसने धीमी आवाज़ में पूछा।
रवि ने सिर झुका लिया।
“हाँ…”
जाचु ने गहरी साँस ली, फिर बिस्तर से उठ बैठी।
“ठीक है… इस बार मैं आपको माफ़ करती हूँ। लेकिन अगली बार मुझे डाँटना मत, अच्छा नहीं लगता।”
रवि की आँखों में हल्की चमक लौटी।
“ठीक है…”
जाचु ने अचानक मासूमियत से मुस्कुराकर कहा—
“वैसे… मुझे बहुत भूख लगी है। चलो बाहर चलते हैं, कुछ खाते हैं।”
रवि ने तुरंत सिर हिलाया।
“बाहर क्यों? मैं यहीं घर पर बना देता हूँ।”
“नहीं!” जाचु ने तुरंत हाथ हिलाते हुए कहा।
“ये आपकी सज़ा है। आज आपको मुझे बाहर खिलाने ले जाना ही होगा। मैं अभी तैयार होकर आती हूँ।”
ये कहकर वो फटाफट बाथरूम की ओर चली गई।
रवि वहीं बिस्तर पर बैठ गया।
उसके होंठों पर हल्की मुस्कान तैर गई—
“कम से कम अब तो वो मुझसे बात कर रही है…”
Scene – The Silent Alley
शहर की शाम रौशनी और हलचल से भरी हुई थी।
चारों तरफ़ चहल-पहल, स्ट्रीट फूड की खुशबू और लोगों की हँसी–मज़ाक।
रवि और जाचु धीरे-धीरे चलते हुए एक छोटे से ढाबे की ओर बढ़ रहे थे।
जाचु की नज़र रंग-बिरंगी लाइट्स और दुकानों पर थी, पर रवि का ध्यान कहीं और अटका हुआ था।
अचानक उसकी नज़र बायीं तरफ़ पड़ी।
एक संकरी, सुनसान गली।
वहीं… एक लड़की जा रही थी—
लंबे खुले बाल, काली शर्ट, ऊपर से सफेद जैकेट।
उसके कदम धीरे लेकिन निश्छल थे, जैसे उसे पता ही न हो कि वो किस खतरे में बढ़ रही है।
रवि के मन में बेचैनी दौड़ गई।
“ये गली… ये तो बदनाम है। यहाँ अक्सर शराबी और लुटेरे छिपे रहते हैं।
ये लड़की नई लग रही है… उसे शायद खतरे का अंदाज़ा नहीं है।”
वो ठहर गया।
एक पल को उसकी नज़र जाचु पर गई, जो अभी भी उत्साह से ढाबे की ओर देख रही थी।
“भाई, ये ढाबा देखो! कितनी अच्छी खुशबू आ रही है।”
जाचु ने मासूमियत से कहा।
रवि ने होंठों पर हल्की मुस्कान लाई, पर आँखें अब भी बेचैन थीं।
“हाँ… बिल्कुल। आज यहीं खाते हैं। यहाँ का खाना बहुत टेस्टी है।”
जाचु मुस्कुराई।
“ठीक है, मैं तो बहुत भूखी हूँ।”
रवि ने सिर हिलाया।
“तुम यहीं बैठो। अंदर जाओ और ऑर्डर कर दो… जो भी मन करे। मैं अभी आता हूँ… बस थोड़ा fresh होकर।”
जाचु ने हाँ में सिर हिलाया।
“ठीक है, पर जल्दी आना।”
रवि ने उसकी आँखों में सीधे नहीं देखा।
सिर्फ़ इतना कहा—
“हाँ… जल्दी।”
और फिर…
धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वो ढाबे से अलग होकर उसी सुनसान गली की ओर चल पड़ा।
ध्यान से… जाचु की नज़रों से बचते हुए।
गली में अंधेरा गहराता जा रहा था।
सिर्फ़ दूर से आती शहर की आवाज़ें और बीच-बीच में किसी टूटे डिब्बे या कागज़ के उड़ने की सरसराहट।
रवि का चेहरा अब गंभीर हो गया।
उसकी आँखों में हल्की लालिमा झलक रही थी…
जैसे वो वहाँ किसी और वजह से जा रहा हो।
Continue.......
By Pooja kumari